केरल में मुस्लिम दंपति स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दोबारा करेंगे शादी, जानिए इसके पीछे की वजह

पश्चिमी देशों में और कुछ हिंदू जातियों में जोड़े अक्सर अपनी वैवाहिक जीवन के कुछ साल पूरे होने के बाद अपने जीवनसाथी से दोबारा शादी करते हैं. लेकिन यह जोड़ा मुस्लिम विरासत कानूनों की कुछ शर्तों की वजह से अपनी शादी को फिर से रजिस्टर कराने के लिए दोबारा शादी करने जा रहे हैं.

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टीवी चैनल से बात में शुक्कुर ने कहा, "हम सिर्फ अपनी बेटियों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं."

केरल के कासरगोड जिले में एक मुस्लिम जोड़ा अपनी तीन बेटियों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत दोबारा शादी करने जा रहा है. एडवोकेट और अभिनेता सी शुक्कुर को कुंचाको बोबन अभिनीत फिल्म 'नना थान केस कोडू' (सू मी देन) में एक वकील के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है. वहीं, उनकी पत्नी शीना महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर रही है. दोनों ही 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौक पर दोबारा शादी करेंगे.

पश्चिमी देशों में और कुछ हिंदू जातियों में जोड़े अक्सर अपनी वैवाहिक जीवन के कुछ साल पूरे होने के बाद अपने जीवनसाथी से दोबारा शादी करते हैं. लेकिन यह जोड़ा मुस्लिम विरासत कानूनों की कुछ शर्तों की वजह से अपनी शादी को फिर से रजिस्टर कराने के लिए दोबारा शादी करने जा रहे हैं. जिन कानूनों में कहा गया है कि बेटियों को अपने पिता की संपत्ति का केवल दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा और बाकी पुरुष उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति में उसके भाइयों के पास जाएगा.

दंपति, जिनकी शादी को अब 29 साल हो चुके हैं, एसएमए के तहत अपनी शादी को फिर से पंजीकृत कराकर स्थिति को बदलने की उम्मीद कर रहे हैं. एक फेसबुक पोस्ट में, शुक्कुर ने कहा कि उनके अनुभवों ने उन्हें यह सोचने के लिए मजबूर  किया कि वह अपनी बेटियों के लिए क्या छोड़ रहे हैं और क्या वे उनकी सारी बचत और संपत्ति को प्राप्त करेंगे. शुक्कुर की चिंता यह थी कि 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट और अदालतों द्वारा लिए गए स्टैंड के अनुसार, पिता की संपत्ति का केवल दो-तिहाई हिस्सा बेटियों के पास जाता है.

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जबकि बाकी पुरुष संतान न होने पर उसके भाइयों के पास जाता है. उन्होंने अपने पोस्ट में कहा कि शरिया कानून के तहत वसीयत छोड़ने की अनुमति नहीं है. शुक्कुर के अनुसार, इस दुर्दशा से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका एसएमए के तहत शादी करना है. इसलिए उन्हें उम्मीद है कि उनका फैसला मुस्लिम परिवारों में बेटियों के साथ होने वाले लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का रास्ता दिखाएगा और लड़कियों के आत्मविश्वास और सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगा.

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उन्होंने अपने पोस्ट में कहा, "अल्लाह हमारी बेटियों के आत्मविश्वास और सम्मान को बढ़ाए. अल्लाह और हमारे संविधान के सामने सभी समान हैं." उन्होंने अपने पोस्ट में आगे कहा, कि पुनर्विवाह करने का उनका यह निर्णय किसी को या किसी चीज को या वर्तमान में मौजूद शरिया कानून की अवहेलना करने के लिए नहीं था. उन्होंने कहा, "हम केवल इस संभावना की तलाश कर रहे हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ विशेष विवाह अधिनियम के माध्यम से शादी करने वालों को प्रभावित नहीं करेगा. शीना और मैं अपने बच्चों के लिए पुनर्विवाह कर रहे हैं."

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एक टीवी चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हम सिर्फ अपनी बेटियों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं." उनकी पत्नी, जिन्होंने भी चैनल से बात में कहा कि वे जिस कठिनाई से गुज़रे हैं, उसका सामना ऐसे कई मुस्लिम परिवारों को करना पड़ता है, जिनकी केवल बेटियां हैं. "कॉलेज में पढ़ाते समय या किसी सार्वजनिक मंच पर बोलते समय, इसके खत्म होने के बाद, कई माता-पिता मेरे पास आते हैं और पूछते हैं कि क्या यह (विरासत का मुद्दा) सही है. शीना ने कहा, "हम इसे वर्षों से सुनते आ रहे हैं. हम किसी को इसके बारे में कुछ करने के लिए कह सकते हैं या हमारे पास दो विकल्प हैं - कानूनी रास्ता अपनाएं या अपने जीवन विकल्पों के माध्यम से रास्ता दिखाएं, हमें वह करना चाहिए जो हम कर सकते हैं."

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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