"पिछड़े तबकों के बीच..." : कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' देने पर नीतीश कुमार ने PM मोदी का जताया आभार

बिहार के CM नीतीश कुमार सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट कर लिखा, "पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है.

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कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार का बयान
नई दिल्ली:

बिहार के दिग्गज समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को भारत रत्न (Bharat Ratna) देने का एलान किया गया है. कर्पूरी ठाकुर उन नेताओं में रहे जिन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया.  समाजवादी-पिछड़ा नेतृत्व के उभार में उनकी अहम भूमिका रही. वहीं, बिहार के CM नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा पर खुशी व्यक्त की है.

बिहार के CM नीतीश कुमार सोशल मीडिया मंच एक्स पर पोस्ट कर लिखा, "पूर्व मुख्यमंत्री और महान समाजवादी नेता स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न' दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है. केंद्र सरकार का यह अच्छा निर्णय है. स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला यह सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा. हम हमेशा से ही स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को ‘भारत रत्न' देने की मांग करते रहे हैं. वर्षों की पुरानी मांग आज पूरी हुई है. इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद."

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आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "मेरे राजनीतिक और वैचारिक गुरु स्व॰ कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न अब से बहुत पहले मिलना चाहिए था. हमने सदन से लेकर सड़क तक ये आवाज़ उठाई. लेकिन केंद्र सरकार तब जागी जब सामाजिक सरोकार की मौजूदा बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण का दायरा बहुजन हितार्थ बढ़ाया. डर ही सही राजनीति को दलित बहुजन सरोकार पर आना ही होगा."

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कर्पूरी ठाकुर के बारे में...
कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में 1924 में हुआ था.  कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक. मुख्यमंत्री के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि दलितों ने इसका विरोध किया, जिनका रोजगार ताड़ी के व्यापार पर निर्भर था. वह जननायक के रूप में जाने जाते थे. उन्‍होंने अपना पूरा जीवन बिहार में सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए समर्पित कर दिया.

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