अंकिता हत्याकांड की जांच CBI से करवाने की मांग को लेकर बुलाए गए उत्तराखंड बंद का मिलाजुला असर

अंकिता भंडारी हत्याकांड की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराये जाने की मांग को लेकर रविवार को उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा आहूत राज्यव्यापी बंद का मिलाजुला असर रहा.

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देहरादून:

अंकिता भंडारी हत्याकांड की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराये जाने की मांग को लेकर रविवार को उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा आहूत राज्यव्यापी बंद का मिलाजुला असर रहा. यहां के मुख्य बाजार क्षेत्रों में कई दुकानें बंद रहीं, जबकि कई अन्य प्रतिष्ठान सामान्य दिनों की तरह कारोबार के लिए खुले रहे. कुछ लोगों ने सुबह दुकान खोली थी, लेकिन जब बंद समर्थक नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आये तो उन्होंने अपनी दुकानों को बंद कर दिया.

एक महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘‘यह कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं है. यह हमारी बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की लड़ाई है. इसलिए सभी को बंद का समर्थन करना चाहिए.'' भंडारी के गृह जिले पौड़ी में लगभग पूर्ण बंद रहा, जहां लगभग सभी दुकानें बंद रहीं और सड़कों पर वाहनों की संख्या कम रही. कोटद्वार, श्रीनगर और पौड़ी के बाजार इलाकों में भी सन्नाटा पसरा रहा. सीमावर्ती जिले चमोली में स्थानीय आवागमन के लिए बनी जीप और टैक्सी सड़कों से पूरी तरह नदारद रही.

केवल रोडवेज की बस और तीर्थयात्रियों को बद्रीनाथ और केदारनाथ ले जाने में लगी बसें चलती देखी गईं. चमोली जिले के पिंडार घाटी में भी वाहनों की आवाजाही ठप रहने के अलावा व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी बंद रहे. एक रिजॉर्ट में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करने वाली अंकिता की रिजॉर्ट संचालक पुलकित आर्य ने अपने दो कर्मचारियों सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता के साथ मिलकर ऋषिकेश के निकट चीला नहर में धकेल कर कथित रूप से हत्या कर दी थी. अंकिता ने रिजॉर्ट के वीआईपी ग्राहकों को ‘अतिरिक्त सेवा' देने से इंकार कर दिया था. आरोपियों को 23 सितंबर को गिरफ्तार किया गया था.

उत्तराखंड क्रांति दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने कहा कि जिस तरह से जांच की जा रही है, उससे पता चलता है कि प्रभावशाली लोगों को बचाने के लिए पुलिस पर दबाव है. ऐरी ने कहा, ‘‘सच्चाई सामने लाने के लिए सीबीआई जांच जरूरी है.'' मुख्य बाजार क्षेत्रों में पुलिसकर्मियों की भारी तैनाती के साथ बंद को देखते हुए सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. बंद को कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भाकपा (माले) और राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति समेत लगभग 40 राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का समर्थन मिला.

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