PM मोदी ने विकसित समाज बनाने का विजन रखा है, न कि विकसित अर्थव्यवस्था: नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी

बेरी ने 2047 तक देश को एक 'विकसित समाज' बनाने, निजी क्षेत्र के साथ काम करने, कृषि की भूमिका, राज्यों के विकास और भारत के अनुभव से ग्लोबल साउथ के लिए रणनीतियों पर चर्चा की.

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नई दिल्ली:

देश के लिए प्रधानमंत्री के विजन को आकार देने को लेकर नीतियां तैयार करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने न्यूयॉर्क में आईएएनएस के संयुक्त राष्ट्र स्थित ब्यूरो से विशेष बात की. निर्विवाद रूप से भारत इस समय दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है. बेरी ने 2047 तक देश को एक 'विकसित समाज' बनाने, निजी क्षेत्र के साथ काम करने, कृषि की भूमिका, राज्यों के विकास और भारत के अनुभव से ग्लोबल साउथ के लिए रणनीतियों पर चर्चा की.

बेरी रॉयल डच शेल के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में निजी क्षेत्र के साथ काम कर चुके हैं. वह एक विद्वान थिंक-टैंक के साथ और एक अर्थशास्त्री के रूप में विश्व बैंक के साथ काम करने का भी अनुभव रखते हैं. साक्षात्कार के कुछ अंश इस प्रकार हैं:

आईएएनएस : आपने अभी-अभी एक अंतर्राष्ट्रीय बैठक को संबोधित किया जो सतत विकास पर उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच है, जहां दुनिया भर के देशों ने महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की. ग्लोबल साउथ के अन्य देश भारतीय मॉडल से क्या सीख सकते हैं?

बेरी : भारत की अपनी चुनौतियां हैं. मुझे लगता है कि भारत की सफलता का एक कारण यह है कि इसके पास अपने समाधान खोजने के लिए तंत्र हैं. प्रधानमंत्री मोदी के 10 साल तक सत्ता में रहने और अब पांच साल के लिए चुने जाने के बाद, मुझे लगता है कि कुछ सबक सीखने को मिल सकते हैं.

सबसे पहले, मैं आर्थिक जनादेश के बारे में बात करूंगा. जब पिछली संसद भंग हो रही थी, तो सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसमें उस स्थिति का जिक्र किया गया था जो उन्हें विरासत में मिली थी: भारत तथाकथित 'कमजोर पांच' का हिस्सा था. अब यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. इसमें काफी योगदान विशुद्ध आर्थिक प्रबंधन, मुद्रास्फीति दर को कम करना, अच्छा प्रशासन और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) का है.

मुझे लगता है कि भारत के मामले में, कोविड के समय और उसके बाद भी, रोजगार और उत्पादकता के साथ कनेक्टिविटी के लिए भी बुनियादी ढांचे पर जोर काफी महत्वपूर्ण रहा है.

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और अंत में, भारत की डिजिटल कहानी के बारे में सभी जानते हैं. यह निजी क्षेत्र और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के एक सफल मॉडल के बीच की कड़ी है.

आईएएनएस : आपने निजी क्षेत्र का उल्लेख किया. पुराने योजना आयोग की तुलना में नीति आयोग के समय में नीतियों में निजी क्षेत्र की व्यापक भागीदारी पर जोर दिया गया है. आप इसे कैसे देखते हैं?

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बेरी : मुझे लगता है कि दो या तीन अलग-अलग मुद्दे हैं. पहला, 1991 के उदारीकरण के बाद, निजी क्षेत्र को बहुत बड़ी भूमिका निभानी थी. (लेकिन) वास्तविकता को पहचानने में 30 साल लगे.

मैं कहूंगा कि हमने उतनी प्रगति नहीं की है जितनी हमें करनी चाहिए थी. मुझे लगता है कि अब हमें अपनी नीतियों पर अधिक भरोसा करना होगा, और अधिक स्थिर नीतियां बनानी होंगी.

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इसके अलावा, मैं डिजिटल क्षेत्र में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के बारे में वापस बात करना चाहता हूं क्योंकि यह बुद्धिमान विनियमन के महत्व को इंगित करता है. सरकार, और इसलिए नीति आयोग, निजी क्षेत्र के साथ कैसा रिश्ता रखते हैं, इसके दो आयाम हैं.

एक नीतियों के माध्यम से, और दूसरा विनियमन के माध्यम से. दोनों में, मुझे लगता है कि भारत ने एक आशाजनक शुरुआत की है, लेकिन 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लिए अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.

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आईएएनएस : आप भारत के विकास में राज्यों की भूमिका को कैसे देखते हैं?

बेरी : हम अब वित्तीय शक्तियों का प्रयोग नहीं करते हैं, लेकिन हम राज्यों के साथ उतना ही काम करते हैं, जितना पहले करते थे. नीति आयोग के काम का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा राज्यों के साथ काम करना है, क्योंकि प्रधानमंत्री के अनुसार, जब राज्य बढ़ते हैं, तभी भारत बढ़ता है.

