बंगाल में जूट क्षेत्र का संकट, TMC को लोकसभा चुनाव में दिला सकता है बढ़त

जूट उद्योग से जुड़े हितधारकों के मुताबिक कच्चे माल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि और केंद्र द्वारा जूट बैग में 100 प्रतिशत खाद्यान्न पैकेजिंग के मानदंड में कोई कमी नहीं किए जाने के बावजूद, चुनाव से पहले अस्थायी ऑर्डर संकट तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को चुनावी लड़ाई में बढ़त दिला सकता है.

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कोलकाता:

पश्चिम बंगाल में जूट उद्योग क्षेत्र से जुड़े मुद्दे आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाषा) के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकते हैं. जूट उद्योग से जुड़े हितधारकों ने यह जानकारी दी. जूट बैग के वार्षिक उत्पादन अनुमानों की तुलना में सरकार की कम मांग के परिणामस्वरूप जूट की मिलों के संचालन में अल्पकालिक अस्थिरता हो गई है और श्रम बल में कटौती से राज्य के जूट क्षेत्र में भाजपा के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है.

जूट उद्योग से जुड़े हितधारकों के मुताबिक कच्चे माल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि और केंद्र द्वारा जूट बैग में 100 प्रतिशत खाद्यान्न पैकेजिंग के मानदंड में कोई कमी नहीं किए जाने के बावजूद, चुनाव से पहले अस्थायी ऑर्डर संकट तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को चुनावी लड़ाई में बढ़त दिला सकता है.

चूंकि, राज्य में सत्तारूढ़ दल जनवरी में जूट मिलों द्वारा वेतन में किए गए संशोधन को मजदूरों के बीच समर्थन जुटाने के लिए चुनावी मुद्दा बना रहा है.

बंगाल की जूट मिलों में करीब 2.50 लाख कर्मचारी काम करते हैं जबकि राज्य में 40 लाख किसान राज्य में कच्चे माल के उत्पादन में जुटे हुए हैं. राजनीतिक दल हुगली, उत्तर 24 परगना और हावड़ा जिलों के कई लोकसभा क्षेत्रों के कुछ हिस्सों वाले जूट क्षेत्र में अपना जनसमर्थन सुरक्षित करने के लिए जूट उद्योग से जुड़े लोगों से संपर्क कर रहे हैं.

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भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राघव गुप्ता ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘मिलों ने पहले ही उत्पादन में 10-15 प्रतिशत की कटौती शुरू कर दी है और इसके 20-25 प्रतिशत तक और कम होने की आशंका है. कुछ इकाइयां वास्तविक मांग के साथ उत्पादन का मिलान करने के लिए सप्ताह में चार से पांच दिन काम कर रही हैं. मिलें अनुमान के आधार पर जूट बैग का उत्पादन करती हैं. चालू रबी फसल सीजन में, खाद्यान्न के लिए जूट बैग की सरकारी खरीद सीजन की शुरुआत में सरकार द्वारा दिए गए अनुमानों की तुलना में 3.5 लाख गांठ कम रही है. ''

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उन्होंने कहा कि उत्पादन में कटौती के अलावा, मिल बंद होने की भी खबरें हैं और इसका मुख्य कारण जूट बैग की सरकारी मांग में कमी है.

लंबे समय से जूट उद्योग से जुड़े एक व्यक्ति ने पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर बताया कि कम से कम एक मिल, हुगली में स्यामनगुर जूट कारखाने ने हाल ही में श्रम संबंधी समस्याओं का हवाला देते हुए काम के निलंबन का नोटिस जारी किया है, और इसके कारण सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं.

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उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार इस क्षेत्र में सुधार के लिए दृढ़ संकल्प रही है और पांच साल के कायाकल्प रोडमैप के लिए हितधारकों की बैठक आयोजित की है, लेकिन यह आगामी चुनाव में भाजपा के लिए वोटों में तब्दील नहीं हो सकता है क्योंकि मिल संचालन में व्यवधान और श्रम कटौती हुई है, जोकि एक मुद्दा बन गया है.''

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भाजपा के टिकट पर उत्तर 24 परगना की बैरकपुर लोकसभा सीट से फिर से चुनाव लड़ रहे अर्जुन सिंह ने मौजूदा संकट के लिए मिल मालिकों के एक वर्ग को जिम्मेदार ठहराया है.

भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के पदाधिकारी बिनोद सिंह ने दावा किया कि अधिकांश मिल कर्मचारी भाजपा समर्थक हैं और पार्टी को ही वोट देंगे क्योंकि वे जानते हैं कि केंद्र में राजग सरकार उनके मुद्दों को हल करने के लिए उत्सुक है.

मुर्शिदाबाद से टीएमसी सांसद अबू ताहिर खान ने दावा किया कि राज्य सरकार ने उद्योग के लिए बहुत कुछ किया है और कच्चे माल की कम कीमतों का मुद्दा पार्टी के प्रचार अभियान का हिस्सा है.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की ट्रेड यूनियन शाखा भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू) के महासचिव तपन कुमार सेन ने कहा कि पार्टी जूट क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार की निष्क्रियता को उजागर कर रही है, और यह मजदूरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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