कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज की MLA की पत्नी की याचिका, कहा- "ED की गिरफ्तारी वैध थी"

वीरेंद्र की पत्नी का कहना था कि उनके पति के खिलाफ दर्ज अधिकांश केस बंद हो चुके हैं या समझौते से निपट गए हैं, सिर्फ FIR नंबर 218/2022 बची है, जिसमें महज़ ₹30,000 रुपये का विवाद था और उस पर भी ‘बी रिपोर्ट’ यानी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जा चुकी है.

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(फाइल फोटो)
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  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने विधायक के.सी. वीरेंद्र की गिरफ्तारी को वैध मानते हुए उनकी पत्नी की याचिका खारिज कर दी
  • ED ने के.सी. वीरेंद्र पर ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी के बड़े नेटवर्क से जुड़ी धोखाधड़ी के आरोप लगाए हैं
  • जांच में 150 करोड़ की अवैध संपत्ति जब्त कर विदेशी शेल कंपनियों और कैसिनो के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग का पता चला
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कर्नाटक:

चित्रदुर्ग जिले के विधायक के.सी. वीरेंद्र उर्फ "पप्पी" की पत्नी आर.डी. चैत्रा को उस वक्त झटका लगा जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने पति की ED द्वारा की गई गिरफ्तारी को गैरकानूनी और मनमाना बताया था. कोर्ट ने साफ कहा कि ED ने कानून के तहत कार्रवाई की है और गिरफ्तारी में कोई गड़बड़ी नहीं है.

मामला क्या है?

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी व जुए के जरिए धोखाधड़ी से जुड़ी कई FIR के आधार पर जांच शुरू की थी. जांच में सामने आया कि के.सी. वीरेंद्र और उनके साथियों ने “King567” जैसे अवैध बेटिंग प्लेटफॉर्म चलाए, जिनमें FonePaisa Payment Solutions Pvt. Ltd. जैसे पेमेंट गेटवे का इस्तेमाल हुआ है.

ED के मुताबिक, इन लोगों ने भारत, श्रीलंका, नेपाल और दुबई में शेल कंपनियों और कैसिनो के जरिए काले धन को सफेद किया है. अब तक जांच में करीब ₹150 करोड़ रुपये से ज्यादा की अवैध संपत्ति जब्त की जा चुकी है. ED ने वीरेंद्र को 23 अगस्त 2025 को सिक्किम के गंगटोक से गिरफ्तार किया था. बाद में कोर्ट ने उन्हें 15 दिन की ED कस्टडी में भेजा और अब वह न्यायिक हिरासत में हैं.

याचिका में क्या कहा गया था?

वीरेंद्र की पत्नी का कहना था कि उनके पति के खिलाफ दर्ज अधिकांश केस बंद हो चुके हैं या समझौते से निपट गए हैं, सिर्फ FIR नंबर 218/2022 बची है, जिसमें महज़ ₹30,000 रुपये का विवाद था और उस पर भी ‘बी रिपोर्ट' यानी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की जा चुकी है. उनका तर्क था कि ED ने बिना ठोस सबूत और अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर गिरफ्तारी की, जो संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन है.

ED का जवाब

ED की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ने कोर्ट में कहा कि ₹30,000 का केस तो बस एक सिरा है, इसके पीछे कई करोड़ों का बड़ा बेटिंग नेटवर्क छिपा है. उन्होंने दलील दी कि PMLA कानून की धारा 2(1)(u) के तहत ‘प्रोसीड्स ऑफ क्राइम' (अपराध से अर्जित संपत्ति) में वो सब शामिल होता है जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध से जुड़ा हो. ASG ने कहा कि ऐसी साइबर ठगी में बहुत से पीड़ित शिकायत नहीं करते, पर यह FIR उसी बड़े नेटवर्क का एक हिस्सा है.

हाईकोर्ट ने माना कि FIR में दर्ज अपराध PMLA के तहत “शेड्यूल्ड ऑफेंस” (आधार अपराध) है और जब तक क्लोजर रिपोर्ट को अदालत औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं करती, ED की जांच जारी रह सकती है. कोर्ट ने यह भी कहा कि ED के पास पर्याप्त सबूत हैं जिनसे यह “कारण से विश्वास” (Reason to Believe) बनता है कि के.सी. वीरेंद्र गैरकानूनी बेटिंग ऐप चलाने, लोगों को ठगने और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल हैं. इसलिए कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी वैध है, और याचिका खारिज कर दी, हालांकि पत्नी को यह छूट दी गई है कि वह जमानत के लिए आवेदन कर सकती हैं. ED की जांच अभी जारी है. एजेंसी का कहना है कि इस नेटवर्क से जुड़े विदेशी कनेक्शन और फंड ट्रेल्स का पता लगाया जा रहा है, ताकि पूरे बेटिंग और मनी लॉन्ड्रिंग गिरोह की जड़ें उजागर की जा सकें.

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