देश में भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों की जांच करने वाली संस्था लोकपाल ने बाजार नियामक सेबी की पूर्व प्रमुख माधबी पुरी बुच को क्लीन चिट दे दी है. उनके के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च की एक रिपोर्ट के आधार पर अनुचित व्यवहार और हितों के टकराव का आरोप लगाया गया था. लोकपाल ने अपने फैसले में बुधवार को कहा कि बुच पर लगाए गए आरोप पूरी तरह से धारणा पर आधारित थे. लोकपाल का कहना है कि इन आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं हैं और अपराध की कोई बात नजर नहीं आ रही है. लोकपाल जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाले छह सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इसको देखते हुए इन शिकायतों का निपटान किया जाता है.
लोकपाल ने किसे लगाई है फटकार
बुच पर ये आरोप सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने लगाए थे.लोकपाल ने 116 पेज के अपने फैसले में इस मामले को सनसनीखेज बनाने और राजनीतिकरण के लिए याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई. इसके साथ ही बुच पर लगाए गए सभी आरोपों को लोकपाल ने खारिज कर दिया है. लोकपाल ने अपने आदेश में कहा है कि इस तरह का आचरण लोकपाल के समक्ष प्रक्रिया को महत्वहीन बनाता है. यह लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 46 के तहत दंडनीय हो सकता है.
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 की धारा 46 में झूठी या ओछी शिकायतें दर्ज कराने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा चलाने का प्रावधान है. इसमें दोष साबित होने पर एक साल तक की जेल की सजा और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.
लोकपाल ने अपने फैसले में कहा है कि माधवी बुच पर लगाए गए आरोप धारणा पर आधारित थे, जिनके समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं हैं.
माधवी बुच पर क्या आरोप लगाए गए थे
इन याचिकाओं में बुच पर अदाणी समूह से जुड़े निवेश, कंसल्टेंसी फीस और किराये की आय के नाम पर लाभ कमाने, आईसीआईसीआई बैंक ईएसओपी से अनुचित लाभ जैसे आरोप लगाए गए थे. लोकपाल ने इन सभी आरोपों से बुच को बरी कर दी है.लोकपाल के विस्तृत आदेश में यह बात सामने आई है, वह यह है कि उनके खिलाफ मामले धारणाओं और अनुमानों पर आधारित थे.
लोकपाल ने अपने आदेश में कहा है कि पिछले साल दर्ज की गई तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा समेत अन्य सभी की शिकायतें मूल रूप से एक निवेश कंपनी की रिपोर्ट पर आधारित थीं. इस रिपोर्ट में पूरा ध्यान अदाणी समूह की कंपनियों को बेनकाब करने या जांच के घेरे में लाने पर था.
बुच ने दो मार्च, 2022 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के प्रमुख का कार्यभार संभाला था. कार्यकाल पूरा होने के बाद वह इस साल 28 फरवरी को पद से हट गई थीं.बुच के खिलाफ आरोप लगाने वाली अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च के संस्थापक ने इस साल जनवरी में कंपनी के बंद होने की घोषणा की थी.
लोकपाल ने याचिकाकर्ताओं के सोशल मीडिया कैंपेन पर भी टिप्पणी की है.
लोकपाल ने शिकायतकर्ताओं को लगाई फटकार
लोकपाल में बुच के खिलाफ तीन शिकायतें दर्ज की गई थीं. लोकपाल ने अपने आदेश में कहा है कि विशिष्ट आरोपों की कमी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामले को उचित ठहराने में विफलता के कारण उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनाया जा सकता.प्राधिकरण ने आगे कहा कि प्रथम दृष्टया बुच के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता.
लोकपाल ने अपने आदेश में इस बात का भी उल्लेख किया है कि एक शिकायतकर्ता ने बुच और उसके पति के कुछ निजी दस्तावेज प्राप्त करने के लिए अवैध तरीकों का इस्तेमाल किया ताकि आरोपों को पुख्ता किया जा सके. इन दस्तावेजों में उनके पति और उनकी फर्म अगोरा एडवाइजरी के साथ-साथ उनके आयकर रिटर्न भी शामिल थे. इन दस्तावेजों को प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए मीडिया में प्रचारित किया गया.
इस मामले के एक अन्य शिकायतकर्ता ने भी सेबी के गोपनीय कागजात तक पहुंच बनाने की कोशिश की.लोकपाल ने एक शिकायतकर्ता के अपनी शिकायत को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करने पर चिंता जताई है.लोकपाल ने अपने आदेश में कहा है कि यह कृत्य लोकपाल अधिनियम के गोपनीयता के नियमों का उल्लंघन है. लोकपाल ने कहा है कि इस व्यवहार से पता चलता है कि शिकायतें न्याय पाने के इरादे से नहीं बल्कि प्रचार के लिए दायर की गई थीं.
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