हिंदुओं के घर जलते रहे, प्रशासन देखा रहा...मुर्शिदाबाद हिंसा की रिपोर्ट पर बीजेपी ने ममता को घेरा

समिति में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के रजिस्ट्रार (कानून) जोगिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल विधिक सेवा प्राधिकरण (डब्ल्यूबीएलएसए) के सदस्य सचिव सत्य अर्नब घोषाल और डब्ल्यूबीजेएस के रजिस्ट्रार सौगत चक्रवर्ती शामिल हैं.

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मुर्शिदाबाद हिंसा की रिपोर्ट पेश
बंगाल:

मुर्शिदाबाद हिंसा को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से तृणमूल कांग्रेस को निशाने पर लिया है. भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने अपने एक्स पर हिंसा से जुड़ी रिपोर्ट शेयर की है. इस रिपोर्ट को शेयर कर अमित मालवीय ने पश्चिम बंगला सरकार तृणमूल कांग्रेस को घेरते हुए लिखा कि कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा गठित एक कमेटी की रिपोर्ट में साफ तौर पर टीएमसी को हिंसा भड़काने और स्थिति को नियंत्रित करने में निष्क्रिय रहने का दोषी ठहराया गया है.

हिंदुओं के घर जलते रहे, प्रशासन देखता रहा

कमेटी में एनएचआरसी के एक सदस्य और पश्चिम बंगाल विधि एवं न्यायिक सेवा के अधिकारियों ने हिस्सा लिया था, जिससे इस रिपोर्ट को संस्थागत विश्वसनीयता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि टीएमसी के निर्वाचित प्रतिनिधियों, जिसमें स्थानीय पार्षद और विधायक शामिल हैं, उन्होंने न केवल हिंसा को बढ़ावा दिया, बल्कि उनकी सक्रिय भागीदारी और निष्क्रियता ने पुलिस और नागरिक प्रशासन को भी निष्क्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित किया. इस दौरान हिंदू समुदाय के घरों को जलाए जाने की घटनाएं हुईं, और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा.

वोट-बैंक की राजनीति के लिए हिंसा को बढ़ा

अमित मालवीय ने लिखा कि रिपोर्ट ने ममता बनर्जी के उस दावे को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि दंगों के लिए "बाहरी लोग" जिम्मेदार थे. मुर्शिदाबाद दंगे टीएमसी द्वारा सुनियोजित थे, जिसका मकसद इस संवेदनशील सीमाई जिले में हिंदुओं की जनसांख्यिकीय संख्या को कम करना था. इस रिपोर्ट को ममता बनर्जी और उनकी सरकार के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है. इस मामले पर ममता बनर्जी पर वोट-बैंक की राजनीति के लिए हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है.

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कलकत्ता हाई कोर्ट की रिपोर्ट में हिंसा की ये वजह

मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ विरोधी प्रदर्शनों से संबंधित हिंसा के पीड़ितों की पहचान और पुनर्वास के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 अप्रैल को धुलियान में हुई घटनाओं के दौरान स्थानीय पुलिस ‘‘निष्क्रिय और अनुपस्थित'' थी. इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि मुर्शिदाबाद के धुलियान कस्बे में हमलों का निर्देश एक स्थानीय पार्षद ने दिया था.

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विहिप ने भी ममता सरकार पर साधा निशाना

विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि दीदी की पांच सदस्य टीम बंगाल से जम्मू कश्मीर तो जाएगी लेकिन, मुर्शिदाबाद की याद नहीं आएगी. दीदी को मुर्शिदाबाद छोड़ जम्मू कश्मीर में तबाह हुए आतंकी ठिकानों की चिंता है!! अच्छा होता इस टीम को आप पहले मुर्शिदाबाद भेजती जहां आपके टीएमसी के नेता के इशारे पर ही हुआ था हिंदुओं का नरसंहार और पलायन.

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माननीय उच्च न्यायालय की जांच समिति की वह वीभत्स रिपोर्ट को एक बार पढ़ लेती तो अच्छा है जहां जिहादी हिंसा के दौरान आपनी पुलिस निष्क्रिय और अनुपस्थित थी. इस जांच दल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण व न्यायिक सेवाओं के सदस्य भी शामिल थे. इस रिपोर्ट में अंधाधुंध आगजनी, लूटपाट, दुकानों बाजारों को नष्ट करने की बात भी उजागर हुई है. माननीय उच्च न्यायालय तो अपना निर्णय देगा ही, कुछ थोड़ी बहुत शर्म बची हो तो अब तो कम से कम इस घटना पर ममता जी को माफी मांग कर पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाना ही चाहिए.

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3 सदस्यीय समिति द्वारा हाई कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट

3 सदस्यीय समिति द्वारा हाई कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि धुलियान में कपड़ों के एक शोरूम में भी लूटपाट की गई थी. ‘‘मुख्य हमला'' 11 अप्रैल की दोपहर को होने का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘स्थानीय पुलिस पूरी तरह से निष्क्रिय और अनुपस्थित थी.'' समिति में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के रजिस्ट्रार (कानून) जोगिंदर सिंह, पश्चिम बंगाल विधिक सेवा प्राधिकरण (डब्ल्यूबीएलएसए) के सदस्य सचिव सत्य अर्नब घोषाल और डब्ल्यूबीजेएस के रजिस्ट्रार सौगत चक्रवर्ती शामिल हैं.

समिति ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा और पीड़ितों से बात करने के बाद पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी. सत्रह अप्रैल को, उच्च न्यायालय ने मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा से विस्थापित हुए लोगों की पहचान और पुनर्वास के लिए समिति के गठन का आदेश दिया था. न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘‘राज्य द्वारा अपने नागरिकों के एक वर्ग की सुरक्षा करने में विफलता में सुधार करने का एकमात्र उपाय मूल्यांकन के लिए योग्य विशेषज्ञों की नियुक्ति करना है.''

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