- भारत ने ग्लोबल साउथ के देशों के साथ साझेदारी और सम्मान की भावना से भरोसा हासिल कर वैश्विक मंचों पर अपनी भूमिका मजबूत की है.
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं में पांच देशों की संसदों को संबोधित कर विश्व रिकॉर्ड बनाया गया और भारत की वैश्विक छवि बढ़ी है.
- चीन की कर्ज आधारित दबाव नीति के विपरीत भारत ने बिना शर्त मदद और दोस्ती निभाकर ग्लोबल साउथ के देशों का भरोसा जीता है.
एनडीटीवी इंडिया के शो 'कचहरी' में इस बार एक ऐसे वैश्विक मुद्दे पर जिरह हुई, जो भारत की बदलती छवि और दुनिया में उसके बढ़ते कद की गवाही देता है. एंकर शुभंकर मिश्रा ने बताया कि कैसे आज दुनिया ‘ग्लोबल नॉर्थ' और ‘ग्लोबल साउथ' जैसे दो हिस्सों में बंटी है. एक तरफ वो अमीर और विकसित देश हैं, जिनका नेतृत्व अमेरिका जैसे ताकतवर देश करते हैं; दूसरी ओर हैं गरीब, विकासशील देश, जिन्हें अब एक सशक्त प्रतिनिधि की जरूरत है.
शो में बताया गया कि जब चीन इस नेतृत्व की होड़ में उतरा, तो उसने आर्थिक दबाव, कर्ज और कंट्रोल की नीति अपनाई- लेकिन इस लालच भरी राजनीति से उसे भरोसा नहीं मिला. तब उम्मीदें भारत की ओर मुड़ गईं.
भारत बना भरोसे की मिसाल
शो में बताया गया कि भारत ने इस रेस में कोई शॉर्टकट नहीं लिया, बल्कि सालों से अपनी नीतियों और नीयत से यह भरोसा जीता है. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों की मदद से लेकर, कोविड काल में वैक्सीन मैत्री के तहत घाना को 6 लाख मुफ्त टीके भेजने तक- भारत ने हर कदम पर साझेदारी और सम्मान की भावना दिखाई. यही वजह है कि भारत को वैश्विक मंचों पर पहले से कहीं अधिक महत्व मिल रहा है.
पीएम मोदी की ऐतिहासिक यात्रा
शो में इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक विदेश यात्रा को भी इस कूटनीति की मिसाल बताया गया. पीएम मोदी ने घाना, अर्जेंटीना, ब्राजील, नामीबिया और त्रिनिदाद और टोबैगो की यात्रा की. इनमें से चार देशों की संसद को उन्होंने संबोधित किया- एक वर्ल्ड रिकॉर्ड. अब तक पीएम मोदी को 27 देशों ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दे दिया है, जो भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका का प्रमाण है.
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चीन से अलग भारत की सोच
भारत और चीन के बीच फर्क सिर्फ आकार या जनसंख्या का नहीं, सोच का है. चीन जहां कर्ज देकर नियंत्रण चाहता है, वहीं भारत बिना शर्त मदद करता है. चीन जब गरीब देशों पर दबाव बनाता है, भारत तब दोस्ती निभाता है. शो में कहा गया कि भारत ने कभी दोस्ती को सौदेबाजी नहीं बनाया. यही कारण है कि ग्लोबल साउथ के कई देश आज भारत को अपना प्रतिनिधि मानते हैं.
ब्रिक्स में भारत की ठोस पहल
शो में बताया गया कि भारत ने BRICS जैसे मंचों पर भी सिर्फ मौजूदगी दर्ज नहीं कराई, बल्कि आतंकवाद और रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे अहम मुद्दों को उठाया. जब चीन ने दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर रोक लगाई, तब भारत ने घाना और नामीबिया से नए समझौते कर यह दिखा दिया कि वह आत्मनिर्भर सोच रखता है.
साझा इतिहास से साझा भविष्य तक
भारत और ग्लोबल साउथ के कई देशों का उपनिवेशवाद का साझा इतिहास रहा है. शायद यही वजह है कि भारत इन देशों को कभी ‘कमतर' नहीं मानता. भारत ने कभी दोस्ती पर ‘रसीद' नहीं चिपकाई, बल्कि हर संकट में एक बड़े भाई की तरह साथ खड़ा रहा. शो में कहा गया कि भारत की यही भावना, यही गरिमा उसे वैश्विक नेतृत्व के योग्य बनाती है.
सिर्फ हिस्सेदार नहीं, नेतृत्वकर्ता बन रहा है भारत
शुभंकर मिश्रा ने अंत में कहा कि भारत अब सिर्फ ग्लोबल साउथ का हिस्सा नहीं है, वो नेतृत्व की भूमिका में आ चुका है. उसकी विदेश यात्राएं सिर्फ कूटनीतिक दौरे नहीं, बल्कि उसकी नीतियों और मूल्यों की प्रस्तुति हैं. यही बात अब चीन को बेचैन कर रही है- क्योंकि दुनिया अब जानती है कि भारत भरोसे से नेतृत्व करता है, और नेतृत्व की असली पहचान ‘भरोसा' ही होती है.