मोदी 3.0: कानून बनाने की स्पीड पर ब्रेक लगा, लेकिन गरीबों-गांवों के विकास की रफ्तार हुई दोगुनी

PM मोदी के तीसरे कार्यकाल में पुराने दो टर्म्स से फर्क साफ दिख रहा है. सरकार का अब योजनाओं और प्रोजेक्ट्स पर जोर है. मोदी 3.0 बता रहा है कि सरकार पहले की तेज रफ्तार की बजाए अब स्मार्ट स्पीड पर काम कर रही है.

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  • मोदी 3.0 में में विधायी गति धीमी, लेकिन योजनाओं और परियोजनाओं पर फोकस बढ़ा है.
  • 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' जैसे विधेयक पेश किए गए, लेकिन विवादास्पद विधेयक अब ज्यादा सतर्कता से लाए जा रहे हैं.
  • आर्थिक पुनरुद्धार, हरियाली, डिजिटल क्रांति और व्यापक सामाजिक कल्याण योजनाओं को प्राथमिकता दी जा रही है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के दौरान दूसर वर्ष आज से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ है. इस बार यानी 2025 के शीतकालीन सत्र में सरकार 10 विधेयक संसद में पेश करने की योजना बना रही है. लेकिन केंद्र सरकार की अब कानून बनाने की गति पहले जैसी नहीं है. अब सरकार का फोकस घर, बिजली, लोन, इलाज जैसी चीजें गरीबों तक पहुंचाने की योजनाओं पर है. शीतकालीन सत्र के पहले दिन पीएम मोदी ने नीति बनाने की नियत का राग छेड़ा है. मोदी सरकार का सपना 2047 तक भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है, जिसमें जीडीपी को 7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य शामिल है. इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने आर्थिक विकास, हरित ऊर्जा और डिजिटल इंडिया में नई जान फूंकी है.

जून 2024 में तीसरा कार्यकाल शुरू करने वाली प्रधानमंत्री मोदी सरकार की कार्यशैली और विधायी प्राथमिकताओं में पिछले दो कार्यकालों की तुलना में स्पष्ट बदलाव देखने को मिला है. पहले दो कार्यकालों के मुकाबले अब सरकार ने व्यापक सुधारों के बजाय सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास पर अधिक जोर दिया है.

विधायी गतिविधियों की गति में कमी

पहले दो कार्यकालों में नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश में बड़े पैमाने पर संरचनात्मक और राजनीतिक सुधार लागू किए. इनमें नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना (अनुच्छेद 370 का हटाना), तीन तलाक कानून जैसे विवादास्पद फैसले अहम थे. साथ ही, जीएसटी जैसे आर्थिक सुधार भी (कई संशोधनों के साथ) तेजी से लागू किए गए. इन वर्षों में संसद के शीतकालीन एवं बजट सत्रों में कई महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण विधेयक पारित किए गए जिन्हें राजनीतिक दृष्टि से सरकार की सक्रियता का प्रतीक माना गया. 

लेकिन अब तीसरे कार्यकाल में विधायी गतिविधियों की गति में कमी आई है. 2024 के संसदीय चुनाव में बीजेपी को 240 सीटें मिली थीं. ऐसे में अब गठबंधन के साथी जैसे जेडीयू, टीडीपी से बात करनी पड़ती है. इससे फर्क ये आया है कि विवाद वाले बिलों को अब आसानी से पास नहीं कराया जा सकता. 2024-2025 के दौरान संसद में कई प्रस्तावित बिलों को समिति में भेजा गया या विचार के लिए स्थगित कर दिया गया. जानकार इसका बड़ा कारण बीजेपी की संसद में संख्या बल में आई कमी को बताते हैं. उनका कहना है कि अब सरकार को सहयोगी पार्टियों से संतुलन साधते हुए सबसे प्रभावी और विवादास्पद विधेयकों को लेकर ज्यादा सतर्क रहना पड़ रहा है.

