Lok Sabha Elections 2024: पश्चिम बंगाल में सन 1971 के बाद के किसी भी लोकसभा चुनाव में किसी भी राष्ट्रीय पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हो सका. यानी बंगाल में राष्ट्रीय दलों को हमेशा कम सीटें मिल सकीं. यदि बीजेपी इस बार लोकसभा चुनाव में बंगाल में 21 से ज्यादा सीटें जीत जाती है तो 53 साल बाद कोई राष्ट्रीय पार्टी राज्य में बहुमत में आएगी और यह किसी नेशनल पार्टी की बंगाल में वापसी भी होगी. वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद स्वपन दासगुप्ता ने बैटलग्राउंड एट एनडीटीवी (battleground at NDTV) में एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया के एक सवाल के जवाब में यह बात कही.
कोलकाता के 97 साल पुराने एक कॉफी शॉप में संजय पुगलिया ने लोकसभा चुनाव को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद स्वपन दासगुप्ता, सोशल एक्टिविस्ट और स्टॉक मार्केट वाचर मुदार पाथेरिया और डेटा साइंटिस्ट पॉलिटिकल एनालिस्ट अमिताभ तिवारी से चर्चा की.
यह चुनाव बोरिंग है, क्या बंगाल इसको इंटरेस्टिग बना रहा है? इस सवाल पर स्वपन दासगुप्ता ने कहा कि, ''पिछली बार भी आप देखेंगे तो बीजेपी तीन सौ पार.. बीजेपी इसलिए 300 पार करने में सफल हुई क्योंकि उसे बंगाल में 18 सीटें मिल गईं.. और कोई एक्सपेक्ट नहीं कर रहा था, बंगाल की बीजेपी भी नहीं कि 18 सीटें बंगाल से आने वाली हैं. तो इस बार चैलेंज है कि आप 25 क्रास करेंगे कि नहीं. अगर आप 25 पार करके 30 पर पहुंच जाएंगे तो आप 400 पार के आसपास आ सकते हैं. तो मैं समझता हूं कि बंगाल में बहुत चुनौती है.''
दासगुप्ता ने कहा कि, ''सन 1971 के बाद बंगाल में लोकसभा चुनाव में किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने सीटों में मेजॉरिटी हासिल नहीं की. तो अगर बीजेपी 21 से ज्यादा सीटें जीत पाती है तो यह नेशनल पार्टी की बंगाल में वापसी होगी. यह इसीलिए रोचक है.''
बंगाल में स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे के बारे में सवाल पर स्वपन दासगुप्ता ने कहा कि, ''देखिए लोकल फेस कितना चाहिए या नहीं चाहिए, यह नतीजे ही बतलाएंगे लेकिन यह बात साफ है कि यह एक राष्ट्रीय चुनाव है.''
उन्होंने कहा कि, ''ममता बनर्जी की कोशिश जितना संभव हो इसे लोकल बनाने की है, उनकी यही रणनीति है. अगर लोकलाइज्ड हो जाए तो उनका ही फायदा होगा. उनका जमीनी संगठन है, काउंसलर्स हैं, पंचायत है.. बीजेपी को चाहिए एकदम ऊपर राष्ट्रीय, इंटरनेशनल स्ट्रांग लीडरशिप, अर्थव्यवस्था... बीजेपी में एक-दो मूर्ख हैं जो चाहते हैं कि एकदम लोकलाइज कर दें. यह दो अलग-अलग तरह के दृष्टिकोण हैं.''
स्वपन दासगुप्ता ने कहा कि, ''यह महत्वपूर्ण है कि मोदी जी ममता बनर्जी पर 2021 की तरह सीधे तीखे हमले नहीं कर रहे हैं. ऐसा क्यों है, इस बारे में गौर करने वाली बात है कि 2021 में क्या हुआ, जिसका फीडबैक नतीजे आने के बाद मिला. फीडबैक मिला कि 'दीदी ओ दीदी...' का असर अच्छा नहीं हुआ. ममता इस बात को भुनाती हैं कि वे महिला हैं, महिला मुख्यमंत्री हैं, बंगाल की अकेली बड़ी नेता हैं, वगैरह... तो इस बार (मोदी) सतर्कता के साथ चल रहे हैं, टीएमसी पर हमला कर रहे हैं लेकिन ममता पर इतने हमले नहीं कर रहे है. यह ध्यान देने वाली बात है.''