'एनडीए में सब ठीक नहीं है' से 'NDA में सब ठीक है' तक... क्या फ्रेंडली फाइट तक जाएगी बात? मोदी के हनुमान से सहयोगी बेहाल?

बिहार चुनाव में NDA के लिए फिलहाल सीटों का गणित कुछ ठीक नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि चिराग पासवान जिस तरह से दम दिखाते हुए 29 सीटें ले गए, उससे भी बीजेपी के अन्य सहयोगी दलों के तेवर चढ़े हुए हैं.

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बिहार चुनाव को लेकर एनडीए में सीटों को लेकर क्या फंसा है पेंच
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  • NDA में सीटों के बंटवारे के बाद भी कई सीटों पर सहयोगी दलों के बीच सहमति नहीं बन सकी है
  • उपेंद्र कुशवाह और चिराग पासवान के बीच सीटों को लेकर विवाद और असंतोष जारी है
  • जीतनराम मांझी को छह सीटें मिली हैं जबकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से पंद्रह सीटें मांग रखी थीं
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नई दिल्ली:

एनडीए में सीटों के बंटवारे के बाद अब भी कई सीटों को लेकर सहमति नहीं बन सकी है. ऐसी कई सीटें हैं जहां एक से अधिक सहयोगी दल दावा कर रहे हैं और यही कारण है कि गतिरोध बना हुआ है. हालांकि अभी तक किसी भी सीट पर यह नौबत नहीं आई है जहां एनडीए के एक से अधिक दलों ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हों लेकिन जिस तरह से खटास दूर नहीं हो पा रही है, उसे देखते हुए यह आशंका भी बनी हुई है. चिराग पासवान जिस तरह से दम दिखाते हुए 29 सीटें ले गए, उससे भी बीजेपी के अन्य सहयोगी दलों के तेवर चढ़े हुए हैं.

खासतौर से उपेंद्र कुशवाह के रुख को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. वे आज सुबह नित्यानंद राय के साथ पटना से दिल्ली आकर गृह मंत्री अमित शाह से मिले. उनकी मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा से भी मिले. लेकिन अब भी स्पष्ट नहीं है कि वे बातचीत से संतुष्ट हैं या नहीं. हालांकि शाह से मिलने के बाद उन्होंने इतना जरूर कहा कि बिहार में सरकार एनडीए की ही बनेगी. पहले तो वे इसी बात से नाराज थे कि उन्हें केवल छह सीटें दी गईं. फिर इस बात से भी धक्का लगा कि चिराग पासवान 29 सीटें लेने में कामयाब रहे. अब इस बात पर मामला फंस गया कि जिन दिनारा और महुआ सीटों पर वे दावेदारी कर रहे हैं, उन पर दूसरे सहयोगी दलों की भी नजरें हैं. खासतौर से महुआ सीट जहां चर्चा है कि कुशवाह अपने बेटे दीपक कुशवाह के लिए यह सीट चाहते हैं वहां यह सीट लोजपा के खाते में चली गई. कुशवाह का राज्य सभा कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है. ऐसे में वे विधानसभा की सीटों के बदले अपने लिए राज्य सभा पर भी बात कर सकते हैं.

कुछ यही हाल जीतनराम मांझी का भी है. वे सार्वजनिक रूप से पंद्रह सीटें मांग चुके हैं. बाद में छह सीटों पर संतोष करना पड़ा लेकिन अब इस बात का मलाल है कि उन्हें केवल छह सीटें मिलीं लेकिन चिराग 29 सीटें लेने में कामयाब रहे. ऊपर से तुर्रा यह कि सिकंदरा सीट जहां कि मांझी का अपना सिटिंग एमएलए है, उस पर लोजपा की नजरें हैं. हालांकि मांझी ने यहां से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.

मामला जेडीयू और चिराग पासवान के बीच भी है. पांच सीटें ऐसी हैं जहां जेडीयू ने अपने उम्मीदवार उतार दिए लेकिन वहां चिराग पासवान दावेदारी कर रहे हैं. सोनबरसा, राजगीर, गायघाट, मोरवा और एकमा सीटों पर जेडीयू अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है. लेकिन इन पर चिराग पासवान की भी नजरें थीं. ऐसे में यहां भी मामला फंसता दिख रहा है. ये भी खबरें हैं कि जेडीयू इस बात से खफा है कि चिराग पासवान को 29 सीटें क्यों दे दी गईं जबकि उन्हें 20 से अधिक सीटें नहीं मिलनी चाहिए थीं.

हालांकि एनडीए के लिए राहत की बात यह है कि चिराग पासवान ने अभी तक उन सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं किए जहां दूसरे सहयोगी दल दावा कर रहे हैं या अपने उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं. चिराग पासवान ने 29 में से अभी तक केवल चार ही सीटों पर अपने उम्मीदवारों को सिंबल दिए हैं. ये हैं राजू तिवारी को गोविंदगंज, ब्रह्मपुर से उलास पांडे, बखरी सुरक्षित सीट से संजय पासवान और गरखा सुरक्षित सीट से सीमांत मृणाल को सिंबल दे दिया गया है.

बीजेपी अभी तक 71 और जेडीयू 57 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर चुके हैं. सूत्रों के अनुसार सहयोगी दल चाहे कितना ही दबाव डालें लेकिन घोषित उम्मीदवारों के इन नामों में अब कोई बदलाव नहीं होगा. दरअसल, विवाद इस कारण भी हुआ है कि एनडीए ने यह ऐलान तो कर दिया कि कौन कितनी सीट पर लड़ रहा है लेकिन कौन सी पार्टी किस सीट से लड़ेगी, इसका ऐलान नहीं हुआ. बहरहाल, जिस तरह से पहले चरण के नामांकन में अब केवल दो दिन बचे हैं कम से कम उस चरण की सीटों की दावेदारी को अधिक तवज्जो नहीं दी जाएगी. अब सारा मामला दूसरे चरण की कुछ सीटों पर बचा है और माना जा रहा है कि जल्दी ही इसे भी सुलझा लिया जाएगा और किसी भी सीट पर फ्रेंडली फाइट की नौबत नहीं आएगी.

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