42 दिन, 42 सरेंडर... नक्सलवाद के अंत की आहट, जंगलों में खामोश हो रही हैं लाल क्रांति की बंदूकें

लाल गलियारा, जो कभी देश की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती था. आज इतिहास बनने की कगार पर है. बंदूकें खामोश हैं, कमांडर या तो मारे जा चुके हैं या आत्मसमर्पण कर चुके हैं और जंगल अब डर की नहीं, नए भारत की कहानी सुनाने लगे हैं.

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  • माओवाद की समाप्ति की प्रक्रिया तय समय से पहले तेज़ी से आगे बढ़ रही है, कई राज्य नक्सल मुक्त घोषित हो चुके हैं
  • माओवादी कमांडर हिडमा की मौत नक्सल इतिहास का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई है जो सुरक्षाबलों के लिए बड़ी सफलता है
  • एमपी, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के MMC जोन में अब केवल 6 नक्सली बचे हैं, कई ने हाल ही में आत्मसमर्पण किया है
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नई दिल्ली:

देश से लाल आतंक के खात्मे की उलटी गिनती अब सिर्फ तारीखों की बात नहीं रही. जंगलों में दशकों से चल रही माओवादी बंदूकों की गूंज अब थमने लगी है. तय समय से पहले देश ने नक्सलवाद के अंत की ओर सबसे बड़ा कदम बढ़ा दिया है. देश के इतिहास में पहली बार नक्सलवाद के खात्मे की बात सिर्फ़ राजनीतिक दावा नहीं, बल्कि ज़मीन पर दिखता सच बन चुकी है. जंगलों में दशकों से चल रही लाल क्रांति की बंदूकें अब एक-एक कर खामोश हो रही हैं.

माओवादी कमांडर माडवी हिडमा का नाम सुनते ही सुरक्षाबलों की टुकड़ियां अलर्ट हो जाती थीं, जिसने सबसे ज़्यादा घातक हमलों की साज़िश रची. उसे तय की गई 30 नवंबर की समय-सीमा से 12 दिन पहले ही सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया. ये सिर्फ़ एक एनकाउंटर नहीं था, ये नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था.

साल 2024 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ कहा था कि 31 मार्च 2026 तक भारत से लाल आतंक खत्म कर दिया जाएगा. तब कई लोगों ने इसे बड़ा राजनीतिक बयान माना, लेकिन ज़मीन पर चल रही कार्रवाई ने इस डेडलाइन को महज़ तारीख नहीं रहने दिया. डेडलाइन से लगभग 4 महीने पहले ही रेड कॉरिडोर के दो राज्यों ने खुद को नक्सल मुक्त घोषित कर दिया. वो इलाके, जहां कभी पुलिस कैंप बनाना भी मौत को न्योता देने जैसा था, आज वहां बिना डर विकास की गाड़ियां चल रही हैं.

एनडीटीवी ने सबसे पहले बताया था कि रामधेर और अनंत जैसे बड़े नक्सलियों के सरेंडर के बाद, एमएमसी जोन, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के जंक्शन इलाके में सिर्फ़ 6 नक्सली बचे हैं. इनमें सबसे बड़ा नाम था छोटा दीपक, और अगले ही दिन बालाघाट में दीपक उइके और रोहित ने हथियार डाल दिए. पिछले 42 दिनों में, एमएमसी ज़ोन में 7 करोड़ 75 लाख रुपये के इनामी 42 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जो कभी जंगलों में समानांतर सरकार चलाते थे.

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छत्तीसगढ़ में अब भी कुछ चुनौती बची है, लेकिन तस्वीर पहले जैसी नहीं है. कभी ऐसा वक्त था जब, 12 हजार से ज्यादा नक्सलियों के हाथों में बंदूकें थीं. आज बस्तर में सिर्फ़ गिने-चुने दस्ते ही बचे हैं और वो भी लगातार दबाव में हैं.