बतौर उदाहरण, 'वन नेशन, वन इलेक्शन' विधेयक संसद में पेश किया गया और इसे मंजूरी तो मिली, लेकिन इसे लागू करने के लिए संसदीय समिति के सुझावों का इंतजार है. इसी तरह 'वक्फ अमेंडमेंट बिल' भी है जिसे संसद के पटल पर रखा तो गया पर विरोध होने पर इसे कमिटी को भेज दिया गया. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस टर्म में ही 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' लागू करेंगे, लेकिन सावधानी से, यह बदलाव गठबंधन की मजबूरी है. इस बदलाव से यह बहुत हद तक स्पष्ट है कि अब केंद्र सरकार नीति-निर्माण में सहमति और व्यापक भागीदारी को अधिक तवज्जो दे रही है.

कल्याण और विकास पर जोर

पहले टर्म्स में 100 दिनों में ढेर सारे कानून बने, अब 100 दिनों में ज्यादा प्रोजेक्ट्स शुरू हुए. केंद्र सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल की कार्यवाही का फोकस सामाजिक कल्याण, आर्थिक पुनरुद्धार और पर्यावरण संरक्षण जैसी प्राथमिकताओं पर केंद्रित किया है. प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में करोड़ों घर बनाए गए हैं तो 'पीएम-सूर्य घर' जैसी मुफ्त बिजली योजनाओं पर तेजी से काम हुआ है.

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इसके अलावा कोविड-19 महामारी से अर्थव्यवस्था पर पड़े असर से उबरने के लिए सरकार ने रोजगार, एमएसएमई विकास और डिजिटल इंडिया 2.0 जैसे कई आर्थिक योजनाओं को बढ़ावा दिया है. युवाओं के लिए 2 लाख करोड़ का स्पेशल पैकेज तो मुद्रा लोन 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख करने का फैसला, वहीं एमएसएमई को सपोर्ट और छोटे बिजनेस को लोन आसानी से देने का फैसला केंद्र सरकार के इस तीसरे कार्यकाल के कुछ अहम कार्य हैं.

साथ ही ग्रीन एनर्जी में निवेश को बढ़ावा देने की परियोजनाओं को भी लाया गया है ताकि भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ा जा सके. इतना ही नहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्माण भारत योजना को भी विस्तार दिया गया है, जहां बुजुर्गों को मुफ्त इलाज की गारंटी दी गई है. यानी सरकार केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण को भी अहमियत दे रही है.

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राजनीतिक संदर्भ: गठबंधन और रणनीतिक सहमति

ऐसा लगता है कि अपने तीसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार ने गठबंधन राजनीति की भूमिका को स्वीकार कर लिया है. संख्याबल कम होने की वजह से अब उसे गठबंधन के दलों के सहयोग से शासन चलाना पड़ रहा है. इससे जहां एक ओर विधायी प्रक्रिया में देरी हो रही है तो दूसरी तरफ इसे व्यापक जनसमर्थन भी मिल रहा है. नई चुनौतियों के मद्देनजर विवादास्पद मुद्दों पर सरकार ने एक नरम रुख अपनाया है.

सरकार इस समय विकास और कल्याण पर केंद्रित नीतियों को प्रमुखता दे रही है. यह बदलाव सरकार के व्यापक लक्ष्यों के प्रति उसकी सयंमित और रणनीतिक सोच को दर्शाता है. विकास की यह नीति अब विवादों से कम जुड़ी है जिसके परिणाम देश की व्यापक जन-भागीदारी और सहयोगी राजनीति से निकलेंगे. यही मोदी 3.0 की विधायी और शासन की नई प्रतिबद्धता है. 

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तो इस तरह नरेंद्र मोदी 3.0 को भारतीय राजनीति और प्रशासनिक इतिहास में एक नया अध्याय माना जा रहा है, जिसमें विकास की गति तो बरकरार है, पर रास्ता ज्यादा समझदारी और सहयोगियों के साथ चुना जा रहा है.

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