ग्राउंड रिपोर्ट : क्या है अमेठी का माहौल? स्मृति ईरानी को चुनौती देने आएंगे राहुल गांधी? जानें- क्या चाहते हैं वोटर्स

सवाल ये उठता है कि अमेठी में स्मृति ईरानी के सामने कौन? क्या राहुल गांधी एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ने आएंगे या फिर गांधी परिवार के बाहर से कोई चुनाव लड़ेगा?

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अमेठी (यूपी):

देश में आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां सबकी निगाहें हैं. ऐसी ही एक वीवीआईपी सीट है यूपी की अमेठी. वही अमेठी जहां से राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति की शुरुआत की. पिछला चुनाव राहुल गांधी हार गए. ऐसे में इस बार सबको इंतज़ार है ये जानने का कि क्या राहुल गांधी एक बार फिर स्मृति ईरानी के सामने दिखेंगे या अमेठी छोड़कर सिर्फ वायनाड सीट से चुनाव लड़ेंगे? 

अमेठी से नेहरू-गांधी परिवार के कई नेताओं ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की है. राहुल गांधी ने भी और उनके पिता राजीव गांधी ने भी. 2019 में स्मृति ईरानी ने यहां राहुल गांधी को हरा दिया. अब इस बार सवाल ये उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी फिर अमेठी लौटेंगे? 

उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट पिछले पांच दशकों में देश की सबसे चर्चित पांच सीटों में से एक है. अमेठी ने कई बड़े-बड़े नेताओं को चुनाव जिताकर संसद भी भेजा, तो कई को हराकर पटखनी भी दी. अमेठी से इतिहास बनता-बिगड़ता रहा है. इस सीट से जीते हुए कई नेता सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे, लेकिन अमेठी विकास के शीर्ष तक नहीं पहुंच सका. 

अमेठी सीट 1967 में अस्तित्व में आई. इसके बाद यहां की जनता ने बड़े बड़ों को हराया भी और जिताया भी. इस सीट से चुनाव हारने वालों में संजय गांधी, मेनका गांधी, शरद यादव, राजमोहन गांधी, कांशीराम, सतीश शर्मा, संजय सिंह, स्मृति इरानी, कुमार विश्वास और राहुल गांधी भी शामिल हैं. वहीं इस सीट से संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी चुनाव जीते, लेकिन 2019 के चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर यहां का राजनैतिक समीकरण बदल दिया.

एनडीटीवी की टीम अमेठी की जनता का मूड समझने उनके ज़िले में पहुंची. पान की दुकान चलाने वाले पारस नाथ चौरसिया ने कहा कि यहां संजय गांधी के समय में काफी विकास हुआ था. अगर वो आज होते तो अमेठी बम्बई बन गई होती. लेकिन अब मोदी जी भी विकास के काम करवा रहे हैं.

वहीं समोसे की दुकान चलाने वाली महिला परमजीत मौर्या ने भी कहा कि यहां विकास हो रहा है, अब बिजली की समस्या दूर हो गई है, बच्चे कहीं आने जाने से डरती नहीं है, पहले हमारी बेटियां डरती थीं, लेकिन अब कहीं भी जा सकती हैं. उन्होंने कहा कि पहले राहुल गांधी को वोट देते थे, लेकिन जब से सरकार ठीक हुई है, तब से बीजेपी को वोट दे रहे हैं.

राहुल गांधी अमेठी से 3 बार सांसद रहे, लेकिन 2019 में वो चुनाव हार गए. इस बार फिर से राहुल गांधी वायनाड से चुनाव लड़ेंगे, इसकी घोषणा हो चुकी है, लेकिन अमेठी को लेकर अभी भी संशय बना हुआ है. इसी संशय की वजह से अमेठी के कांग्रेस दफ़्तर में भी सन्नाटा पसरा हुआ है. सभी कमरों में ताला लगा है, लेकिन कार्यकर्ता से लेकर समर्थकों तक में ये उम्मीद है कि यहां से राहुल गांधी के नाम का ऐलान जल्द होगा.

अमेठी के कांग्रेस के कार्यकर्ता सोनू सिंह रघुवंशी ने कहा कि कष्ट ये होता है कि राजीव गांधी के समय से हम कांग्रेस को सजाते चले आये हैं. आज हम क्या मुंह दिखाकर वोट मांगे? हम राहुल-प्रियंका के भक्त हैं, हम खून के आंसू रो रहे हैं. आज यहां से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने की घोषणा होती तो हम सीना चौड़ा करके घूमते, लेकिन आज सिर झुका के घूम रहे हैं. राहुल गांधी नहीं लड़ें तो आत्मदाह तो नहीं करेंगे, लेकिन कांग्रेस दफ़्तर के बाहर चाय पिलाएंगे.

