राजद्रोह कानून मामले में SC ने लीक से हटकर आदेश दिया : NDTV से कानून विशेषज्ञ फैजान मुस्‍तफा

फैजान मुस्‍तफा ने कहा, 'ऐसा लग रहा था कि  सुप्रीम कोर्ट इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करना चाहती थी. सरकार ने एक मास्टर स्ट्रोक खेला है और कहा कि इसमें हम खुद रिव्यू करेंगे, आप हियरिंग न करें.

विज्ञापन
Read Time: 27 mins
नई दिल्‍ली:

राजद्रोह कानून मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश दिया है. SC ने राजद्रोह कानून के तहत 124ए धारा के तहत नई एफआईआर दर्ज करने पर रोक लगा दी है. कानूनी विशेषज्ञों ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया है. संविधान विशेषज्ञ  विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा ने इस मुद्दे पर NDTV से बातचीत में कहा कि "राजद्रोह कानून के दुरुपयोग " को लेकर सुप्रीम कोर्ट बहुत गंभीर था और इसलिए उसने लीक से हटकर यह आदेश पारित किया है. इस सवाल पर कि आप इसे कितना बड़ा फैसला मानते हैं, फैजान मुस्‍तफा ने कहा, 'ऐसा लग रहा था कि  सुप्रीम कोर्ट इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करना चाहती थी. सरकार ने एक मास्टर स्ट्रोक खेला है और कहा कि इसमें हम खुद रिव्यू करेंगे, आप हियरिंग न करें. सुप्रीम कोर्ट की बेंच डिटरमिन थी. उन्होंने जब आर्डर डिक्ट्ट किया तो खुद का कि 1870 को संशोधन करके ये लॉ आया.' उन्‍होंने कहा कि ये लॉ एंडियन पीनल कोड में भी नहीं था.इस लॉ के आने की वजह थी-देवबंद का फतवा. इसको कंट्रोल करने के लिए लॉ लाया गया था.जुरिडिक्शन में किसी लॉ के स्टे होना कठिन माना जाता है. सॉलिसिटर जनरल ने भी कहा कि ये वो लॉ है जिसकी संवैधानिकता केदारनाथ के केस में 1962 में 5 जजों की बेंच खुद अहोल्ड कर चुकी है. अगर केदारनाथ केस को फालो किया जाता तो सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला नही लेना होता.केदारनाथ में कहा था कि सिर्फ किसी के कुछ बोल देने से सेडिशन या राष्ट्र द्रोह नहीं होता. इसी तरह खालिस्तान जिंदाबाद के नारे से बलवंत सिंह का केस है. इसेसेडिशन नहीं माना गया, जब तक उस नारे के नतीजे में हिंसा न हो.आज का फैसला एतिहासिक है. ऐसा क्रिमिनल मामलों में कम होता है.क्रिमिनल जस्टिस लॉ को इंस्ट्रूमंट ऑफ स्टेट कहा जाता है. अगर आप पर सरकार ने मुकदमा किया है. सरकार ही जेल , इंवेस्टीगेटर है जेल है जज भी उसके अपोइंटिट होते है तो ये अनइवन फाइट होती है. 

संविधानविद् फैजान मुस्‍तफा से बातचीत के प्रमुख अंश..

सवाल- कानून मंत्री ने कहा है कि कोर्ट को सरकार का सम्‍मान करना चाहित. हमें कोर्ट का सम्‍मान करना चाहिए. इस मामले में किसी को लक्ष्‍मण रेखा पार करनी चाहिए.कानून मंत्री की इस बयान पर आप क्या कहेंगे? 

