NDTV India Telethon: पैसिव डिजाइन प्रिसिंपल (Passive Design Principle) का मतलब है कि आपकी स्थानीय परिस्थितियों में सूर्य किस तरीके से आपके घर में आ राह है, यानी सूर्य की किरणें किस एंगल पर आ रही हैं, ताकि आपके घर की डिजाइन में सूरज से आने वाली गर्मी से आप खुद को बचा सकें. इसमें आवास के कोणों के साथ-साथ आपको यह भी तय करना होगा कि घर बनाते समय आप कैसे मेटेरियल का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह काम बिल्डर को करना होता है. इसका ध्यान हमें प्लानिंग लेवल पर भी देखना जरूरी है. पैसिव डिजाइन प्रिंसिपल्स को जितना अधिक अपनाएंगे, आपका घर उतना कम गर्म होगा. सीएसई इंडिया के प्रोग्राम मैनेजर सुगीत ग्रोवर ने NDTV इंडिया के जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित टेलिथॉन में यह बात कही.
सुगीत ग्रोवर ने कहा कि, ''पैसिव डिजाइन प्रिंसिपल का यह मतलब है कि आपके लोकल कंडीशन में सूर्य किस तरह का बर्ताव कर रहा है, किस एंगल पर आ रहा है तो हीट डाउन आप किस तरह करेंगे. प्लाट किस तरस के कटें, किस डायरेक्शन में कटें, यह बिल्डर, आर्किटेक्ट, सभी निर्माण व्यवसायियों को करना होगा.''
ग्रोवर ने कहा कि, ''आपकी बिल्डिंग की डिजाइन सही होनी चाहिए, जिसमें आप सूर्य की किरणों से बचाव कर सकें. इसे पैसिव डिजाइन प्रिंसिपल्स कहा जाता है. आपका मटेरियल सही होना चाहिए. जब कम्फर्ट फील होता है तो वह सिर्फ हवा के तापमान से ही नहीं होता, रेडिएशन फ्राम मटेरियल्स भी होता है. आप जो फील करते हैं वह दोनों का कॉम्बीनेशन है.''
उन्होंने कहा कि, ''सरकार को यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि हम जो भी बिल्डिंग बनाएं उसमें मिनिमम इंसुलेशन वेल्यू हो. जो मटेरियल उपयोग कर रहे हैं, उसमें से हीट बाहर से अंदर न आ पाए. उन्होंने कहा कि, हर एक क्लाइमेट जोन में अलग कूलिंग टेक्नालॉजी की संभावना है, लेकिन हम सभी जगह एडर कंडीशनिंग लगा रहे हैं.''
ग्रीन हाउस गैस बढ़ने के पीछे एयर कंडीशनिंग एक बड़ा कारण है. सुगीत ग्रोवर ने कहा कि, ''इवोप्रेटिव कूलिंग से बिल्डिंग ठंडी की जा सकती हैं. कई यूनिवर्सिटी में यह किया जा रहा है. और भी तकनीक हैं, जिससे आप कूलिंग कर सकते हैं. जियो थर्मल एनर्जी एक टेक्नालॉजी है. लेकिन आप पैसिव डिजाइन प्रिंसिपल्स को जितना अपनाएं, उतना अच्छा.''
उन्होंने कहा कि, अगर हम इमारत को ऐसे डिजाइन करें कि सूर्य की किरणों को हम कम से कम इमारत में घुसने दें तो इमारत के अंदर गर्मी कम होगी. इससे एसी को घर को ठंडा करने में कम समय लगेगा. ऐसा होगा तो बिजली की बजत होगी और पर्यावरण को भी इससे फायदा होगा. अगर इमारत बनाते समय पैसिव टेक्नोलॉजी को लागू किया जाए तो इससे एसी की जरूरत खत्म भी हो सकती है.
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