मुस्लिमों को वसीयत पर शरीयत वाला नहीं, दूसरों जैसा हक मिले, जानें सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यह मामला क्या है

पिछले साल अप्रैल में अलप्पुझा के रहने वाली महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. अब केरल के एक और शख्स ने ऐसी ही याचिका दाखिल की है.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
मुस्लिम याचिकाकर्ता ने SC से वसीयत पर मांगा दूसरों जैसा हक.
नई दिल्ली:

मुस्लिम समुदाय को क्या पैतृक संपत्तियों और स्व-अर्जित संपत्तियों के मामले में शरीयत (Shariat Law) के बजाय धर्मनिरपेक्ष भारतीय उत्तराधिकार कानून के दायरे में लाया जा सकता है,  साथ ही इससे उनकी आस्था पर भी असर नहीं पड़े, सुप्रीम कोर्ट (supreme court) इस मामले पर दायर याचिका पर सुनवाई करेगा. अदालत ने गुरुवार को इस विवादास्पद मुद्दे पर विचार करने पर सहमति जताई 

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने केरल के त्रिशूर जिले के रहने वाले नौशाद के.के. की ओर से दायर याचिका पर संज्ञान लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह धर्म के रूप में इस्लाम का त्याग किए बिना शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत आना चाहते हैं. बेंच ने उनकी याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा. 

वसीयत पर नहीं चाहिए शरीयत वाला कानून 

याचिका में कहा गया कि शरीयत के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति का केवल एक तिहाई हिस्सा ही वसीयत के माध्यम से दे सकता है. सुन्नी मुसलमानों में यह अधिकार गैर-उत्तराधिकारियों तक ही सीमित है. शेष दो-तिहाई हिस्सा निर्धारित इस्लामी उत्तराधिकार सिद्धांतों के अनुसार कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच वितरित किया जाना चाहिए. इससे कोई भी विचलन, तब तक अमान्य माना जाएगा जब तक कि कानूनी उत्तराधिकारी सहमति न दें. वसीयत की स्वतंत्रता पर यह प्रतिबंध गंभीर संवैधानिक चिंताओं को जन्म देता है.

Advertisement

दूसरों की तरह वसीयत बनाने की आजादी नहीं

याचिका में तर्क दिया गया कि धार्मिक उत्तराधिकार नियमों का अनिवार्य अनुप्रयोग संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) जैसे प्रमुख प्रावधानों का उल्लंघन करता है. मुसलमानों को वसीयत बनाने की वही स्वतंत्रता नहीं दी जाती जो अन्य समुदायों के सदस्यों को दी जाती है, यहां तक ​​कि धर्मनिरपेक्ष विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने वाले मुसलमानों को भी यह स्वतंत्रता नहीं दी जाती और इससे मनमाना और भेदभावपूर्ण वर्गीकरण पैदा होता है.

Advertisement

दूसरे समुदायों की तरह वसीयत की आजादी मिले

याचिकाकर्ता ने विधायिका से यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया कि वह धार्मिक पहचान के बावजूद सभी व्यक्तियों के लिए वसीयत संबंधी स्वायत्तता सुनिश्चित करने के वास्ते आवश्यक संशोधनों या दिशानिर्देशों को लागू करने पर विचार करे.. बेंच ने  नोटिस जारी करते हुए  इस याचिका को इसी मुद्दे पर लंबित समान मामलों के साथ संलग्न करने का आदेश दिया.

Advertisement

तीन याचिकाओं पर एक साथ होगी सुनवाई

इससे पहले, पिछले साल अप्रैल में बेंच ने अलप्पुझा के रहने वाली ‘एक्स-मुस्लिम्स ऑफ केरल' की महासचिव सफिया पी एम की याचिका पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की थी. याचिका में कहा गया था कि वह एक नास्तिक मुस्लिम महिला हैं और वह अपनी पैतृक संपत्तियों का निपटान शरीयत के बजाय उत्तराधिकार कानून के तहत करना चाहती हैं. इसी तरह ‘कुरान सुन्नत सोसाइटी' ने 2016 में एक याचिका दायर की थी जो शीर्ष अदालत में लंबित है. अब तीनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी.
 

Advertisement

इनपुट- भाषा के साथ

Featured Video Of The Day
Etawah Kathavachak News: जाति व्यवस्था और संविधान पर क्या बोले स्वामी शंकराचार्य? | NDTV Exclusive