पुड़ी राम, दाल राम, लंका राम, महाकुंभ में मिलेंगे लजीज खाने, आएं तो खाना जरूर

महंत आकाश गिरी नागा बाबा आवाहन अखाड़ा ने बताया, "भोजन में जितना भगवान का नाम लिया जाता है, उतना ही वह आनंददायक बन जाता है. भोजन में पहले भगवान का भोग लगता है और उसमें भगवान का नाम लिया जाता है. शंकराचार्य के समय से यह परंपरा चली आ रही है."

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
महाकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए भी भोजन, भंडारे आदि की व्यवस्था हुई शुरू.
प्रयागराज:

2025 के आगाज के साथ प्रयागराज में लगने वाले देश दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है. महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है और विभिन्न अखाड़ों की भव्य पेशवाई भी शुरू हो चुकी है. साधु-संतों द्वारा तीर्थराज प्रयागराज में डेरा डालने के बाद आस्था की संगम नगरी अपने आध्यमिक चरम पर है. इसके साथ ही संतों के साथ-साथ श्रद्धालुओं के लिए भी भोजन, भंडारे आदि की व्यवस्था भी शुरू हो चुकी है.

अखाड़ों में भंडारे के आयोजन के साथ कई तरह की अनोखी व्यवस्थाएं देखी जा रही हैं. अखाड़े के शिविर में पंगत में बैठे लोगों को भोजन कराने वाले सेवक आपको हाथों में बाल्टी लेकर भोजन के ऐसे नाम पुकारते नजर आएंगे जो आपने पहले शायद कभी नहीं सुने होंगे. अगर आप ध्यान से सुनें तो ऐसा लगेगा कि यहां सब कुछ राममय हो गया है.

Advertisement

इन भंडारों में पुड़ी राम, दाल राम या लंका राम जैसे नाम सुने जा सकते हैं. पानी के लिए पानी राम या पाताल मेवा जैसे शब्द बड़े निराले हैं. महाकुंभ में हजारों लाखों लोगों को इन अनोखे नामों वाले व्यंजन परोसे जा रहे हैं. वो भी बिलकुल निःशुल्क. यहां दाल, चावल और पानी बदल कर अब राममय हो गया है.

Advertisement

वर्षों से चल रही है परंपरा

मजेदार बात यह है कि तामसिक होने के चलते संतों की रसोई में प्रतिबंधित प्याज को भी यहां 'लड्डू राम' कहा जाता है. ऐसे ही मिर्च को लंका पुकारा जाता है. जानकारों का कहना है कि ये परंपरा वर्षों से चली आ रही है. आईएएनएस ने इसी जिज्ञासा को शांत करने हेतु अखाड़े के पदाधिकारी संतों से बातचीत की.

Advertisement

दत्त गिरी नागा बाबा आवाहन अखाड़ा ने इस विषय पर बात करते हुए बताया, "हम अन्नपूर्णा माता की रसोई में जो भी चीज बनाते हैं, वहां सबसे पहले भगवान को भोग लगाते हैं. वह प्रसाद भगवान के नाम पर होता है इसलिए हम उसमें भगवान का नाम जोड़ते हैं. ऐसा करने से हर चीज अमृत बन जाती है. यह हिंदुस्तान और सनातन की संस्कृति का हिस्सा है और हमारे गुरु ने हमें यह सिखाया है. संतों में प्राचीन काल से यह परंपरा है. जल को पाताल मेवा भी कहा जाता है. यह परंपरा आदि गुरु शंकराचार्य के समय से है."

वहीं, महंत आकाश गिरी नागा बाबा आवाहन अखाड़ा ने बताया, "भोजन में जितना भगवान का नाम लिया जाता है, उतना ही वह आनंददायक बन जाता है. भोजन में पहले भगवान का भोग लगता है और उसमें भगवान का नाम लिया जाता है. शंकराचार्य के समय से यह परंपरा चली आ रही है."

इस तरह से यहां भोजन के पदार्थों और व्यंजनों के नाम ही अनोखे नहीं है, यहां का भोजन भी साधारण भोजन नहीं कहलाता. उसे 'भोग प्रसाद' या भोजन प्रसाद कहा जाता है. भोग प्रसाद मतलब देवी-देवताओं को भोग लगा हुआ भोजन जो भोग लगने के बाद प्रसाद हो जाता है. साधु संतो के शिविरों में इष्ट-देव और देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है और उसी भोग को तैयार भोजन में मिला दिया जाता है, जिसके बाद भोजन 'भोग प्रसाद' हो जाता है.

एक और अनोखी बात यह है कि यहां आपको वही सादा भोजन मिलेगा जो घरों में बनता है लेकिन जब आप भोजन करेंगे तो इसका स्वाद अलग और दिव्य लगेगा.

ये भी पढ़ें- महाकुंभ: काम में इतना मजा आ रहा है, नींद तक नहीं आती, मिले वॉल पेंटिंग करने वाली इस छात्रा से

Featured Video Of The Day
Make in India के लिए Adani Group की पहल, बनाने जा रहा दुनिया का सबसे बड़ा फिनिशिंग स्कूल
Topics mentioned in this article