मराठी भाषा, मराठी अस्मिता और मराठी लोगों के मुद्दे उठाकर शिवसेना ने महाराष्ट्र में गहरी पैठ बना ली.
- महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर विरोध को हवा मिलती रही है
- यह विरोध पचास के दशक से मराठी पहचान को लेकर जारी है
- शिवसेना ने मराठी भाषा और पहचान को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए
- आरएसएस नेता के बयान ने मराठी भाषा को लेकर ताजा विवाद को जन्म दिया
एक बड़ी हिंदी भाषी आबादी होने के बावजूद महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर विरोध को हवा मिलती रही है. वजह है मराठी पहचान पर ज़ोर. स्थानीय राजनीतिक दल इसे मुद्दा बनाते आए हैं. महाराष्ट्र में ये हिंदी विरोध आज की बात नहीं है बल्कि ये पचास के दशक से चला आ रहा है जो सियासी वजहों से रह- रहकर उफ़ान मारता रहा है. पचास के दशक में तत्कालीन बॉम्बे स्टेट जिसमें आज का गुजरात और उत्तर पश्चिम कर्नाटक भी आता था वहां एक अलग मराठी भाषाई राज्य बनाने की मांग को लेकर संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन शुरू हुआ. साठ के दशक में आंदोलन का असर दिखा. संसद ने The Bombay
Reorganisation Act पास किया जिसके बाद महाराष्ट्र और गुजरात दो अलग राज्य बने. इसके छह साल बाद जब बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की तो उनका घोषित लक्ष्य था, बैंक की नौकरियों और कारोबार में दक्षिण भारतीयों और गुजराती लोगों के प्रभुत्व के ख़िलाफ़ मराठी मानुष को संरक्षण देना. मराठी भाषा, मराठी अस्मिता और मराठी लोगों के मुद्दे उठाकर शिवसेना ने महाराष्ट्र में गहरी पैठ बना ली. अस्सी के दशक में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने दक्षिण भारतीयों और उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासी उत्तर भारतीयों के खिलाफ लगातार रैली और आंदोलन किए. शिवसेना सत्ता में आई तो उसने दुकानों और संस्थानों में मराठी नेम प्लेट लगानी अनिवार्य कर दीं. बैंकों और सरकारी दफ़्तरों में भी मराठी में काम शुरू करवाया.
शिवसेना ने जारी रखा भाषा का मुद्दा
बाल ठाकरे के निधन के बाद भी शिवसेना ने ये मुद्दा अपने हाथ में रखा जो उसे बाकी पार्टियों से अलग बनाता रहा. उधर शिवसेना से अलग हुए बाला साहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी ये मुद्दा मज़बूती से थामे रखा. शिवसेना, एमएनएस के लिए हर चुनाव में ये मुद्दा वोटों से भी सीधे तौर पर जुड़ा रहा. शिवसेना दो फाड़ हुई तो दोनों ही पक्षों ने इसे हाथ से जाने नहीं दिया.
मराठी भाषा को लेकर ताज़ा विवाद इस साल मार्च में शुरू हुआ जब आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि मुंबई की एक भाषा नहीं है और ये ज़रूरी नहीं है कि मुंबई आने वाले हर व्यक्ति को मराठी सीखनी पड़े. इस बयान पर विपक्षी महाविकास अघाड़ी के दल बिफ़र गए. ख़ुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठी राज्य की संस्कृति, इसे सीखना हर नागरिक का कर्तव्य है.
सरकार ने फैसला लिया वापस
इसके अगले ही महीने अप्रैल में फडणवीस सरकार ने एक आदेश जारी किया जिसमें अंग्रेज़ी और मराठी मीडियम के स्कूलों में पहली से पांचवीं क्लास के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बना दिया गया. फिर क्या था विपक्षी दलों शिवसेना-यूबीटी, एनसीपी-शरद पवार और एमएनएस को विरोध के लिए नया बारूद मिल गया. उन्होंने इसे स्थानीय पहचान को कमज़ोर करने की साज़िश बताया और राष्ट्रीय एकता की आड़ में सांस्कृतिक एकरूपता को बढ़ावा देने की कोशिश बताया. विरोध को हवा मिली और नतीजा ये हुआ कि महाराष्ट्र सरकार को प्राथमिक स्कूलों में तीन भाषा के फॉर्मूले को वापस लेने को मजबूर होना पड़ गया.