मराठा आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र का समाज खासकर ग्रामीण समाज साफ तौर पर बंट गया है.यह मराठा बनाम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) हो गया है.ऐसा इसलिए कि अलग से मराठा आरक्षण की मांग ओबीसी आरक्षण से ही की जा जाने लगी है. इस मांग से महाराष्ट्र का ओबीसी समाज में नाराजगी है. इसका असर ग्रामीण इलाकों के सामाजिक-ताने-बाने पर देखा जा सकता है. इस बंटबारे ने विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को परेशानी में डाल दिया था. इस सामाजिक बंटवारे का असर चुनाव परिणाम पर पड़ने से बचने के लिए बीजेपी ने बहुत सावधानीपूर्वक रणनीति पर काम किया. उसकी यह रणनीति काम कर गई.यह शनिवार को आए चुनाव परिणाम में भी नजर आया. बीजेपी और उसके सहयोगियों ने विधानसभा की 288 में से 230 सीटों पर कब्जा जमा लिया.
महाराष्ट्र में कितनी हैं छोटी ओबीसी जातियां
ओबीसी को मनाने की बीजेपी की इस रणनीति का बहुत बड़ा हिस्सा था जातियों पर आधारित 20 से अधिक उप निगमों का गठन. ये उप निगम छोटी ओबीसी जातियों के लिए बनाए गए, जिनकी संख्या महाराष्ट्र में करीब 350 है.महाराष्ट्र के पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की आबादी में ओबीसी का हिस्सा करीब 38 फीसदी है. ओबीसी जातियों को लुभाने के लिए ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी जातिय जनगणना की वकालत कर रहे हैं. अगर जातिय जनगणना हुई तो इसका सबसे अधिक फायदा ओबीसी में शामिल जातियों को ही होना है. लेकिन बीजेपी की रणनीति के आगे ओबीसी ने राहुल गांधी के वादे पर ध्यान नहीं दिया और महायुति के समर्थन में मतदान किया.
बीजेपी ने इस दिशा में पहला कदम अगस्त 2023 में उठाया था. उस समय महाराष्ट्र फाइनेंस एंड डवलेपमेंट कॉरपोरेशन ने इन उप निगमो के गठन की अधिसूचना जारी की. ओबीसी विभाग के तहत आने वाले इन उप निगमों का काम संबंधित जातियों को शिक्षा, व्यापार और अन्य जरूरतों के लिए धन मुहैया कराना था. इसके अलावा इन उप निगमों का काम संबंधित जातियों के के आर्थिक विकास के लिए गतिविधियां शुरू करना भी था.
महायुति की सरकार ने कितने उप निगमों का गठन किया
अगस्त-2023 से अक्तूबर 2023 के बीच इस तरह के 13 उप निगमों का गठन किया गया. इनमें से हर उप निगम का काम उन छोटी ओबीसी जातियों के लिए काम करना था, जो अब तक उपेक्षित थीं. महाराष्ट्र सरकार ने जिन उप निगमों का गठन किया था उनमें शामिल था- गुरव जाति के लिए संत काशीबा गुरव युवा वित्त विकास निगम, लिंगायतों के लिए जगदज्योति महात्मा बसवेश्वर वित्त विकास निगम, नाभिकों के लिए संत सेनाजी केशशिल्पी वित्त विकास निगम, बारी जाति के लिए संत नरहरि महाराज वित्त विकास निगम और राष्ट्रसंत श्री रूपलाल महाराज वित्त विकास निगम,लोनारी जाति के लिए स्वर्गीय विष्णुपंत दादरे (लोनारी) वित्त विकास निगम, तेली जाति के लिए संताजी प्रतिष्ठान तेलीघाना वित्त विकास, हिंदू खटीक जाति के लिए हिंदू खटीक समाज वित्त विकास निगम और लोहारी के लिए समुदाय के लिए लोहार समुदाय वित्त विकास निगम.
