नगालैंड में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP)- भारतीय जनता पार्टी (BJP) गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio)का पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनना लगभग तय हो गया है. सत्तारूढ़ एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन ने गुरुवार को 33 सीट जीतकर 60 सदस्यीय नगालैंड विधानसभा में बहुमत हासिल कर लिया.
इस जीत के साथ रियो ने वरिष्ठ नेता एस सी जमीर का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, जिन्होंने तीन बार पूर्वोत्तर राज्य का नेतृत्व किया था. निर्वाचन आयोग के अनुसार एनडीपीपी प्रमुख रियो ने उत्तरी अंगामी-द्वितीय सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सेइविली साचू को हराकर जीत दर्ज की.
अंगामी नगा परिवार हुआ था जन्म
रियो का जन्म 11 नवंबर 1950 को एक अंगामी नगा परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोहिमा के बैपटिस्ट इंग्लिश स्कूल में प्राप्त की. फिर पश्चिम बंगाल के पुरुलिया स्थित सैनिक स्कूल में अध्ययन के लिए चले गए थे. बाद में उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज, दार्जिलिंग में पढ़ाई की और कोहिमा आर्ट्स कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिए वापस आ गए.
कॉलेज के दिनों में थे छात्र नेता
अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में एक सक्रिय छात्र नेता, रियो ने बहुत कम उम्र में राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने 1974 में कोहिमा जिले में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की युवा शाखा के अध्यक्ष के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी.
राज्य में आठ चुनाव लड़े
अपने लगभग पांच दशक लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने राज्य में आठ चुनाव लड़े हैं. रियो 1987 में केवल पहला चुनाव हारे थे. तब वह एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे. वर्ष 1989 में वह कांग्रेस में शामिल हुए. पहली जीत के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और रियो ने बाद के चुनावों में जीत हासिल की. वह 2002 तक एस सी जमीर के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री भी रहे थे.
2002 में छोड़ी थी कांग्रेस
हालांकि, उस वर्ष उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. रियो 2003 में पहली बार मुख्यमंत्री बने. हालांकि, जनवरी 2008 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर उन्हें मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था. अगले चुनाव में उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. रियो को एनपीएफ के नेतृत्व वाले ‘डेमोक्रेटिक एलायंस ऑफ नगालैंड' के नेता के रूप में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया.
2013 में एनपीएफ ने हासिल किया बहुमत
वर्ष 2013 में अगले राज्य चुनाव में, एनपीएफ ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और रियो को तीसरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री के रूप में फिर से चुना गया. वह 2014 तक इस पद पर बने रहे, जब उन्होंने इस्तीफा देने और संसद में जाने का फैसला किया.
2018 को लोकसभा से दिया इस्तीफा
रियो ने पत्रकारों से कहा था कि राष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने की इच्छा अपने लोगों की आवाज बनने के कारण उत्पन्न हुई, ताकि नगा शांति वार्ता के जल्द समाधान के लिए केंद्र पर दबाव डाला जा सके. इसके बाद उन्होंने नौ फरवरी, 2018 को लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और राज्य की राजनीति में वापस लौट आये थे. अपनी पार्टी - एनपीएफ के भीतर बढ़ते आंतरिक मतभेदों के बाद, रियो नवगठित नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) में शामिल हो गए.
पिछले चुनाव में गठबंधन ने 30 सीटें जीतीं
उन्हें एनडीपीपी नेता के रूप में चुना गया और एनपीएफ और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच गठबंधन साझेदारी को तोड़ने में सफल रहे. रियो ने फिर बीजेपी के साथ चुनाव पूर्व समझौते के साथ राज्य में 2018 का चुनाव लड़ा. गठबंधन ने 30 सीटें जीतीं जिनमें 18 सीटों पर क्षेत्रीय पार्टी को जीत मिली जबकि 12 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली. रियो ने एनपीपी के दो विधायकों और जद (यू) के एक विधायक के समर्थन से सरकार बनाई थी.
इस बार भी एनडीपीपी-बीजेपी ने चुनाव पूर्व गठबंधन किया था और दोनों दलों के बीच यह समझ बनी थी कि रियो राज्य में नई सरकार का चेहरा होंगे.