दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतंत्र का पर्व यानी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) का आगाज 19 अप्रैल से शुरू होने जा रहा है. शुक्रवार को पहले फेज के तहत कुल 102 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. वोटिंग के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली यानी Index Finger पर नीली स्याही (What is Election Ink) से एक निशान बनाया जाता है, जो लोकतंत्र के पर्व में शामिल होने का भी निशान माना जाता है. आपकी उंगली पर लगी नीली स्याही इस बात का सबूत है कि आपने किसी पार्टी की सरकार बनाने के लिए अपना मत दिया है. नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का क्रेडिट देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) सुकुमार सेन को जाता है.
आइए जानते हैं कब शुरू हुई इस नीली स्याही को लगाने की परंपरा? कहां बनती है ये वोटर्स स्याही? क्या इस नीली स्याही को मिटाया जा सकता है:-
क्या है इलेक्शन इंक?
पानी आधारित स्याही सिल्वर नाइट्रेट, कई तरह के डाई (रंगों) और कुछ सॉल्वैंट्स का एक कॉम्बिनेशन है. इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं. एक बार 40 सेकंड के अंदर उंगली के नाखून और त्वचा पर लागू होने पर यह करीब-करीब अमिट छाप छोड़ती है.
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कौन है इस इंक के कस्टोडियन?
नई दिल्ली स्थित नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी (NPL) के केमिस्ट (रसायनज्ञ) डॉ. नाहर सिंह मौजूदा समय में इस फॉर्मूलेशन के कस्टोडियन यानी संरक्षक हैं. डॉ. सिंह कहते हैं, "यह एक रहस्य है. इलेक्शन इंक पर कभी कोई पेटेंट नहीं लिया गया, ताकि इस पर अत्यधिक गोपनीयता बनी रहे. 1962 के बाद से यह रहस्य कभी सामने नहीं आया."
इलेक्शन इंक का सबसे पहले कब हुआ इस्तेमाल?
1962 में देश में तीसरे आम चुनाव हुए. उसके बाद से सभी संसदीय चुनावों में वोट करने वाले वोटर्स को चिह्नित करने के लिए अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया. ऐसा दोहरे मतदान को रोकने के लिए किया जाता है.
डॉ. सिंह कहते हैं, "इस नीली स्याही को पानी, डिटर्जेंट, साबुन और अन्य सॉल्वैंट्स के प्रति प्रतिरोधी बनाया गया है. यानी आप किसी भी चीज से हाथ धो ले, ये इंक मिटेगी नहीं." डॉ. सिंह कहते हैं, "यह निशान नाखून पर कुछ हफ्तों तक रहता है. नाखून बड़ा होने पर ये धीरे-धीरे मिटने लगता है. इस स्याही से स्किन को कोई नुकसान नहीं है."
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कहां बनती है यह स्याही?
नीली स्याही अब दक्षिण भारत में स्थित एक कंपनी में बनाई जाती है. मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम की कंपनी इस स्याही को बनाती है. NPL ने 1962 में इस इंक का लाइसेंस और सारी जानकारी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड कंपनी को ट्रांसफर कर दी थी. MVPL इस चुनावी स्याही को थोक में नहीं बेचती है. सिर्फ सरकार या चुनाव से जुड़ी एजेंसियों को ही इस स्याही की सप्लाई की जाती है.
2024 के चुनावों के लिए कंपनी ने EC को दिए 28 लाख बोतल स्याही
2024 के चुनावों के लिए MVPL ने भारत के चुनाव आयोग को करीब 28 लाख बोतल में नीली स्याही की सप्लाई की है. इसकी कीमत 58 करोड़ रुपये बताई जा रही है. 2019 के आम चुनावों में चुनाव आयोग को करीब 26000 लीटर अमिट स्याही की सप्लाई की गई थी.
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MVPL के CEO मोहम्मद इरफान कहते हैं, ''हम लगभग एक अरब लोगों पर स्याही लगाएंगे. MVPL द्वारा विकसित अमिट स्याही के इस्तेमाल से भारत में चुनावी प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने और मतदाता धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिली है. ये चुनावों की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का एक उपकरण भी है."
इन देशों को इलेक्शन इंक की सप्लाई करती है MVPL
अब तक MVPL ने मलेशिया, कनाडा, कंबोडिया, घाना, आइवरी कोस्ट, अफगानिस्तान, तुर्की, नाइजीरिया, पापुआ न्यू गिनी, नेपाल, मेडागास्कर, नाइजीरिया, सिंगापुर, दुबई, लियोन, दक्षिण अफ्रीका, डेनमार्क, मंगोलिया समेत करीब 35 देशों में मांग पर इस नीली स्याही का निर्यात किया है.