कर्नाटक में सरकार बनाने से ज्यादा कांग्रेस के सामने बड़ी परेशानी मुख्यमंत्री चुनने की थी. विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से इस कहानी की शुरुआत होती है. जैसे ही कांग्रेस को पूरा यकीन हो गया कि अब सरकार बनानी है, तो दिल्ली से पर्यवेक्षक भेजने की तैयारी शुरू हो गई. 13 मई को ही नागपुर में बैठे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार शिंदे को यह जिम्मेदारी दी गई. साथ में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (AICC) के दो महासचिव जितेंद्र सिंह और दीपक बाबरिया को बेंगलुरु भेजा गया. इन्हें कहा गया कि जीत कर आए विधायकों से बात करें और विधायक दल का नेता चुनें. अगर जरूरत हो तो गुप्त मतदान भी करवाया जा सकता है.
14 मई को सभी पर्यवेक्षकों ने सभी विधायकों से इकट्ठा बैठक की. फिर उन्हें एक बक्से में वोट डालने के लिए कहा गया. वोटिंग के बाद पर्यवेक्षक इस बक्से को लेकर दिल्ली आते हैं. 15 मई को 6 बजे शाम कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को सौंप देते हैं. बक्से के साथ एक रिपोर्ट भी होती है. मगर यह खबर बेंगलुरु में फैलने लगती है कि किसका पलड़ा भारी है. मीडिया ने भी अपना सर्वे करना शुरू कर दिया. यह अंदाजा होने लगा कि सिद्धारमैया को 80 के आसपास वोट मिले हैं, जबकि शिवकुमार को 50. कुछ विधायकों ने यह लिखा है कि जो भी कांग्रेस आलाकमान निर्णय लेगा, वो उसके साथ होंगे.
16 मई को राहुल गांधी ने खरगे से की मुलाकात
16 मई यानी मंगलवार को दोपहर बाद राहुल गांधी और वेणुगोपाल कांग्रेस अध्यक्ष खरगे से मिलने के लिए उनके घर जाते हैं. राहुल गांधी ने खरगे के सामने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि जो भी विधायकों की राय है, उस पर अमल होना चाहिए. तब तक सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दिल्ली पहुंच जाते हैं. मंगलवार शाम को सिद्धारमैया और शिवकुमार से कांग्रेस अध्यक्ष खरगे मुलाकात करते हैं, लेकिन दोनों के साथ मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई बातचीत नहीं होती है. खरगे देर रात तक दिल्ली और कर्नाटक के कांग्रेस नेताओं से मंत्रणा करते हैं.
17 मई की सुबह राहुल से मिले सिद्धारमैया और डीकेएस
17 मई यानी बुधवार को पहले सिद्धारमैया, राहुल गांधी से मिलते हैं और फिर डीके शिवकुमार से मुलाकात होती है. राहुल गांधी दोनों से कहते हैं कि वे पार्टी अध्यक्ष के फैसले को मानें और पार्टी हित में काम करें. राहुल गांधी से मुलाकात के बाद डीके शिवकुमार दोपहर 2 बजे फिर मल्लिकार्जुन खरगे के पास पहुंचते हैं. तब उनको पहली बार पार्टी का फैसला बताया जाता है कि सिद्धारमैया विधायक दल के नेता होंगे. क्योंकि उनको अधिक विधायकों का समर्थन हासिल है. डीके शिवकुमार इस फैसले से सहमत नहीं होते. खरगे भी अधिक दबाव नहीं बना पाते हैं.
17 मई की शाम सोनिया गांधी से खरगे ने की बात
इसी दिन शाम 7 बजे खरगे सोनिया गांधी से फोन पर बात करते हैं. सोनिया गांधी से बातचीत के बाद सिद्धारमैया को विधायक दल का नेता चुने जाने के फैसले को पार्टी पुख्ता तौर पर सामने रखती है. इसके बाद रात करीब आठ बजे सुरजेवाला और केसी वेणुगोपाल फिर खरगे से मुलाकात करते हैं. इस दौरान डीके शिवकुमार को कैसे मनाया जाए? इस पर चर्चा होती है. करीब दो घंटे चली इस बैठक में शिवकुमार को उप-मुख्यमंत्री और उनके समर्थक विधायकों को मनपसंद मंत्रालयों का प्रस्ताव देने का फैसला लिया जाता है.
शिवकुमार को भी बारी-बारी से सीएम का प्रस्ताव
इसके बाद केसी वेणुगोपाल रात 10 बजे सिद्धारमैया से मिल कर उनको पार्टी के फैसले के बारे में बताते हैं. रात 11 बजे वे डीके शिवकुमार से भी मिलते हैं. उन्हें पार्टी के अंतिम फैसले के बारे में बताते है और इस फैसले को मान लेने की बात करते हैं. डीके शिवकुमार को बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव भी दिया गया है.
विधायकों से मीटिंग करने पहुंचे तीनों पर्यवेक्षक
इस बीच कांग्रेस के तीनों पर्यवेक्षक महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे, पार्टी महासचिव जितेंद्र सिंह और पूर्व महासचिव दीपक बाबरिया होटल पहुंच गए. गहमा-गहमी से ही तीनों को अहसास हो गया कि मामला उलझा हुआ है. बेंगलुरु में सुलझने वाला नहीं है. ऐसे में तीनों पर्यवेक्षक पहले विधायकों से मिले. फिर डिनर के बाद गुप्त मतदान (सीक्रेट बैलेट) का फैसला किया. 135 विधायको से बातचीत कर उनको समझना आसान नहीं था. ऐसे में ये सिलसिला रात डेढ़ बजे तक चला.
बातचीत और बक्सों में अपनी पसंद के उमीदवार का नाम लिखकर विधायकों ने बक्से में डाल दिया. उसे सील बंद करके तीनों पर्यवेक्षक ने सोमवार सुबह दिल्ली का रुख किया. जहां कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे की निगरानी में बक्सा रखा गया तब कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला और वेणुगोपाल मौजूद थे.
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