रिश्तों की रखी लाज, बागी नटवर सिंह ने जीते जी न खोला सोनिया-कांग्रेस का वो राज़!

Natwar Singh: नटवर सिंह को राष्ट्र के प्रति सेवा के लिए 1984 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उन्होंने विदेश मामलों सहित अन्य विषयों पर कई चर्चित किताबें भी लिखीं, जिनमें 'द लिगेसी ऑफ नेहरू : अ मेमोरियल ट्रिब्यूट' और 'माई चाइना डायरी 1956-88' शामिल हैं.

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नटवर सिंह... 10 जनपथ का सबसे बड़ा राजदार, क्‍यों हो गया था बागी?
नई दिल्‍ली:

कुंवर नटवर सिंह. 10 जनपथ का सबसे बड़ा राजदार. सोनिया गांधी के सियासी गुरु. राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया को राजनीतिक दीक्षा देने, उनकी छवि गढ़ने के पीछे  नटवर ही थे. 1984 में इंदिरा गांधी ने विदेश सेवा के इस अधिकारी की सियासत में एंट्री करवाई. कांग्रेस में उनकी जड़ें कितनी गहरी थीं इसका पता इससे भी चलता है कि वह नेहरू के साथ नाश्ता किया करते थे. 1967 में सोनिया और राजीव की होने वाली शादी की खबर इंदिरा ने सबसे पहले जिन लोगों को बताई थी, उसमें नटवर भी थे. लेकिन कांग्रेस में नटवर की असली पारी नब्बे के दशक में शुरु हुई. वह कांग्रेस में इतने खास होते चले गए कि उन्हीं के शब्दों में- 'जो बातें राहुल-प्रियंका को भी नहीं बताई जाती थीं, वह सोनिया उनसे शेयर करती थीं.' 

इस भरोसे की बड़ी वजह थी. राजीव की हत्या के बाद दरअसल सोनिया को 'साोनिया गांधी' बनाने का काम नटवर सिंह ने ही किया था. हिंदी सुधरवाने से लेकर, कांग्रेस में  उठ रहे बगावत के भंवर से सोनिया को किनारे लगाने का काम कूटनीति के इस माहिर खिलाड़ी ने किया. इसका उन्हें इनाम भी मिला. यूपीए-1 की मनोहन सरकार में वह विदेश मंत्री बने. लेकिन 2005 में उन्हें कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. वजह बनी ईरान से तेल के बदले अनाज कांड पर पोल वोल्कर कमिटी की रिपोर्ट, जिसमें उनका नाम भी शामिल था. 

और इसके बाद गांधी परिवार का यह सिपाही बागी हो गया. 10 जनपथ में बेरोक-टोक आने जाने वाले नटवर के कदम इसके बाद इस पते पर जीते जी कभी नहीं पड़े. आखिरी सांस तक नटवर के दिल में यह टीस रही. अपनी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ'में नटवर ने यह बयां भी किया.किताब में ऐसे खुलासे कर डाले, जिसने बवंडर ला दिया. नटवर के सीने में गांधी परिवार के कितने गहरे राज दफन थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सालों से बंद बातचीत के बावजूद घबराई सोनिया-प्रियंका को नटवर के घर जाकर माफी मांगनी पड़ी थी. यह किताब आने से ठीक दो महीने पहले का किस्सा है.

क्यों डर गई थीं सोनिया और प्रियंका?

अखबार में किताब को लेकर नटवर का इंटरव्यू छपा था. इसने सोनिया को इतना बेचैन कर दिया कि उसी दिन नटवर के पास 10 जनपथ से फोन जाता है. नटवर मिलने से इनकार करते हैं. इसके बाद प्रियंका फोन करती हैं, नटवर एक हफ्ते बाद का वक्त देते हैं. प्रियंका हफ्ते भर बाद फिर फोन करती हैं और मिलने पहुंचती हैं. वह नटवर को बताती हैं कि उन्हें मां ने भेजा है. वह नटवर से सवाल करती हैं कि क्या वह मई 2004 के वाकये के बारे में कुछ लिखेंगे? इसी बीच कमरे में सोनिया दाखिल होती हैं. नटवर इससे हैरान रह जाते हैं. वह दोनों को भरोसा देते हैं कि कोई घटिया बात नहीं लिखेंगे. लेकिन साफ बता भी देते हैं कि उनके साथ गलत हुआ है. नटवर के ही शब्दों में- 'मैंने सोनिया ने कहा कि मेरे साथ आपने गलत किया है. सोनिया ने कहा कि उन्हें जानकारी नहीं थी. मैंने कहा कि आपके बिना तो कांग्रेस में पत्ता तक नहीं हिलता. सोनिया ने बाद में मुझसे मांफी मांगी.'        

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नटवर ने रखी रिश्तों की लाज, साथ लेकर चले गए वो राज

अपनी किताब 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' यानी 'एक जिंदगी काफी नहीं' को लेकर नटवर ने कई इंटरव्यू दिए. सभी में उन्होंने एक ही बात कही कि उन्होंने सारे राज किताब में खोले हैं. मतलब सोनिया ने पीएम पद क्यों ठुकराया था,  सोनिया ने राजीव गांधी को पीएम बनने से क्यों रोका था  या फिर राहुल ने सोनिया को पीएम पद स्वीकार न करने के लिए क्या दुआई दी थी. लेकिन क्या बात इतनी भर थी. क्या यही वे राज थे जिससे घबराईं सोनिया और प्रियंका नटवर के घर पहुंच गई थीं. वह भी पांच साल तक बंद बातचीत के बाद! नटवर से यह सवाल बार-बार पूछा गया था, लेकिन वह हर बार सवाल को घुमाते रहे. जाहिर है  कांग्रेस के सिपाही ने रिश्तों की लाज रखी और कांग्रेस और सोनिया का वह राज अपने साथ लेकर चले गए.

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