Lok Sabha Election 2024 : BJP की पहली सूची, 'भड़काऊ' बयानबाजी करने वाले सांसदों के लिए एक संदेश

Lok Sabha Election 2024 : भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव को लेकर जारी उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर दी है. इस सूची में कई दिग्गज नेताओं को जगह नहीं दी गई है.

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Lok Sabha Election 2024 : BJP की पहली सूची से कई बड़े नाम गायब

नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Election 2024) को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने 195 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. यह बीजेपी द्वारा जारी की गई पहली सूची है. उम्मीदवारों की पहली सूची अब कई कारणों से चर्चाओं में है. चर्चा की सबसे बड़ी वजह से मौजूदा सांसदों को टिकट ना देना. आपको बता दें कि बीजेपी ने आगामी चुनाव को लेकर मौजूदा 34 सांसदों को टिकट नहीं दिया है. इनमें खास तौर पर वो सांसद भी शामिल हैं, जो अपने कार्यकाल के दौरान अपने 'भड़काऊ' बयानबाजी को लेकर खासे चर्चाओं में रहे थे. और उनके उन बयानों पर जमकर राजनीति भी हुई थी. 

पार्टी ने दिया संदेश

बीजेपी ने अपनी पहली सूची में जिन प्रमुख सांसदों का टिकट काटा है उनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर, रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा मुख्य रूप से शामिल हैं. आपको बता दें कि ये तीनों नेता संसद के अंदर और बाहर अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए सुर्खियों में रहे हैं. बीजेपी ने इन्हें दोबारा टिकट ना देकर यह संदेश दिया है कि पार्टी चुनाव से ठीक पहले किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है. और ना ही बीजेपी विपक्ष को कोई मुद्दा देना चाहती है. 

बता दें कि पिछले चुनाव में बीजेपी ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आलोक शर्मा की जगह मैदान में उतारा था. प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर 2008 में मालेगांव में हुए धमाकों में शामिल होने का आरोप है. उस दौरान जब पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था तो जमकर विवाद हुआ था. 

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प्रज्ञा के बयानों से पार्टी को था एतराज

तब से लेकर अब तक के पांच वर्षों में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को कई विवादों में फंसते देखा गया है. खराब स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर बाहर, प्रज्ञा ठाकुर को कबड्डी खेलते और गरबा रातों में भाग लेते भी देखा गया था. लेकिन जिस विवाद ने उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, वह उनका वह बयान था जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को "देशभक्त" बताया था. 

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भाजपा की सूची से एक औऱ नाम जो गायब है औऱ जिसे लेकर अभी भी आश्चर्यचकित हैं वो है परवेश साहिब सिंह वर्मा. दो बार के सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश वर्मा को इस बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया है. माना जा रहा है कि परवेश वर्मा की टिप्पणियों औऱ भाषणों को ध्यान में रखते हुए ही पार्टी ने ये फैसला किया है.  

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आपको बता दें कि 2020 के दिल्ली चुनावों से पहले परवेश वर्मा ने शाहीन बाग विरोध के दौरान विवादास्पद टिप्पणी की थी. उस दौरान उन्होंने कहा था कि अगर भाजपा दिल्ली में सत्ता में आई तो प्रदर्शनकारियों को एक घंटे में हटा दिया जाएगा. 

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2022 में परवेश वर्मा एक बार फिर उस समय सुर्खियों में आए जिस समय उन्होंने अलसंख्यकों के बहिष्कार की बात कही थी. उन्होंने उस दौरान कहा था कि आप उन्हें जहां भी देखें, यदि आप उनका दिमाग ठीक करना चाहते हैं, यदि आप उन्हें सीधा करना चाहते हैं, तो एकमात्र इलाज पूर्ण बहिष्कार है. यदि आप सहमत हैं तो अपना हाथ उठाएं. 

ऐसे बयान से पार्टी को हो सकती थी दिक्कत

2024 के चुनावों में जाते हुए, भाजपा के लक्ष्य स्पष्ट हैं। वह प्रधान मंत्री मोदी के 'विकित भारत @2047' आह्वान पर ध्यान केंद्रित रखना चाहती है और नहीं चाहती कि उसके नेता ऐसे बयान दें जो विपक्ष के लिए मुद्दा बनें. एक अन्य सांसद जिन्हें उनकी टिप्पणी के लिए ही इस बार शायद टिकट नहीं दिया गया है, वे हैं दक्षिण दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी.  पिछले साल सितंबर में लोकसभा में एक चर्चा के दौरान बिधूड़ी ने अमरोहा के सांसद दानिश अली के लिए इस्लामोफोबिक अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. अपमानजनक टिप्पणियां कैमरे में कैद हो गईं और बड़ा विवाद खड़ा हो गया था. हालांकि दक्षिणी दिल्ली के सांसद ने बाद में माफी भी मांग ली थी. 

दिल्ली के जिन अन्य प्रमुख सांसदों को टिकट नहीं दिया गया है उनमें मीनाक्षी लेखी और हर्ष वर्धन शामिल हैं. 2019 के चुनावों में राष्ट्रीय राजधानी में हर सीट जीतने वाली भाजपा को इस बार संयुक्त विपक्ष का सामना करना पड़ रहा है. AAP जहां चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं कांग्रेस तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है. भाजपा की दिग्गज नेता दिवंगत सुषमा स्वराज की बेटी और वकील बांसुरी को नई दिल्ली से मैदान में उतारा गया ह.।

भाजपा के सूत्रों ने कहा कि उम्मीदवारों के चयन के दौरान विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है. पार्टी के एक नेता ने कहा कि जीतने की क्षमता बहुत महत्वपूर्ण है . यह पाया गया कि कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अलोकप्रिय थे.