कुछ पुलिसकर्मी गुरुवार सुबह Oreva ग्रुप के दफ्तर पहुंचे, लेकिन वहां पर ताला लगा मिला. जिसके बाद पुलिसकर्मी लौट गए. यह वही कंपनी है, जिसके पास उस पुल के मरम्मत का कॉन्ट्रेक्ट था, जिसके टूटने पर 130 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई.
कुछ रिपोर्ट्स में इसे 'छापेमारी' करार दिया गया है, जबकि पुलिस सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि यह दौरा कंपनी के गिरफ्तार किए गए नौ कर्मचारियों के कुछ दावों की जांच करने पुलिसकर्मी वहां गए थे.
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कंपनी का शीर्ष प्रबंधन (जो मुख्य रूप से 'अजंता' दीवार घड़ियां बनाने के लिए जाना जाता है) को किसी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा है. इसमें इसके प्रबंध निदेशक जयसुखभाई पटेल शामिल हैं, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि पुल मरम्मत के बाद कम से कम आठ-दस साल टिक जाएगा. पुल को निर्धारित समय से पहले 26 अक्टूबर को फिर से जनता के लिए खोल दिया गया था.
जयसुखभाई पटेल ने मोरबी नगर निगम के साथ कॉन्ट्रेक्ट किया था.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ ही मृतकों के रिश्तेदार भाजपा सरकार पर सवाल रहे हैं कि कॉन्ट्रेक्ट साइन करने वाले Oreva और मोरबी नगर निगम के अधिकारियों के नाम शिकायत में क्यों नहीं दर्ज हैं.
कॉन्ट्रेक्ट के मुताबिक, कंपनी को पुल को मरम्मत के लिए 8-12 महीने तक बंद रखना था. लेकिन सिर्फ सात महीने बाद इसे फिर से खोल दिया गया और चार दिन बाद यह गिर गया.
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पुलिस ने कोर्ट को बताया है कि Oreva मरम्मत कार्य के लिए योग्य नहीं थी, फिर भी उसे 2007 में और फिर 2022 में काम दिया गया. यह कॉन्ट्रेक्ट 15 साल के लिए दिया गया था. ओरेवा ने काम के लिए एक छोटी फर्म को हायर किया था.
माचू नदी पर बने पुल के फर्श को बदल दिया गया था लेकिन उसके केबल नहीं बदले गए थे. अभियोजन पक्ष ने कहा कि केबल नई फर्श (चार-परत वाली एल्यूमीनियम शीट) का वजन नहीं सहन कर सकीं और टूट गया.
सरकारी वकील एचएस पांचाल ने मीडिया से कहा कि गिरफ्तार किए गए ओरेवा ग्रुप के एक मैनेजर ने स्थानीय कोर्ट में राहत की मांग करते हुए हादसे को "भगवान का मर्जी" करार दिया था.
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