प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण की गति धीमी, रजिस्‍ट्रेशन न होने के चलते कोई भी राशन से वंचित न किया जाए : SC

सुुप्रीम कोर्ट ने इस बात को दोहराया कि रजिस्ट्रेशन या पहचान पत्र न होने के चलते किसी भी मजदूर को राशन से वंचित न किया जाए.

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सुप्रीम कोर्ट ने समय पर हलफनामा नहीं दाखिल करने पर केन्द्र पर नाराज़गी जताई (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्ली:

लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों (Migrant Labour) के लिए मुफ्त राशन, यात्रा और दूसरी सुविधाओं को लेकर स्वतः संज्ञान लिए गए मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme court)में सोमवार को सुनवाई हुई. इस दौरान SC ने धीमे पंजीकरण पर चिंता जताई  और कहा कि इस मामले में पिछले साल अदालत द्वारा दिए गए डायरेक्शन पर कार्यवाही, जिसके तहत प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण की प्रक्रिया की जानी थी, बहुत धीमी रही है. वह केंद्र और राज्यों को इस पर निर्देश जारी करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने समय पर अपना हलफनामा नहीं दाखिल करने पर केन्द्र सरकार पर नाराज़गी जताई. कोर्ट ने केंद्र से कहा कि आपको सुनवाई से एक दिन पहले अपना हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन आपने इसे अभी किया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण की प्रक्रिया बहुत धीमी रही है और वह केंद्र और राज्यों को इस पर निर्देश जारी करेगी. हालांकि, जस्टिस अशोक भूषण और एमआर शाह ने कहा कि यह श्रमिकों के लिए नकद हस्तांतरण का आदेश नहीं देगा क्योंकि ये एक नीतिगत निर्णय है.कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्यों को प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वालों के पंजीकरण में तेजी लानी चाहिए. न केवल प्रवासी कामगारों को पंजीकरण के लिए सरकार से संपर्क करना चाहिए, बल्कि सरकारों को उन्हें पंजीकृत कराने के लिए उनसे संपर्क करना चाहिए. गुजरात की ओर से मनिंदर सिंह ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि अगले तीन महीने में पोर्टल शुरू हो जाएगा जबकि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है. जस्टिस शाह ने गुजरात से पूछा कि आप क्या  नया मॉडल लागू कर रहे हैं, इस पर गुजरात सरकार ने वकील ने कहा कि ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन जारी है इसको पूरा करने में तीन महीने लगेगा. मौजूदा सॉफ्टवेयर में मजदूरों द्वारा खुद से ऑनलाइन पंजीकरण संशोधन द्वारा किया जाता है. यह जल्द ही लॉन्च किया जाएगा.

जस्टिस  शाह ने कहा कि जो मज़दूर ऑनलाइन पंजीकरण नहीं कर सकते है, सरकार को उन तक पहुंचना होगा. उन्‍होंने कहा कि योजनाएं तो मौजूद है पर निगरानी कौन करेगा? आपके पास नोडल अधिकारी हैं लेकिन क्या नोडल अधिकारी रिपोर्ट कर रहे हैं और किसको रिपोर्टिंग करते हैं.जस्टिस भूषण ने कहा  सहायता जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने के लिए देखरेख करने वाला कोई प्राधिकार होना चाहिए. बिहार की तरफ से पेश हुए वकील रंजीत कुमार ने कोर्ट को बताया कि हमारे पास पहले से ही एक योजना चल रही है जहां हम असंगठित क्षेत्र के  श्रमिकों को पंजीकृत कर रहे हैं जहां 1.6 लाख श्रमिक पहले से पंजीकृत हैं. इस पर जस्टिस भूषण ने कहा कि हमारी चिंता यह है कि योजनाएं तो हैं लेकिन उनका लाभ नहीं मिल रहा है क्योंकि मजदूर ठीक ढंग से पंजीकृत नहीं हैं. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के विचार से सहमत हैं कि प्रवासी श्रमिकों की पहचान और पंजीकरण आवश्यक है ताकि अन्य योजनाओं की तरह, अन्य लाभों के अलावा, इन खातों में सीधे पैसा ट्रांसफर किया जा सके.  SG ने कहा कि केंद्र और राज्यों को रिकॉर्ड विवरण में रखना चाहिए. जस्टिस भूषण ने कहा कि हमें राष्ट्रीय डेटाबेस पर सभी आंकड़े चाहिए.

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बिहार के लिए रंजीत कुमार ने कहा कि हमसे जो भी डेटा की आवश्यकता होगी, वह उपलब्ध कराया जाएगा. जस्टिस शाह ने कहा कि बिहार में भी मजदूर 20 लाख हो सकते हैं. बिहार में कुल मिलाकर 2 लाख प्रवासी नहीं हो सकते. उन्‍होंने कहा कि सभी राज्य अगली सुनवाई तक जवाब दाखिल करें कि सभी प्रवासी श्रमिकों और असंगठित श्रमिकों को भी आत्मानिर्भर योजना का लाभ दिया जा रहा है. यूपी की ओर से ASG एश्वर्या भाटी ने कहा कि पहले के लॉकडाउन की स्थिति और अब की स्थिति अलग है. अभी सीमित लॉकडाउन की स्थिति है. जस्टिस शाह ने कहा कि प्रवासियों की मानसिकता को समझना चाहिए यह नहीं कहा जा सकता कि उन्हें मदद की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्यों से असंगठित क्षेत्रों के मज़दूरों का रजिस्ट्रेशन करने और राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने को कहा. कोर्ट ने कहा- मज़दूरों तक सभी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है. इसके साथ ही कोर्ट ने इस बात को दोहराया कि रजिस्ट्रेशन या पहचान पत्र न होने के चलते किसी भी मजदूर को राशन से वंचित न किया जाए.सभी राज्यों को प्रवासी मज़दूरों को भोजन देने के लिए सामुदायिक रसोई शुरू करने के लिए भी कहा गया है.

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