'किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं..', 'असंसदीय' शब्दों के विवाद पर बोले लोकसभा स्पीकर ओम बिरला

संसद के सदस्य कई बार सदन में ऐसे शब्दों, वाक्यों या अभिव्यक्ति का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बाद में सभापति या अध्यक्ष के आदेश से रिकॉर्ड या कार्यवाही से बाहर निकाल दिया जाता है.

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नई दिल्ली:

लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान निकाले गए कई शब्दों के बाद विपक्ष ने सरकार पर हमला तेज कर दिया है. इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इसपर बयान दिया है. उन्होंने कहा, "कोई शब्द प्रतिबंधित नहीं है, निकाले गए शब्दों का संकलन जारी है."

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, "मेरे संज्ञान में आया है कि लोकसभा सचिवालय ने कुछ असंसदीय शब्दों को विलोपित किया है. यह लोकसभा की प्रक्रिया है. 1959 से चल रही है. संसद में चर्चा और संवाद के दौरान आरोप प्रत्यारोप लगाते हैं उस वक्त पीठासीन अधिकारी कुछ शब्दों को हटाने का निर्देश देते हैं, जो चर्चा कर रहे हैं उनको संसदीय परंपरा की जानकारी नहीं है. जब आवश्यकता होती है उसे विलोपित किया जाता है. यह सब सदस्यों की जानकारी में होता है . यह अधिकार हमें है. नियम के तहत है, शब्दों को बैन नहीं किया है. भ्रम की स्थिति ना पैदा करें."

असंसदीय शब्द की बड़ी डिक्शनरी है, इसमें 1100 पन्ने है. 1954 से निकाला गया है. 1986, 1992, 1999, 2004, 2009, 2010 से हर साल रेगुलर निकालते हैं. किसी भी शब्दों को बैन नहीं किया है. जब चर्चा के दौरान किसी शब्द को हटाया है, उसका जिक्र है. संसद के प्रति आस्था बनी रहे,  यह हमारी कोशिश है. किसी के बोलने का अधिकार कोई भी छीन नहीं सकता है. लेकिन असंसदीय या अमर्यादित ना कहें.

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उन्होंने कहा कि भविष्य में अगर कोई असंसदीय शब्द का उपयोग करते हैं तो यह निर्भर करता है उसका उपयोग किस संदर्भ में किया जा रहा है. उसको रोका नहीं जा सकता. सरकार कभी भी लोकसभा को निर्देश नहीं दे सकती और किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती. अगर कोई चैनल असंसदीय शब्द का उपयोग तब भी करता है जब उसे हटाने का निर्देश दे दिया जाता है और सदस्य इसको लेकर शिकायत करता है तो मामला प्रिविलेज कमेटी में जायेगा.

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कोई भी शब्द किस संदर्भ में बोला गया है, वह मायने रखता है. पहले विपक्ष ने आपति नहीं की, अब क्यों कर रहे है. कोई भी शब्द बैन नहीं किया गया है. उस वक्त अगर असंसदीय संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है तो हटाया जाता है अगर किसी सदस्य को आपत्ति होती है तो वह सचिवालय को कह सकता है.

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इस पर कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, "ओम बिरला का 'असंसदीय' शब्दों के बारे में स्पष्टीकरण का कोई ज्यादा मतलब नहीं है. चर्चाओं और अपने रिपोर्ट में मीडिया इस बात की अनदेखी करेगी, जिसमें ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया गया हो. साथ ही प्रिंट मीडिया को भी अपनी रिपोर्ट में इन शब्दों का प्रयोग करने से पहले दो बार सोचना होगा."

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बता दें कि संसद के सदस्य कई बार सदन में ऐसे शब्दों, वाक्यों या अभिव्यक्ति का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बाद में सभापति या अध्यक्ष के आदेश से रिकॉर्ड या कार्यवाही से बाहर निकाल दिया जाता है. लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया एवं आचार के नियम 380 के मुताबिक, ‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं.'

वहीं, नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे चिन्हित करने के बाद कार्यवाही में एक नोट इस तरह से डाला जाएगा कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक इसे हटाया गया.