Maharashtra: ब्लैक फंगस के 2513 मरीज अब भी अस्पताल में, अब तक 1175 की मौत

महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस के 64% मरीज 50 साल से ऊपर के थे. 69% पुरुष थे तो 31% महिलाएं थीं. 98% मरीजों को साइनस  में ब्लैक फ़ंगस हुआ था, 65% को आंख में, तो 32% को मुंह व 11% को लंग्स में ब्लैक फ़ंगस हुआ था.

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मुंबई:

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित रहे राज्य महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस के भी हजारों मामले सामने आए. राज्य में म्यूकोर्मिकोसिस के 2,513 मरीज अब भी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं. पुणे, नागपुर, मुंबई, औरंगाबाद से 60% मरीज हैं. अब तक कुल 9569 मामले राज्य में सामने आ चुके हैं. वहीं इस बीमारी के चलते राज्य में जान गंवाने वालों की संख्या 1175 है. गौर करने वाली बात यह है कि ब्लैक फंगस से मरने वाले 94 फीसद मरीजों को कोरोना हुआ था. मरने वाले 79% मरीज डायबटीज़ से पीड़ित थे. 75% मरीज स्टेरॉयड पर थे. 81% ऑक्सीजन सपोर्ट पर व 39% मरीज वेंटिलेटर पर थे. राज्य में ब्लैक फंगस के 64% मरीज 50 साल से ऊपर के थे. 69% पुरुष थे तो 31% महिलाएं थीं. 98% मरीजों को साइनस  में ब्लैक फ़ंगस हुआ था, 65% को आंख में, तो 32% को मुंह व 11% को लंग्स में ब्लैक फ़ंगस हुआ था. डायबटीज़, स्टेरॉइड और ऑक्सिजन सपोर्ट- ये तीन कॉमन फ़ैक्टर म्यूकोर्मिकोसिस की मौतों में पाए गए.

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इस बीच महाराष्ट्र सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अप्रैल से अब तक 18 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ब्लैक फंगस से हुई 242 मौतों का अध्ययन किया है. उन्होंने पाया कि जिनकी म्यूकोर्मिकोसिस से मौत हुई उनमें से 94% मरीज़ों को कोविड हुआ था. 98% मरीजों को नाक से जुड़ी चेहरे की हडि्‌डयों के बीच ख़ाली जगह यानी साइनस  में ब्लैक फ़ंगस इन्फ़ेक्शन हुआ था. मेडिकल कॉलेजों में भर्ती ब्लैक फ़ंगस के मरीजों में मृत्यु दर करीब 16% रही.

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एसएल रहेजा अस्पताल में क्रिटिकल केयर के प्रमुख डॉ. संजिथ शशिधरन ने बताया कि ''हमारे यहां अभी फ़िलहाल ब्लैक फ़ंगस के 2 संदिग्ध मरीज भर्ती हैं, लेकिन कन्फ़र्म्ड केस फ़िलहाल एक भी नहीं है. जब इस बीमारी की पीक थी, उसकी तुलना में तो मुंबई में मामले बहुत कम हुए हैं. हालांकि अब भी पुणे, नाशिक, नागपुर, औरंगाबाद में काफ़ी केस हैं. मुंबई के ज्यादातर म्यूकोर्मिकोसिस के मामले KEM में अभी भी भर्ती हैं.''

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फोर्टिस हीरानंदानी अस्पताल में चीफ इंटेंसिविस्ट डॉ. चंद्रशेखर टी ने बताया कि ''आगे के लिए जरूरी है की स्टेरॉइड का गलत ढंग से इस्तेमाल ना हो. इसपर इंटर्नल प्रोटोकॉल बने कि अस्पतालों को कितना डोज़ देना है.''

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म्यूकोर्मिकोसिस से पूरी तरह से रिकवरी में महीनों लग जाते हैं, मौजूदा मरीज भी लम्बे समय से इससे जूझ रहे हैं. नए मामलों में कमी है पर एक्स्पर्ट्स आने वाले संभावित उछाल को देखते हुए स्टेराइड के इस्तेमाल को लेकर आगाह कर रहे हैं.

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