मुगल मस्जिद नमाज मामला: अदालत ने एएसआई, केंद्र से मांगा जवाब

दिल्ली के महरौली इलाके में मुगल मस्जिद में नमाज रोकने के एएसआई के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कोर्ट ने अब एएसआई और केंद्र से नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

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13 मई 2022 से मुगल मस्जिद में नमाज अदा करने पर पूरी तरह से रोक
नई दिल्‍ली:

दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की उस याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से अपना रुख स्पष्ट करने कहा, जिसमें बोर्ड ने महरौली इलाके में मुगल मस्जिद में नमाज अदा करने से रोकने के मामले में लंबित उसकी याचिका के जल्द निपटान का अनुरोध किया है. न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने बोर्ड की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये नोटिस जारी किए. याचिका में उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के आलोक में बोर्ड द्वारा मामले की सुनवाई निर्धारित तिथि 21 अगस्त से पहले करने का अनुरोध किया है.

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से मामले को जल्द से जल्द निपटाने का अनुरोध किया था. याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील एम. सूफियान सिद्दीकी ने कहा, "मामला काफी समय से लंबित है." उन्होंने मामले को सुनवाई के वास्ते 27 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध करने की अपील भी की.

सिद्दीकी ने कहा कि मामले में तत्काल सुनवाई की जरूरत है, क्योंकि रमजान का महीना चल रहा है जो जल्द ही ईद-उल-फितर पर समाप्त होगा और लोग मुगल मस्जिद में नमाज अदा करने का इंतजार कर रहे हैं. न्यायमूर्ति ओहरी ने कहा, "नोटिस जारी करें. मामले को अप्रैल अंत में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें."

बोर्ड ने दिल्ली के महरौली इलाके में मुगल मस्जिद में नमाज रोकने के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया है. उच्च न्यायालय का रुख करते हुए याचिकाकर्ता ने शिकायत की कि एएसआई के अधिकारियों ने बिना कोई नोटिस या आदेश जारी किए 13 मई 2022 से मुगल मस्जिद में नमाज अदा करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी, जो "पूरी तरह से गैर-कानूनी, मनमाना और जल्दबाजी में" किया गया फैसला है.

इस पहले उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उसने मस्जिद में नमाज रोकने के खिलाफ दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की अर्जी पर समय से पहले सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से कहा था कि वह लंबित मामले में सुनवाई करे और यथाशीघ्र इस पर निर्णय करे.

याचिका में कहा गया कि मस्जिद को संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है या यह संरक्षित घोषित स्मारकों का हिस्सा भी नहीं है तथा पिछले साल 13 मई से पहले इसे नमाज के लिए कभी बंद नहीं किया गया था. उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका के जवाब में एएसआई ने कहा कि मस्जिद कुतुब मीनार की सीमा के भीतर आती है और इसलिए वह संरक्षित क्षेत्र के भीतर है, जहां नमाज की अनुमति नहीं दी जा सकती.

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