बाढ़-बारिश के बीच कोटा में मगरमच्छों का आतंक, घरों से निकलने में डर रहे हैं लोग

कोटा का देवली अरब क्षेत्र चंद्रालोई नदी के किनारे बसा है. यहां की आधा दर्जन से अधिक कॉलोनियों को अब मगरमच्छों के खतरे का सामना करना पड़ रहा है. चंद्रालोई नदी मगरमच्छों का निवास स्थान है, जहां से मगरमच्छ कॉलोनियों में आ जा रहे हैं.

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कोटा में रिहायशी इलाके में मगरमच्छ.
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कोटा के देवली अरब क्षेत्र में मानसून के बाद मगरमच्छ नदी से निकलकर आवासीय इलाकों में आ रहे हैं.
चंद्रालोई नदी, मगरमच्छों का आवास है, भारी बारिश और बाढ़ के कारण मगरमच्छों का मूवमेंट बढ़ गया है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे रात में घरों से बाहर निकलने में डरते हैं क्योंकि मगरमच्छ कभी आ सकते हैं.
कोटा (राजस्थान):

Kota Crocodile Terror: कोचिंग सिटी के रूब में मशहूर राजस्थान का कोटा इन दिनों बारिश-बाढ़ के बीच एक नई मुसीबत का सामना कर रही है. यह मुसीबत है- मगरमच्छ. लगातार बारिश और बाढ़ से कोटा के नदी-नाले उफान पर है. निचले इलाकों में पानी भर गया है. इस बीच मगरमच्छ अपने आवासीय इलाकों से आगे बढ़कर इंसानों के रिहायशी इलाके में पहुंच रहे हैं. कोटा के देवली अरब क्षेत्र की अंजलि नगर कॉलोनी से एक वीडियो सामने आया, जिसे वहां के स्थानीय ने ही रिकॉर्ड किया है. जिसमें एक मगरमच्छ रात के समय सुनसान सड़क पर चलते हुए नजर आता है और अंत में बारिश के पानी से भरे एक खाली प्लॉट में जाकर रुक जाता है. मगरमच्छों से परेशान लोग कहते हैं कि शायद वो अब भी वहीं छिपा हुआ है.

देवली अरब क्षेत्र में मगरमच्छों का खौफ

दरअसल कोटा का देवली अरब क्षेत्र चंद्रालोई नदी के किनारे बसा है. यहां की आधा दर्जन से अधिक कॉलोनियों को अब मगरमच्छों के खतरे का सामना करना पड़ रहा है. चंद्रालोई नदी मगरमच्छों का निवास स्थान है और यह नदी मानस गांव के पास चंबल नदी में मिल जाती है. लेकिन खासकर मानसून के दौरान मगरमच्छ नदी से बाहर निकल आते हैं, और इस साल कोटा में हुई भारी बारिश और बाढ़ ने उनके मूवमेंट को और आसान बना दिया है.

लोग बोले- घरों से बाहर निकलने में लगता है डर

देवली अरब की उन कॉलोनियों में जो नदी के करीब हैं, लोगों का कहना है कि वे अपने घरों से बाहर निकलने में डरते हैं क्योंकि रात के समय मगरमच्छ टकरा सकते हैं. अंजलि नगर के निवासियों ने NDTV को बताया, "हम अपने घरों से बाहर नहीं निकल सकते, बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. कोई नहीं जानता कब सामने मगरमच्छ आ जाए. यहां कई खाली प्लॉट्स हैं जो बारिश के पानी से भरे हैं और कुछ मगरमच्छ वहीं छिपे हुए हैं."

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12-14 फीट लंबे तक मगरमच्छ

एक अन्य निवासी ने कहा, "हम हमेशा बाढ़ का सामना करते हैं, SDRF टीम आती है और लोगों को बचाती है, लेकिन बात वहीं खत्म हो जाती है. मगरमच्छ बहुत बड़ी समस्या हैं, वे 12 से 14 फीट लंबे होते हैं और हमला कर सकते हैं." ग्रामीण इलाकों में भी यही समस्या बनी हुई है. चंद्रालोई नदी के किनारे बसे दर्जनों गांवों में मगरमच्छ खेतों, फार्मलैंड और गांव के नालों में देखे जा रहे हैं.

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किसान बोले- खेतों में जाने से लगता है डर

अर्जुनपुरा और मानस गांव के किसानों का कहना है कि वे अपने खेतों में जाने से डरते हैं क्योंकि बाढ़ के पानी में मगरमच्छ छिपे हो सकते हैं. रामखेड़ी गांव की कालीबाई ने बताया कि जुलाई में एक मगरमच्छ ने उन पर हमला कर दिया था. उनके हाथ पर अभी भी निशान हैं लेकिन वे कहती हैं कि वे इसलिए बच गईं क्योंकि हमला करने वाला मगरमच्छ बड़ा नहीं था.

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चंद्रालोई नदी में हजारों मगरमच्छ

चंद्रालोई नदी के किनारे दर्जनों गांव बसे हैं और इस नदी में हजारों मगरमच्छ रहते हैं. यह नदी कोटा के पास एक डैम से निकलती है और कैथून तथा कोटा के बाहरी इलाकों से होते हुए चंबल में मिलती है. लेकिन जब चंबल नदी उफान पर होती है, तो चंद्रालोई भी भर जाती है जिससे मगरमच्छों को आस-पास के खेतों और बाढ़ग्रस्त इलाकों में जाने का मौका मिल जाता है.

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समूह में खेतों में जाते हैं किसान

किसान हरिशंकर और रामकिशन ने NDTV से कहा, "हमें हर वक्त सतर्क रहना पड़ता है. हमारे खेत पास-पास हैं लेकिन हम हमेशा समूह में जाते हैं क्योंकि नहीं पता कब कोई मगरमच्छ पानी में छिपा हो." हरिशंकर ने कहा, "हमने यहां धान लगाया है लेकिन हम अपने खेतों की तरफ नहीं जाते, और गांव के बच्चों को भी खेतों की तरफ जाने की इजाज़त नहीं है क्योंकि ये मगरमच्छ इंसानों पर हमला कर सकते हैं. हम रात को बाहर बिल्कुल नहीं निकलते."

वन विभाग ने पहले भी शहरी इलाकों से मगरमच्छों को बचाकर वापस नदी में छोड़ा है. लेकिन चूंकि अभी भी कॉलोनियों में बाढ़ का पानी भरा हुआ है, इसलिए ये रेस्क्यू ऑपरेशन्स बाढ़ का पानी उतरने के बाद ही शुरू किए जाएंगे.

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