अब बचे हुए चेहरे, जो अभी भी सुरक्षाबलों की टारगेट लिस्ट में हैं, उसमें से सबसे बड़े नामों में से एक बटालियन नंबर-1 का इंचार्ज 45 साल के बारसे देवा उर्फ साईनाथ का है. सुकमा का रहने वाला, 25 लाख का इनामी साईनाथ, हमेशा AK-47 के साथ चलता है. जिसकी बटालियन में आज भी 100 से 150 हथियारबंद नक्सली बताए जाते हैं.

वहीं दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी, जिसमें कभी 30 खूंखार कमांडर होते थे. अब उसके सिर्फ़ कुछ चेहरे ही बचे हैं. 55 साल का पापाराव उर्फ चंद्रन्ना उर्फ मंगू दादा और 58 साल का तेलंगाना निवासी वासुदेव राव. वहीं माओवादी सेंट्रल कमेटी जहां कभी 21 सदस्य होते थे, अब सिर्फ़ 4 नाम ही सुरक्षाबलों के लिए चुनौती हैं.

  • 1 करोड़ का इनामी 60 साल का मिसिर बेसरा उर्फ सागर (झारखंड)
  • 70 साल का मल्लाराजी रेड्डी उर्फ संग्राम
  • 58 साल का थिपरी तिरूपति उर्फ कुमा दादा उर्फ देवजी
  • 60 साल का हनुमन्थू उर्फ गणेश उइके

कई बुज़ुर्ग, कई बीमार और कई ओडिशा-झारखंड के जंगलों में गुमनामी की ज़िंदगी जीने को मजबूर. अब रणनीति साफ है, या तो हथियार डालो या फिर सुरक्षाबलों की निर्णायक कार्रवाई का सामना करो.

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बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि आने वाले समय में बहुत जल्द माओवाद का पूरी तरह खात्मा सुनिश्चित होगा. जंगल में जो कैडर बचा है, उसके पास एक ही विकल्प है, हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो जाएं, अन्यथा सुरक्षाबल जिस तरह की प्रभावी कार्रवाई कर रहे हैं, उसी का परिणाम भुगतना होगा.

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छत्तीसगढ़ के लिए लाल आतंक का खात्मा बेहद जरूरी भी है, क्योंकि अपनी स्थापना के 25 सालों में राज्य ने नक्सल हिंसा की सबसे गहरी कीमत चुकाई है. अक्टूबर 2025 तक के आंकड़ों के मुताबिक 25 सालों में 3,404 मुठभेड़ हुए. इस दौरान 1,541 नक्सली ढेर हो गए, वहीं 1,315 जवान भी शहीद हुए. साथ ही 1,817 निर्दोष नागरिकों की भी मौत हो गई. इस दौरान 7,826 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जबकि 13,416 गिरफ्तार हुए.

लाल गलियारा, जो कभी देश की सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती था. आज इतिहास बनने की कगार पर है. बंदूकें खामोश हैं, कमांडर या तो मारे जा चुके हैं या आत्मसमर्पण कर चुके हैं और जंगल अब डर की नहीं, नए भारत की कहानी सुनाने लगे हैं.

तय समय से पहले खत्म होगा नक्सलवाद

जिस लाल गलियारे को कभी देश की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती माना जाता था, आज वही गलियारा सिमटता जा रहा है. माडवी हिडमा जैसे खूंखार माओवादी कमांडर का खात्मा, करोड़ों के इनामी नक्सलियों का एक-एक कर सरेंडर और तय समय से पहले नक्सल मुक्त राज्यों के ऐलान ये साफ संकेत हैं कि नक्सलवाद अब अंतिम दौर में है. सुरक्षाबलों की रणनीति बदली है, कार्रवाई तेज़ हुई है और जंगलों में बचे कैडर के सामने अब सिर्फ दो ही रास्ते हैं या तो हथियार डालें, या फिर गोलियों का सामना करें.

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