नीतीश कुमार ने कब-कब बदला पाला? 'बड़े भाई' लालू को मिला 'धोखा'

नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए 1994 में पहली बार विद्रोह किया था. उन्होंने पटना के गांधी मैदान में 'कुर्मी अधिकार रैली' का आयोजन किया था. रैली के बाद नीतीश ने अलग पार्टी बना ली थी.

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नई दिल्ली:

बिहार की राजनीति पिछले 3 दशक से अधिक समय से नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और लालू यादव (Lalu Yadav) के ही इर्द गिर्द घूमती रही है. दोनों ही नेताओं की 1974 के बिहार छात्र आंदोलन के दौरान राजनीति में एंट्री हुई थी. लालू प्रसाद 1977 में ही सांसद बन गए थे लेकिन नीतीश कुमार को विधायक बनने के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ा था और वो 1985 में पहली बार विधायक बने थे. हालांकि नीतीश कुमार की बिहार की राजनीति में अच्छी पकड़ रही थी. ऐसा माना जाता है कि 1990 में जब लालू प्रसाद पहली बार सीएम बने थे उस दौरान नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद को सीएम बनने में मदद की थी. हालांकि बाद के दिनों में दोनों के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं. कई दफा दोनों नेता एक दूसरे को अपना भाई भी बता चुके हैं.

1994 में पहली बार किया था विद्रोह

नीतीश कुमार की मदद से लालू प्रसाद ने राम सुंदर दास को पछाड़ कर पहली बार 1990 में मुख्यमंत्री का पद हासिल किया था. हालांकि बाद के दिनों में दोनों के रिश्ते खराब होते चले गए. नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए पटना के गांधी मैदान में 'कुर्मी अधिकार रैली' का आयोजन 1994 में किया था और उसके कुछ दिनों के बाद वो तत्कालिन जनता दल से अलग हो गए थे.  साल 1994 में ही नीतीश कुमार ने समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस, ललन सिंह के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था. 1995 के चुनाव में उन्होंने वामदलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें अच्छी सफलता नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने सीपीआई से गठबंधन तोड़ कर एनडीए से हाथ मिला लिया.

नरेंद्र मोदी के उदय के बाद लालू प्रसाद के साथ किया था गठबंधन

1996 के लोकसभा चुनाव से कुछ पहले नीतीश एनडीए का हिस्सा बन गए और भाजपा के साथ उनका यह रिश्ता 2010 के विधानसभा चुनाव तक चलता रहा. इस चुनाव में एनडीए को बड़ी जीत मिली थी. साल 2012 में बीजेपी में नरेंद्र मोदी के कद बढ़ने के बाद नीतीश कुमार एनडीए में असहज होने लगे और 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान कर दिया. लोकसभा चुनाव में जदयू को महज 2 सीटों पर जीत मिली जिसके बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद भी छोड़ दिया. बाद में लालू प्रसाद के मिलकर उन्होंने महागठबंधन बनाया और 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सीएम बने. विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन को बड़ी सफलता मिली. 

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2017 में लालू परिवार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर हो गए थे अलग 

इसके करीब ढाई साल बाद साल 2017 में नीतीश कुमार ने फिर से चौंकाया. अब उन्हें महागठबंधन में ही खामी दिखने लगी. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का IRCTC घोटाले में नाम आया, जिसके बाद नीतीश कुमार 'अंतरआत्मा' की आवाज सुनते हुए महागठबंधन खत्म कर दिया और सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के तुरंत बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए और गठबंधन करके सरकार बना ली.

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2020 के चुनाव में नीतीश को अच्छी सफलता नहीं मिली

फिर 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए. नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जीते भी. चुनाव में उनकी पार्टी JDU को मात्र 43 सीटें हासिल हुईं. BJP को 74 और RJD को 75 सीटें मिलीं. लेकिन सीएम का ताज नीतीश कुमार के सिर पर सजा.

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2022 में एक बार फिर छोड़ दिया एनडीए

दो साल बाद 2022 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारी. अब उन्हें बीजेपी से दिक्कत होने लगी. तमाम कारण बताते हुए उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी का साथ छोड़ दिया. इसके एक घंटे के अंदर उन्होंने RJD, कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलाकर सरकार बना ली. तेजस्वी को फिर से डिप्टी सीएम बनाया.

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