इस साल 10 अक्तूबर को महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने शिंपी जाति के लिए श्री संत शिरोमणी नामदेव महाराज समस्त शिंपी समाज वित्त विकास निगम, लाडशाखीय वाणी और वाणी जाति के लिए सोला कुलस्वामी वित्त विकास निगम, लेउवा पाटिदार वित्त विकास निगम, गुर्जरों के लिए गुर्जर समाज वित्त विकास निगम और गवली जाति के लिए श्रीकृष्णा वित्त विकास निगम के गठन का ऐलान किया था.शिंदे सरकार ने यह फैसला चुनाव में जाने से ठीक पहले लिया था.
इन उप निगमों के गठन के अलावा ओबीसी की अन्य छोटी जातियों के लिए दो स्वतंत्र निगमों का गठन भी इस साल मार्च में किया गया था. ये निगम थे सुतार जाति के लिए सुतार समाज वित्त विकास निगम और विनकर जाति के लिए विनकर समाज वित्त विकास निगम.
महाराष्ट्र के ओबीसी विभाग के तहत ही वसंतराव नाइक विमुक्त जाति और घुमंतू जनजाति विकास निगम भी आते हैं. इनके अलावा चार और उप निगमों का गठन किया गया. इनमें रामोशी या बेदार जाति के लिए राजे उमाजी नाइक वित्त विकास निगम, वडार जाति के लिए पैलवान स्वर्गीय मारुति वडार वित्त विकास निगम, लोहार जाति के लिए ब्रह्मलीन आचार्य दिव्यानंद पुरीजी महाराज वित्त विकास निगम और नाथपंथी दावरी गोसावी, नाथजोगी, भराडी जोगी, इंगतीवाले, मारियावाले, बहुरूपी, गोसावी, श्मशान जोगी, बालसंतोशी, गोंधली, डोंबारी और चित्रकथी जातियों के लिए परमपूज्य गंगानाथ महाराज वित्त विकास निगम.
क्यों भरोसा पैदा कर पाएं उप निगम
दरअसल महायुति की सरकार ने इन उप निगमों का गठन ओबीसी जातियों को यह भरोसा दिलाने के लिए किया कि सरकार उनका ख्याल रखती है और वे सरकार की चिंताओं में शामिल हैं. दरअसल माना यह जाता है कि ओबीसी की बड़ी जातियां छोटी ओबीसी जातियों की हकमारी कर लेती हैं. ओबीसी आरक्षण और उनकी योजनाओं का फायदा इन छोटी जातियों या जिनकी जनसंख्या कम है, उन्हें नहीं मिल पाता है. इसका असर भी हुआ और ओबीसी की ये छोटी जातियां महायुति के करीब आईं. दरअसल मराठा को आमतौर पर कांग्रेस समर्थक माना जाता है. वो शरद पवार और कांग्रेस के बीच बंटा हुआ है. महाराष्ट्र में मराठा की आबादी ओबीसी के बाद दूसरे नंबर की है. ऐसे में बीजेपी को लगा कि अगर मराठा के साथ ओबीसी भी उसके हाथ से निकल गए तो उसका जीतना मुश्किल हो जाएगा. बीजेपी ने इस फार्मूले को हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी आजमाया था, जहां उसने अपना सारा फोकस गैर जाट जातियों पर लगाया. टिकट वितरण में बीजेपी ने ओबीसी को प्राथमिकता दी. उसने अपने ओबीसी नेताओं को हरियाणा में सक्रिय कर दिया था. इसका परिणाम यह हुआ है कि उसे ऐतिहासिक बहुमत मिला.
ओबीसी और बीजेपी साथ-साथ
बीजेपी ओबीसी जातियों को एकजुट करने का काम बहुत पहले से कर रही है.साल 2014 के चुनाव से पहले गोपीनाथ मुंडे के नेतृत्व में बीजेपी ने यह काम किया था.इसका फायदा उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में मिला था. लेकिन मराठा आरक्षण को देखते हुए उसने मराठा नेताओं पर ध्यान देना शुरू कर दिया. इससे ओबीसी जातियां उससे दूर होती चली गईं. इसका घाटा उसे इस साल लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा. इसे भांपते हुए बीजेपी ने ओबीसी जातियों को अपने पाले में लाने की रणनीति पर काम किया. उसकी यह रणनीति काम कर गई.
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