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वहीं एक और कांग्रेस कार्यकर्ता पिंटू अग्रहरि ने कहा कि अगर राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़े तो स्मृति ईरानी चुनाव जीत जाएंगी और अगर वो लड़े तो लड़ाई कांटे की होगी, यहां एकतरफा लड़ाई नहीं है. मोहम्मद अली ने कहा कि स्मृति ईरानी को अमेठी में हराने के लिए राहुल गांधी को ज़रूर लड़ना चाहिए, नहीं लड़े तो बहुत ज़्यादा निराशा होगी. कांग्रेस दफ़्तर में काम करने वाले कर्मचारी हौसला प्रसाद ने कहा कि पहले दफ़्तर में भीड़-भाड़ होती थी, लेकिन इधर लोग आने बंद हो गए हैं.

गांधी परिवार का अमेठी से पांच दशक पुराना नाता है. संजय गांधी और राजीव गांधी के दौर में अमेठी में कुछ बड़ी और छोटी इंडस्ट्रीज़ स्थापित की गईं. भेल और एचएएल जैसी बड़ी इंडस्ट्रीज़ यहां लगाई गईं, वहीं रोज़गार देने के लिए कुछ छोटी इंडस्ट्रीज़ भी लगीं. इन्हीं में से एक है अमेठी की कम्बल फैक्ट्री. ये कम्बल फैक्ट्री 1988 में स्थापित हुई, लेकिन वक्त के साथ इसकी हालत खराब होती गई. हाल ये है कि आज यहां सिर्फ 2 कर्मचारी काम कर रहे हैं. यहां रोज़गार भी बड़ा मुद्दा है.

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अमेठी के बेरोजगार युवा लवकुश यादव और मनोज यादव ने कहा कि इस बार हम वोट देने नहीं जाएंगे. ऐसा लगता है जैसे कि हम सिर्फ जनगणना में शामिल होने के लिए पैदा हुए हैं. आधार कार्ड बनवाकर घूम रहे हैं. युवा डेढ़ से दो सौ रुपये में दिहाड़ी करने को मज़बूर है. हमारी इस हालत के लिए सभी सरकारें ज़िम्मेदार हैं. हालांकि कांग्रेस बीजेपी से अच्छी है.

वीवीआईपी ज़िला होने के बावजूद अमेठी की कई ऐसी बुनियादी दिक्कतें हैं, जिनकी शिकायत यहां रहने वाले लोग अक्सर करते हैं. इसमें टूटी और पतली सड़कें, शहर का जाम, बेरोजगारी, गंदगी या आवारा पशु, ये तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिसकी शिकायत लोग नेताओं से अक्सर करते हैं, लेकिन संसद पहुंचने वाले कई बड़े नेताओं के यहां से चुने जाने के बाद भी कई काम हैं, जो पहले हो जाने चाहिए थे, लेकिन नहीं हो पाए.

अमेठी की ग्रामीण महिला देवमती ने महंगाई को लेकर नाराजगी जताई और पूछा कि कौन स्मृति ईरानी? वही जो 13 रुपये किलो चीनी खिला रही थी? हम तो आज भी 45 रुपये किलो खऱीदकर खा रहे हैं. हमारी तो कोई सुनवाई ही नहीं है. हमारे गांव में कोई सड़क भी नहीं बनी है.

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वहीं एक और ग्रामीण मोहन लाल ने कहा कि ग़रीब की सिर्फ ईश्वर ही सुनता है. यहां सड़क बहुत ख़राब है. जनता रातभर में पलट जाती है. कौन जाने इस बार कौन जीतेगा. राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने कहा था कि अमेठी उनका घर है. स्मृति ईरानी चुनाव में आईं, बोलीं कि 13 रुपये किलो चीनी ले लो, कहां मिला?

किसान यूनियन के नेता ने कहा कि स्मृति ईरानी हमारी बुआ हैं. हमारे पिता की बहन हैं. बुआ जब काम नहीं करेंगी तो हराना पड़ेगा. स्मृति ईरानी की कोई व्यवस्था दिखाई नहीं दे रही है.

वहीं चाय की दुकान पर बैठे कुछ बुजुर्गों ने कहा कि सबसे अच्छा काम इंदिरा गांधी ने किया था. अभी तो हमारी पेंशन भी नहीं मिल रही है. जिसकी किस्मत होगी वो जीतेगा, लेकिन भगवान बताए हैं कि राहुल गांधी यहां से जीत जाएंगे.

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जनता अपनी पसंद और नापसंद के हिसाब से बात करती है, लेकिन अभी सवाल ये उठता है कि स्मृति ईरानी के सामने कौन? क्या राहुल गांधी एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ने आएंगे या फिर गांधी परिवार के बाहर से कोई चुनाव लड़ने आने वाला है? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब अगले कुछ दिनों में मिल जाएगा, लेकिन अमेठी के लोगों में इस वक्त सबसे ज़्यादा कौतूहल इसी सवाल को लेकर दिखाई दे रहा है.