जब मैंने यह पद संभाला, तो उन्होंने मुझे सलाह दी कि मेरी भूमिका केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों के साथ भी है.

यह 'सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद' है और नीति आयोग इन दोनों पर काम करने की कोशिश करता है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक भारतीय राज्य एक 'मिनी-कंट्री' की तरह है. कई मायनों में, विरासत में मिली समस्याएं हैं, जिन्हें हल करने में समय लगेगा. लेकिन, मुझे यह देखकर काफी खुशी हुई कि जब हमने अपना बहुआयामी गरीबी सूचकांक जारी किया, तो कुछ गरीब राज्यों ने कुछ अमीर राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया.

मुझे लगता है कि सरकारी प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण वित्त आयोग है. सोलहवें वित्त आयोग की नियुक्ति अभी-अभी हुई है और अपने वित्तीय निर्णय में यह राज्यों की राष्ट्रीय स्तर से दूरी को ध्यान में रखता है. और, मेरे हिसाब से यह सबसे शक्तिशाली साधन है.

मुझे लगता है कि माप की सही इकाई राज्य होनी चाहिए या व्यक्ति, इस सवाल पर भारत को और गहराई से सोचने की जरूरत है.

आईएएनएस : प्रधानमंत्री मोदी ने 2047 तक भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है. उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आपकी व्यापक रणनीति क्या है?

बेरी : प्रधानमंत्री मोदी ने यह बहुत स्पष्ट कर दिया है कि रणनीति स्थानीय होनी चाहिए. योजना आयोग को खत्म करने सहित उनके सभी कदमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि चीजें ऊपर से नीचे की ओर न हो.

प्रधानमंत्री मोदी ने 2047 तक भारत को एक विकसित समाज बनाने का विजन रखा है, न कि विकसित अर्थव्यवस्था.

लेकिन, भारत इतना बड़ा और विविधतापूर्ण है कि वहां राष्ट्रीय आर्थिक रणनीति नहीं हो सकती. मैंने पहले ही इसके एक तत्व का उल्लेख किया है, जो वित्तीय स्थिरता बनाए रखना है. मुझे लगता है कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत को अपनी कार्य स्वतंत्रता बनाए रखनी चाहिए, जिसे कभी-कभी रणनीतिक स्वायत्तता कहा जाता है.

यह स्पष्ट है कि भारत ने पहले ही प्रौद्योगिकी और डिजिटल प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक उपयोग किया है. डिजिटल क्रांति गति पकड़ रही है. भारत के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाना महत्वपूर्ण है.

दूसरा, अगले 20 वर्ष - भारत का 'अमृत काल' - भारत के तथाकथित जनसांख्यिकीय लाभांश की अवधि है, और इसलिए, कोई भी रणनीति देश के मानव संसाधनों, महिलाओं और विशेष रूप से युवाओं से अधिकतम लाभ उठाने के बारे में होनी चाहिए.

आप उस लक्ष्य तक कैसे पहुंचते हैं, यह अलग-अलग राज्यों द्वारा तय किया जाना चाहिए. लेकिन ध्यान बेहतर आजीविका पर होना चाहिए, और, स्पष्ट रूप से, इस पीढ़ी के माता-पिता को विश्वास होना चाहिए कि उनके बच्चे उनसे बेहतर जीवन जीएंगे.

प्रधानमंत्री राज्यों से इनपुट मांगते हैं, नीति आयोग राज्यों के साथ मिलकर उनके आमंत्रण पर विचार करता है कि 2047 के लिए उनकी कार्ययोजना क्या होगी. लेकिन, मुझे लगता है कि भारत इतना बड़ा और विविधतापूर्ण देश है कि पूरे देश के लिए एक औद्योगिक नीति-रणनीति बनाना संभव नहीं है.

आईएएनएस : अगले पांच वर्षों के लिए आपके लक्ष्य क्या होंगे?

बेरी : हम पंचवर्षीय योजनाएं नहीं बनाते हैं. सरकार का आधिकारिक दृष्टिकोण केंद्रीय बजट में सामने आएगा, जो आने ही वाला है.

मुझे लगता है कि राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) पहले ही संकेत दे चुकी हैं कि यह एक ऐतिहासिक बजट होगा. मुझे लगता है कि इसमें कुछ मील के पत्थर हैं. सबसे पहले, यह उम्मीद की जाती है कि भारत इस दशक के अंत से पहले दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा.

दूसरा, पूंजी निवेश पर ध्यान केंद्रित करना जारी रहेगा.

तीसरा, हमने अपने ऊर्जा संक्रमण (जीवाश्म ईंधन की जगह स्वच्छ ऊर्जा अपनाने) की दिशा के बारे में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के प्रति प्रतिबद्धता जताई है.

मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर कृषि क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया जाए. हमने बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया है. हमने डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ध्यान दिया है. प्रधानमंत्री मोदी निश्चित रूप से मानते हैं कि स्टार्टअप संस्कृति में बहुत संभावनाएं हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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