राजनीतिक दलों में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए उम्मीदवारों के चयन को लेकर माथापच्ची जारी है. कई ऐसी सीटें हैं, जिन पर अभी तक प्रत्याशियों का ऐलान नहीं हुआ है. ऐसे में NDTV अपने खास शो 'खबर पक्की है' में आपको ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर आज उत्तर प्रदेश के मेरठ, बिहार के पश्चिम चंपारण, सारण और अररिया लोकसभा सीट का हाल बता रहा है.
आइए जानते हैं कि इन सीटों पर किसे मिल सकता है मौका और कौन हो सकता रिजेक्ट :-
मेरठ सीट (उत्तर प्रदेश)राजनीति की बात करें तो पांच साल पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के राजेंद्र अग्रवाल यहां से सांसद चुने गए थे. उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के हाजी मोहम्मद याक़ूब को हराया था. 2019 में यहां 12,16,413 वोट पड़े थे, इसमें राजेंद्र अग्रवाल को 5,86,184 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बसपा के हाजी मोहम्मद याक़ूब को 5,81,455 वोट मिले थे. राजेंद्र अग्रवाल महज़ 4,729 वोटों से जीते थे.
मेरठ से भारतीय जनता पार्टी के दावेदार कौन?
उम्मीदवारों में राजेंद्र अग्रवाल का नाम सबसे आगे है, जो 2009 से 3 बार लगातार इस सीट से बीजेपी के सांसद बने हैं. हालांकि पिछली बार राजेंद्र अग्रवाल महज 5 हजार वोटों से जीते थे. बीजेपी के अन्य दावेदारों में मुख्य नाम मेरठ कैंट सीट के विधायक अमित अग्रवाल का है. अमित पुराने भाजपाई हैं, पहले भी विधायक रहे हैं, लेकिन बाद में टिकट कट जाने की वजह से समाजवादी पार्टी में चले गए थे, अब फिर बीजेपी के विधायक हैं.
दावेदारों में एक नाम यूपी के ऊर्जा राज्य मंत्री सोमेंद्र तोमर का भी है. सोमेंद्र गुजर बिरादरी से हैं और मेरठ यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति में BJYM युवा मोर्चा से मुख्य राजनीति में आए हैं. इनके अलावा दो सेलिब्रिटीज़ के नाम भी यहां से चर्चा में हैं, सबसे पहले रामायण सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल का. राम मंदिर बनने के बाद एक बार फिर से अरुण गोविल के नाम की चर्चा हर तरफ़ हो रही है. इनका नाम भी वेटिंग लिस्ट में है.
मेरठ से विपक्ष के उम्मीदवार कौन?
पिछली बार बहुजन समाज पार्टी के हाजी याक़ूब क़ुरैशी यहां से लड़े थे, लेकिन हार गए थे, इस बार फिर हाजी याक़ूब क़ुरैशी का नाम चर्चा में है. याक़ूब क़ुरैशी की गिनती मेरठ के असरदार व्यापारियों में होती है. वहीं शाहिद अख़लाक़ भी बहुजन समाज पार्टी से टिकट के दावेदार हैं. शाहिद बसपा से मेरठ के मेयर भी रह चुके हैं और सांसद भी. इनका नाम भी अभी वेटिंग लिस्ट में ही है.
भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जिन उम्मीदवारों को चुनती है, उनका मुक़ाबला समाजवादी पार्टी के भानु प्रताप सिंह से होगा, जो पेशे से एक वकील हैं और सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं. समाजवादी पार्टी इनके नाम का ऐलान कर चुकी है.
2019 में बीजेपी के डॉ. संजय जायसवाल यहां से सांसद चुने गए थे, उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के बृजेश कुमार कुशवाहा को हराया था. 2019 में यहां 10,12,936 वोट पड़े थे, इसमें डॉ. संजय जायसवाल को 6,03,706 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी बृजेश कुमार कुशवाहा को 3,09,800 वोट मिले थे. संजय जायसवाल की 2,93,906 वोटों से जीत हुई थी.
बीजेपी से टिकट के दावेदार
पश्चिम चंपारण भाजपा का अभेद किला माना जाता है, जहां 1996 से ही पार्टी के उम्मीदवार जीतते आए हैं. तीन बार से सांसद और भाजपा के पूर्व बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल इस बार भी भाजपा से बेतिया लोकसभा के प्रबल दावेदार हैं. उन्होंने फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा को इसी सीट से दो बार हराया. इस बार फिर से पश्चिम चंपारण से पार्टी उनके नाम पर मुहर लगा सकती है, उनका टिकट कंफ़र्म है.
