विधायकों को डर : क्या भाजपा 2023 के चुनाव में मप्र में गुजरात फार्मूला लागू करेगी?

पंद्रह साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा मध्य प्रदेश में 2018 का विधानसभा चुनाव हार गई थी, जिससे कांग्रेस के कमलनाथ के नेतृत्व में निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायकों की मदद से सरकार बनी. 

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मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127 और कांग्रेस के 96 सदस्य हैं.

गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) में नतीजों ने भले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को उत्साह से भर दिया हो लेकिन मध्य प्रदेश में पार्टी विधायकों और नेताओं के एक धड़े को यह डर है कि गुजरात (जहां पिछले साल पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया गया था और कई मौजूदा विधायकों को टिकट से वंचित कर दिया था) की रणनीति यहां भी दोहराई न जाए.

मध्य प्रदेश में 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी के कई विधायक राज्य में सत्ता विरोधी लहर को दूर करने के लिए ‘‘गुजरात फार्मूले'' के यहां अपनाने को लेकर चिंतित दिखाई दिए. मध्य प्रदेश में भाजपा करीब 20 साल से सत्ता में है.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘‘कृषि के लिए जमीन तैयार करने और खेतों की जुताई एवं नए बीज बोने से पहले हमें बासी जड़ों को हटाने की जरुरत है, जिसे हम मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में गुजरात फार्मूला कह सकते हैं.''

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हाल में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ‘‘गुजरात फार्मूले'' के बारे में संवाददाताओं के सवाल पर विस्तार से बताए बिना कहा, ‘‘ न केवल मध्य प्रदेश बल्कि इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा.''

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उन्होंने कहा, ‘‘गुजरात एक आदर्श राज्य बन गया है. सात बार जीतने के बाद भी भाजपा के पक्ष में वोट शेयर बढ़ा है. आजादी के बाद से ऐसा किसी राज्य में पहली बार हुआ है.''

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पश्चिम बंगाल के प्रभारी महासचिव रह चुके विजयवर्गीय ने कहा कि कम्युनिस्टों ने लंबे समय तक (34 साल तक) पूर्वी राज्य (पश्चिम बंगाल) में शासन किया लेकिन हर चुनाव में उनका वोट प्रतिशत घटता रहा.

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उन्होंने कहा, ‘‘इसके विपरीत भाजपा का वोट प्रतिशत 1995 (गुजरात में जब पार्टी सत्ता में आई) 42 से बढ़कर अब 54 प्रतिशत हो गया है. जो लोग (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी को गाली देते हैं, उन्हें उनके काम और राजनीति से सीखना चाहिए.''

हिमाचल प्रदेश में भाजपा सत्ता कायम नहीं रख सकी, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी दल हर पांच साल में बदल जाता है. हाल में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में सत्ता में आई है.

गुजरात में भाजपा ने एक साल पहले सितंबर में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और उनके मंत्रिमंडल को बदल दिया और भूपेंद्र पटेल को नया मुख्यमंत्री बनाया था. इसके अलावा दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने 45 विधायकों की जगह नए चेहरों को चुनाव में उतारा. नए लोगों में से दो को छोड़कर बाकी सभी विजयी रहे.

बड़े पैमाने में पर बदलाव करने के बाद भाजपा ने गुजरात में रिकॉर्ड जीत के साथ 182 सीटों में से 156 पर जीत हासिल की और लगातार सातवीं बार राज्य में चुनाव जीता. भाजपा की गुजरात रणनीति के बारे में पूछे जाने पर मंदसौर से तीन बार के विधायक भाजपा के यशपाल सिसोदिया ने कहा कि जरुरत पड़ने पर यहां भी बदलाव किए जा सकते है. सिसोदिया ने कहा, ‘‘बहुत कुछ स्थानीय परिस्थितियों और सरकार व संगठन में बैठे नेताओं की राय पर निर्भर करता है.''

गुजरात की सफल रणनीति को मध्य प्रदेश में लागू करने के सवाल पर भोपाल की हुजूर सीट से भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि इस संबंध में फैसला पार्टी नेतृत्व को करना है. वह पार्टी और लोगों की हित में निर्णय करेगा. हालांकि, पार्टी के एक विधायक ने खुले तौर पर गुजरात की तरह रणनीति मध्य प्रदेश में अपनाने की बात कही है.

सतना जिले के मैहर से भाजपा के विधायक नारायण त्रिपाठी ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर चुनाव से पहले सत्ता विरोधी लहर को दूर करने के लिए राज्य में संगठन-सत्ता संरचना में आमूलचूल परिवर्तन करने की मांग की थी.

कांग्रेस और सपा के टिकट पर भी पूर्व में सफलतापूर्वक चुनाव लड़ चुके त्रिपाठी ने कहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा को चुनाव जीतना चाहिए और उम्मीद है कि केंद्रीय नेतृत्व द्वारा उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया जाएगा. राजनीतिक पर्यवेक्षक एवं वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शुकर ने कहा कि गुजरात फार्मूला शब्द मीडिया द्वारा गढ़ा गया है.

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा ने मध्य प्रदेश में लगातार तीन कार्यकाल (2003, 2008, 2013) जीते क्योंकि कांग्रेस सक्रिय रुप से चुनाव नहीं लड़ रही थी और जब कांग्रेस ने आक्रामक तरीके से चुनाव लड़ा तो उसने 2018 में भाजपा को हरा दिया.''

उन्होंने कहा कि गुजरात रणनीति में नया कुछ भी नहीं है क्योंकि आजादी के बाद के चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो अधिकतर राजनीतिक दल अपने मौजूदा विधायकों/ सांसदों में से करीब 30 फीसद को टिकट देने से इनकार करते हैं. उन्होंने कहा कि गुजरात में एक मात्र नयी बात यह हुई कि भाजपा ने चुनाव से एक साल पहले मुख्यमंत्री सहित पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया, लेकिन इसे प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य में भाजपा की रिकार्ड जीत से नहीं जोड़ा जा सकता.

शंकर का मानना है कि गुजरात की जीत राज्य के लोगों के साथ मोदी के व्यक्तिगत और भावनात्मक जुड़ाव के कारण अधिक हुई. वहां कांग्रेस ने एक उत्साही लड़ाई नहीं लड़ी और सत्ताधारी दल को ‘वाकओवर' दे दिया. उन्होंने कहा, ‘‘अगर कांग्रेस गुजरात की तरह मध्य प्रदेश का चुनाव लड़ती है तो भाजपा यहां आसानी से जीत सकती है.''

पंद्रह साल सत्ता में रहने के बाद भाजपा मध्य प्रदेश में 2018 का विधानसभा चुनाव हार गई थी, जिससे कांग्रेस के कमलनाथ के नेतृत्व में निर्दलीय, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायकों की मदद से सरकार बनी. हालांकि, ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार लगभग दो दर्जन कांग्रेस के विधायकों के विद्रोह और कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने से मार्च 2020 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई. इसके बाद राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी. वर्तमान में मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127 और कांग्रेस के 96 सदस्य हैं.

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