19 साल की उम्र में पुलिस मुठभेड़ में पति की मौत, 48 की हुई तो पंजाब पुलिस ने कहा- 'फर्जी था एनकाउंटर'

पंजाब के पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने 1994 में बंडाला को मारने का दावा किया था. सुखपाल सिंह के परिवार ने मामला दर्ज कराया, जिसमें आरोप लगाया गया कि फर्जी मुठभेड़ में सुखपाल सिंह की हत्या कर दी गई.

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दलबीर कौर ने कहा कि उनकी सास ने कानूनी लड़ाई शुरू की थी.

चंडीगढ़:

दलबीर कौर की उम्र उस वक्‍त 19 साल की थी और वो दो महीने की गर्भवती थीं, जब 1994 में पंजाब पुलिस ने कथित तौर पर उनके पति को फर्जी एनकाउंटर में मार डाला और उनके शव को एक आतंकवादी का शव बताकर पेश किया. हालांकि चार साल बाद वह आतंकवादी जीवित पाया गया, लेकिन दलबीर कौर और उनकी सास को एक लंबी और कठिन कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, जो आखिरकार 29 साल के बाद एक विशेष जांच दल द्वारा हाईकोर्ट को यह सूचना देने के साथ खत्‍म हुई कि मुठभेड़ फर्जी थी. एक पूर्व आईजी और अन्‍य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. 

सुखपाल सिंह गुरदासपुर जिले के काला अफगाना गांव के निवासी थे. दलबीर कौन का कहना है कि 1994 में पुलिस अधिकारियों ने सुखपाल सिंह का अपहरण कर लिया था और फिर वांछित आतंकी गुरनाम सिंह बंडाला पर इनाम का दावा करने के लिए गोली मार दी थी. कौर और उनके परिवार के लिए यह मुश्किल परीक्षा अभी शुरू ही हुई थी. 

कौर ने कहा, "मेरी सास न्याय के लिए दर-दर भटकती रहीं. उन्होंने ही इस कानूनी लड़ाई की शुरुआत की थी. इसमें 29 साल लग गए और एक एसआईटी ने आखिरकार अब कहा है कि मुठभेड़ फर्जी थी, लेकिन मैंने इस रास्ते में अपनी सास और यहां तक ​​कि अपने बेटे को भी खो दिया है."  

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कौर की बेटी सिर्फ एक साल की थी जब उसके पिता की हत्या कर दी गई थी. उनके पास अपने पिता की करीब-करीब कोई याद नहीं है. जीवनज्योत कौर ने कहा, "आप कल्पना कर सकते हैं कि पिता के बिना मेरा जीवन कैसा रहा होगा. मुझे उनके बारे में नहीं बताया गया था और मुझे समय के साथ ही पता चला कि क्या हुआ था."

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पुलिस का बंडाला को मारने का था दावा 

पंजाब के पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने 1994 में बंडाला को मारने का दावा किया था. सुखपाल सिंह के परिवार ने उस साल 29 जुलाई को मामला दर्ज कराया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने उनका अपहरण कर लिया और फर्जी मुठभेड़ में उनकी हत्या कर दी.

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न्‍याय के लिए आतंकी से भी की मुलाकात 

बंडाला को 1998 में जिंदा पकड़ लिया गया था. दलबीर कौर ने कहा, "मेरी सास ने जेल में आतंकवादी बंडाला से मुलाकात भी की थी और उससे पूछा था कि क्या उसे कुछ पता है कि उसका बेटा कहां है, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली."

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2007 में पहली बार दिया गया था जांच का आदेश

मुठभेड़ के 13 साल बाद 2007 में तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जेपी विर्दी को जांच का आदेश दिया गया था. 2010 में विर्दी का निधन हो गया, जिसके कारण जांच में सुस्ती आ गई. 2013 में कौर ने केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच के लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस मांग के जवाब में पंजाब पुलिस ने एक और जांच शुरू की, जिसका नेतृत्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आईपीएस सहोता को करना था. उसी साल बाद में पुलिस ने एक विशेष जांच दल का भी गठन किया.

हलफनामा दर्ज कर माना - फर्जी थी मुठभेड़ 

इसमें 10 साल और लग गए, लेकिन 10 दिसंबर 2023 को विशेष डीजीपी गुरप्रीत कौर देव के नेतृत्व में एसआईटी ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि सुखपाल की मुठभेड़ फर्जी थी और शुरुआती एफआईआर तथ्यों को गलत बताकर दर्ज की गई. 

पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज 

अदालत को यह भी बताया गया कि अक्टूबर में पूर्व आईजी परमराज सिंह उमरानंगल, मोरिंडा के तत्कालीन डिप्‍टी एसपी जसपाल सिंह और असिस्‍टेंटट सब इंस्‍पेक्‍टर गुरुदेव सिंह (निधन हो चुका है) के खिलाफ सबूतों को नष्ट करने, गढ़ने और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न अन्य धाराओं के तहत नया मामला दर्ज किया गया है.  

वकील ने दिया परिवार को श्रेय 

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप विर्क ने मामले को लगातार आगे बढ़ाने के लिए परिवार की प्रशंसा की. उन्‍होंने कहा, "परिवार को श्रेय जाता है जिन्होंने इस मामले को आगे बढ़ाया. वकील केवल तभी मुकदमा लड़ सकते हैं, जब परिवार ऐसा करता है. उन्होंने दिखाया है कि यदि आप मामले को आगे बढ़ाते हैं तो भगवान भी न्याय देते हैं." 
 

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