"सैन्य स्तर के जासूसी उपकरणों का इस्तेमाल हुआ": वरिष्ठ पत्रकारों ने पेगासस केस में सुप्रीम कोर्ट से जांच की लगाई गुहार

Pegasus Scandal News : सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर ये तीसरी याचिका है. याचिकाकर्ताओं के अनुसार, पेगासस फोन हैकिंग संचार, बौद्धिक और सूचनात्मक निजता पर सीधा हमला है और प्राइवेसी के अधिकार के इस्तेमाल के लिए खतरा पैदा करती है.

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Pegasus scandal : पेगासस केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट में यह तीसरी याचिका दाखिल की गई है.
नई दिल्ली:

Pegasus Spy Case : पेगासस जासूसी केस में एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  के निवर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश से पूरे मामले की जांच कराए जाने की मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विशिष्ट लोगों की निगरानी के लिए सैन्य स्तर के जासूसी उपकरण (Military Grade Spyware) का इस्तेमाल किया गया, जो निजता के अधिकारों का अस्वीकार्य उल्लंघन है. संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत यह अधिकार नागरिकों को दिया गया है.

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सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका द हिंदू के पूर्व मुख्य संपादक एन राम और एशियानेट के संस्थापक  शशि कुमार (निदेशक एसीजे) ने दाखिल की है.  सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर ये तीसरी याचिका है. याचिकाकर्ताओं के अनुसार, पेगासस फोन हैकिंग संचार, बौद्धिक और सूचनात्मक निजता पर सीधा हमला है और प्राइवेसी के अधिकार के इस्तेमाल के लिए खतरा पैदा करती है.

निजता का अधिकार किसी के मोबाइल पोन, इलेक्ट्रानिक उपकरणों पर भी लागू होता है और इनका किसी भी प्रकार से हैकिंग या टैपिंग करना अनुच्छेद 21 की अवहेलना है. पेगासस स्पाईवेयर (Pegasus Spyware) का निगरानी के लिए इस्तेमाल राइट टू प्राइवेसी (Right to Privacy) पर गहरी चोट करता है. याचिका में कहा गया है कि पत्रकारों, डॉक्टर-वकीलों, सिविल सोसायटी एक्टिविस्ट, सरकार के मंत्रियों और विपक्षी नेताओं की संभावित हैकिंग या इंटरसेप्शन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों के इस्तेमाल के साथ भी समझौता है.

यह किसी व्यक्ति के निजी जीवन की गोपनीयता में भी सेंध लगाता है. कई सारे पत्रकारों की जासूसी प्रेस की आजादी पर हमला है औऱ बोलने-अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के तहत जानने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है. 

याचिका में यह दलील भी दी गई है कि ये जासूसी टेलीग्राफ ऐक्ट का भी खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है. पीयूसीएल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले का जिक्र करते हुए याचिकाकर्ताओं ने कहा, निगरानी या इंटरसेप्शन की इजाजत पब्लिक इमरजेंसी या जन सुरक्षा के हितों के मामले में ही दी जा सकती है. इन मामलों में भी तार्किक आधार पर निगरानी की जा सकती है, इसे पूरी तरह सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता . लेकिन मौजूदा मामले में ऐसे किसी भी मानक का पालन नहीं किया गया.  

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