मासूम स्ट्रेचर पर तड़पता रहा, दादी ड्रिप पकड़े खड़ी रहीं... MP के अस्पताल की बदइंतजामी ने छीन ली जिंदगी

एमपी के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक की लाचार और असंवेदनशील व्यवस्था से लड़ते हुए 13 साल के मनीष साहू ने दम तोड़ दिया. उसकी बुजुर्ग दादी हाथ से ड्रिप की बोतल थामे इलाज पाने के लिए घंटों भटकती रहीं.

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  • एमपी का 13 वर्षीय मनीष साहू 30 अगस्त को आसमानी बिजली की चपेट में आने से बुरी तरह झुलस गया था
  • डेढ़ महीने तक महोबा और पन्ना के अस्पतालों में इलाज के बाद उसे रीवा के संजय गांधी अस्पताल रेफर किया गया
  • दादी हाथ से ड्रिप पकड़े खड़ी रहीं, अस्पताल ने भर्ती करने में 2 घंटे लगा दिए. इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो गई
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पहले आसमानी बिजली ने झुलसाया, फिर सिस्टम ने तड़पाया. लाचार और असंवेदनशील व्यवस्था से लड़ते हुए 13 साल के मनीष साहू ने रीवा के सरकारी अस्पताल में दम तोड़ दिया. उसकी बुजुर्ग दादी कांपते हाथ से ड्रिप की बोतल थामे मध्य प्रदेश के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक संजय गांधी अस्पताल में इलाज पाने के लिए घंटों भटकती रहीं, लेकिन अस्पताल के जिम्मेदार लोगों की लाल फीताशाही में एक जिंदगी काल के गाल में समा गई. इंसानियत का शर्मसार करने के लिए शायद इतना काफी नहीं था, तभी अस्पताल के कर्ता-धर्ता यह कहकर पल्ला झाड़ते नजर आए कि ऐसे मरीज तो यहां रोज आते हैं. 

13 वर्षीय मनीष साहू 30 अगस्त को आसमानी बिजली की चपेट में आने से बुरी तरह झुलस गया था. डेढ़ महीने तक वह महोबा और पन्ना के अस्पतालों में मौत  से जूझता रहा. जिंदगी की डोर मजबूती से थामे रहा. लेकिन फिर हालत बिगड़ने लगी. पन्ना के डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और रीवा के बड़े संजय गांधी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. इस उम्मीद में कि वहां पर बच्चे को तुरंत और सही समय पर इलाज मिल सकेगा और उसकी जान बच सकेगी. 

लेकिन मनीष की बदकिस्मती कहें या फिर अस्पताल की बदइंदजामी, मनीष का रीवा का सफर उसका आखिरी सफर बन गया. इससे पहले उसने जो भुगता, वह किसी का भी दिल झकझोरने के लिए काफी है. स्ट्रेचर पर लेटे मनीष के पास में उसकी बुजुर्ग दादी एक हाथ में ड्रिप की बोतल थामे इस उम्मीद में दर-दर भटकती रहीं कि शायद उनके बच्चे को कोई भर्ती कर ले और उसकी जिंदगी बचा ले.

लेकिन मदद के बजाय उनका सामना हुआ अस्पताल के बेपरवाह रवैये से. इस घटना में मनीष और उसकी दादी को एक वॉर्ड से दूसरे वॉर्ड में भेजा जाता रहा. पहले बर्न यूनिट में भेजा गया, वहां से इमरजेंसी वॉर्ड जाने के लिए कह दिया गया. उसके बाद वॉर्ड नंबर 7 में रवाना कर दिया गया. बुजुर्ग दादी कांपते हाथों से ड्रिप की बोतल पकड़े इलाज के लिए गिड़गिड़ाती रहीं. 

परिजन कर्मचारियों की मनुहार करते रहे कि बच्चे को भर्ती करके इलाज शुरू किया जाए. लेकिन बदइंतजामी ऐसी कि ट्रीटमेंट शुरू होने में 2 घंटे लग गए. जो मनीष साहू झुलसने के बाद करीब डेढ़ महीने तक मौत से लड़ता रहा, उसने कुछ ही घंटों के अंदर दम तोड़ दिया. अस्पताल की इंटरनल रिपोर्ट में भी ये बात दर्ज है कि विभागों में समन्वय की कमी से बच्चे का इलाज शुरू करने में 2 घंटे की देरी हुई.

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अस्पताल प्रशासन का असंवेदनशील रवैया इतने पर ही नहीं रुका. संजय गांधी अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट डॉ. राहुल मिश्रा ने कहा कि इस तरह के मरीज हम रोज देखते हैं. कभी-कभार कुछ मरीज ऐसे आते हैं, जिन्हें ड्रिप या अन्य उपकरण लगे होते हैं. इतने बड़े अस्पताल में उन्हें सही जगह पहुंचाने में समय लगता है. हम पूरी क्षमता से इलाज की सुविधा प्रदान करते हैं. 

अस्पताल के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. बजाज ने बताया कि बिजली की चपेट में आने से बच्चा गंभीर रूप से झुलस गया था. उसका दो दिन तक हमारे विभाग में इलाज चला था. लेकिन उसकी स्थिति बहुत ही गंभीर थी. तमाम प्रयासों के बावजूद हम उसे बचा नहीं पाए. 

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रीवा के संजय गांधी अस्पताल में सिहरा देने वाले इस तरह के दृश्य हालांकि नए नहीं हैं. लेकिन अस्पताल का ये हाल बेहाल तब है, जब मध्य प्रदेश के डिप्टी सीएम और हेल्थ मिनिस्टर राजेंद्र शुक्ला खुद रीवा के रहने वाले हैं.