जवाब-  कानून मंत्री एकदम सही कह रहे हैं.कानून बनाना संसद का काम है, ये काम एससी का नहीं है. ये मामले काफी दिन से चल रहे थे ये फैसला इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि कोर्ट लक्ष्मण रेखा से आगे गई है. इस तरह के फैसले आना रेयर हैं. सॉलिसिटर जनरल ने भी कहा था हम कुछ गाइडलाइन इशु कर देंगे कि लोगों को इस तरह की एफआईआर न की जाएं.उन पर आरोप न लगाए. एससी तय करके आई थी कि इस कानून में कुछ न कुछ करना है. लेकिन न्यायाधीश ने कहा कि ये कानून अब आउटडेटेड हो गया है. देश में अभिव्यक्ति का अधिकार है. सरकार की सिक्योरिटी भी प्रोट्क्ट होनी चाहिए. देश के विरुद्ध जो राष्ट्रद्रोह कर रहा है, उससे सख्ती से पेश आना चाहिए लेकिन दूसरी तरफ लोगों के अधिकार हैं तो न्यायाधीश ने कहा कि हमें बेलेंस करने की ज़रूरत है.उस बेलेंसिंग में लोग लोगों के अधिकारों के तरफ झुकती नज़र आई. सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि इसका सरकार गलत उपयोग करती आई और हर सरकार ने ऐसा किया है 

Advertisement

सवाल- सरकार ने कुछ प्रपोजल दिए थे उसमें ये भी है कि उपर के लेवल के पुलिस अफसर डिसाइड करेंगे कि सेडिशन चार्ज होगा या नहीं... एक रास्ता निकालने की बात भी हुई है ?
जवाब- वो इतना एफेक्ट नहीं करेगी क्योंकि टाडा या पोटा में इसी तरह का प्रावधान है लेकिन उन कानूनों का भी दुरुपयोग हुआ.बड़े-बड़े मामलात में आतंकवाद के मुकदमे चले वो भी छूट गए. इस तरह के लॉ के गलत इस्तेमाल होने की संभावना रहती है, उसे लोकतंत्र के देश में उसके लिए सेफ गार्ड करने की जरूरत है. मुझे लगा था इसमें एससी केदारनाथ के केस को ही रिक्रीएट कर देगी या संसदअ मेंडमेंट लाएगी तो संसद केदारनाथ के केस को 124 ए में लिख देगी. 

Advertisement

सवाल- सरकार की दलील थी कि आतंकवाद के जो मामले हैं उसके लिए सरकार अपनी बात रखना चाहती थी, और कहा कि जो मामले अभी कोर्ट में हैं, उन्हें कोर्ट में ही रहने दीजिए?  
जवाब- ये एक मजबूत आर्ग्यूमेंट था.जज कोई छोटा बड़ा नहीं होता सब बराबर होते हैं. सॉलिसेटर जनरल के इस आरग्यूमेंट में कहीं न कहीं कोई सबस्टेंस था 
इसको कंसीडर किया जा सकता था.कई एक्टीविस्ट जिनकी बहुत ज्यादा एज थी. उनका पूरा जीवन देश सेवा में लगा था. उनके ऊपर जिस तरह के मुकदमे लगे वो जजों के दिमाग में काम कर रहे थे. इसलिए उन्होंने कहा कि उन सारे मामलों में भी हमारा आर्डर लेकर जाएं और जमानत की अर्जी दे दें.

Advertisement

सवाल- स्टेन ने कहा था कि मुझे सिपर दे दीजिए पानी पीने के लिए, गिलास से मेरा हाथ कांपता है , उनको एक सिपर तक नहीं दिया गया ?

Advertisement

जवाब- एक कानून की बात नहीं है. जहां तक राष्ट्रद्रोह का मामला है है और कई कानून हैं जो उसकी टेक केयर करेंगे.मैं समझता हूं राष्ट्र द्रोह वाला मामला भी रहेगा. सवाल ये है कि क्या बोलने पर राष्ट्र द्रोह हो जाएगा. ऐसा नहीं है कि राष्ट्र द्रोह के कानून को माफ कर दिया जाएगा.2019 के चुनावों में कांग्रेस ने कहा था कि हम 124ए को हटाएंगे और इसको मुद्दा बनाया गया था. 

सवाल- पीएम के भाषण भी इस मुद्दे पर बहुत चल रहे हैं उस पर जो उस समय उन्होंने कहा था?
जवाब-राष्ट्र द्रोह का मामला बहुत सीरियस है, इसमें कोई ढील नहीं होनी चाहिए. कई तरह के खतरे होते रहते हैं. देश के मौलिक अधिकारों को भी माना है उसको ये देखना है कि किसी के बोलने से उस देश को कोई ख़तरा हो सकता है.

Topics mentioned in this article