MSP गारंटी कानून से हिल जाएगी अर्थव्यवस्था, कृषि कानून समूह के सदस्य ने किया आगाह

घनावत ने कहा, अगर एमएसपी पर कानूनी गारंटी आती है तो अर्थव्यवस्था संकट में घिर जाएगी. ऐसे में कोई भी फसल नहीं खरीदेगा, क्योंकि एमएसपी से कम कीमत पर खरीद गैरकानूनी हो जाएगी.

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एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग कर रहा है संयुक्त किसान मोर्चा
नई दिल्ली:

कृषि कानूनों (Farm Laws) की वापसी तय होने के बाद अब कृषि क्षेत्र की पूरी बहस न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP guarantee law) गारंटी कानून की ओर मुड़ गई है. कृषि विशेषज्ञों ने इसको लेकर सरकार को आगाह किया है. कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य अनिल घनावत ने कहा है कि अगर सरकार फसलों पर घोषित एमएसपी को कानूनी गारंटी के लिए विधेयक लाती है तो अर्थव्यवस्था हिल जाएगी. घनावत ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी के कदम को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया.घनावत ने कहा कि अगर एमएसपी को कानूनी गारंटी की शक्ल दी जाती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में आ जाएगी.

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घनावत ने एएनआई से बातचीत में कहा, अगर एमएसपी पर कानूनी गारंटी आती है तो अर्थव्यवस्था संकट में घिर जाएगी. ऐसे में कोई भी फसल नहीं खरीदेगा, क्योंकि एमएसपी से कम कीमत पर खरीद गैरकानूनी हो जाएगी. कारोबारियों को इसके लिए जेल भेजा जाने लगेगा. शेतकारी संगठन के अध्यक्ष घनावत ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार और किसान नेताओं को कोई और उपाय खोजना चाहिए, क्योंकि एमएसपी पर गारंटी कानून समाधान नहीं है. 

इससे न केवल कारोबारी बल्कि स्टाकिस्ट और इस व्यवसाय से जुड़े अन्य लोगों को भी नुकसान पहुंचेगा. कमोडिटी मार्केट भी बुरी तरह प्रभावित होगा. घनावत ने कहा, "हम एमएसपी के खिलाफ नहीं है, लेकिन खरीद प्रक्रिया को पूरी तरह खरीद प्रक्रिया को इसके अधीन लाना समस्या है. हमें बफर स्टॉक के लिए 41 लाख टन अनाज की जरूरत है, जबकि हम 110 लाख टन अनाज खरीद रहे हैं. अगर एमएसपी पर कानून बनता है तो सभी किसान फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य मांगने लगेंगे."

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कृषि कानूनों की वापसी को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा, किसान पिछले 40 साल से कृषि सुधारों की मांग कर रहे थे, क्योंकि कृषि की मौजूदा पद्धति पर्याप्त नहीं है. लेकिन ताजा कदम ठीक नहीं है. अगर कृषि कानूनों में कोई खामी थी तो उसे ठीक किया जा सकता था, मुझे लगता था कि इस सरकार में कृषि सुधारों को आगे ले जाने की इच्छाशक्ति है. उम्मीद है कि विपक्षी नेताओं, किसान नेताओं और अन्य विशेषज्ञों को मिलाकर एक समिति बनाई जाएगी और नए कृषि कानूनों का रास्ता साफ होगा.

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