पश्चिम चंपारण से विपक्ष का चेहरा कौन?
राजन तिवारी एक बार पूर्वी चंपारण के गोविंदगंज से विधायक चुने गए थे, हालांकि राजन तिवारी मूल रूप से यूपी के रहने वाले हैं, लेकिन उन्होंने अपने ननिहाल में राजनीतिक पारी की शुरुआत की और अबकी बार राजद कोटे से बेतिया से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. इस सीट पर ब्राह्मण वोटर की संख्या नतीजों पर असर डाल सकती है, इसी उम्मीद से राजन तिवारी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.
इसके अलावा राष्ट्रीय जनता दल से नागालैंड के पूर्व मुख्य सचिव राघव शरण पांडेय का नाम भी चर्चा में है, जो भारतीय जनता पार्टी से बगहा के विधायक रह चुके हैं. बाद में बीजेपी से टिकट कटने के बाद महागठबंधन से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं.
सारण सीट (बिहार)सारण की सीट परिसीमन के बाद 2008 में वजूद में आई. 2009 में हुए चुनाव में लालू प्रसाद यादव यहां से जीते थे, लेकिन उसके बाद से इस सीट पर बीजेपी का क़ब्ज़ा रहा है
2019 में भारतीय जनता पार्टी के राजीव प्रताप रूडी यहां से सांसद चुने गए. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के चंद्रिका राय को हराया था. 2019 में यहां 9,43,020 वोट पड़े थे, इसमें राजीव प्रताप रूडी को 4,99,986 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी को 3,61,575 वोट मिले थे. राजीव प्रताप रूडी की 1,38,411 वोटों से जीत हुई थी.
सारण से बीजेपी का उम्मीदवार
बीजेपी की तरफ़ से एक बार फिर राजीव प्रताप रूडी ही इस सीट से लड़ेंगे. चार बार से सांसद और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री रहे राजीव प्रताप रूडी की सारण इलाक़े में मज़बूत पकड़ ह. इसीलिए एक बार फिर पार्टी ने अपने पुराने योद्धा पर दांव लगाने की ठानी है. रूडी का यहां से टिकट पक्का हो चुका है.
वहीं राष्ट्रीय जनता दल की तरफ़ से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य इस सीट पर खड़ी हो रही हैं. रोहिणी आचार्य क़रीब डेढ़ साल पहले अपने पिता को किडनी डोनेट करने की वजह से चर्चा में आई थीं. इनका भी टिकट कंफ़र्म हो चुका है.
अररिया सीट (बिहार)सियासत की बात करें तो 2019 में भारतीय जनता पार्टी के प्रदीप कुमार सिंह यहां से सांसद चुने गए, उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के सरफ़राज़ आलम को हराया था. 2019 में यहां 11,69,630 वोट पड़े थे, इसमें बीजेपी उम्मीदवार को 6,18,434 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी सरफ़राज़ आलम को 4,81,193 वोट मिले थे. प्रदीप कुमार सिंह की 1,37,241 वोटों से जीत हुई थी.
अररिया से बीजेपी का उम्मीदवार कौन?
भारतीय जनता पार्टी के संभावित उम्मीदवारों में पहली और सबसे मज़बूत दावेदारी मौजूदा सांसद प्रदीप कुमार सिंह की ही मानी जा रही है. वो दो बार अररिया लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और पूरे आसार हैं कि इस बार भी पार्टी उन्हीं पर भरोसा जताएगी, इसलिए इनका नाम पक्का माना जा सकता है.
महागठबंधन से प्रत्याशी कौन?
अररिया से राष्ट्रीय जनता दल के दावेदारों में सबसे पहला नाम जोकीहाट से राजद के विधायक शाहनवाज़ आलम का है. शाहनवाज़ आलम साल की शुरुआत तक बिहार सरकार में आपदा प्रबंधन मंत्री थे. वो पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं. राजद इन्हें अररिया से टिकट दे सकता है. मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के एक और बेटे और पूर्व सांसद सरफ़राज़ आलम भी अररिया सीट से राष्ट्रीय जनता दल से दावेदारी कर रहे हैं. 2017 में अपने पिता की मौत के बाद हुए उपचुनाव में वो सांसद बने थे. सरफ़राज़ आलम भी बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
इसके अलावा राजद की ओर से नरपतगंज के पूर्व विधायक अनिल कुमार यादव को भी टिकट दिया जा सकता है. अनिल कुमार यादव क़रीब 50 साल से राजनीति में हैं और ब्लॉक प्रमुख से लेकर कई पदों पर रह चुके हैं, इनका नाम अभी वेटिंग लिस्ट में है.