कर्नाटक में एक कोरोना मरीज की जान सिस्टम की लापरवाही से चली गई. प्राइवेट अस्पतालों और कर्नाटक सरकार के बीच तालमेल की कमी के कारण 31 साल के एक युवक की मौत हो गई. दो अस्पतालों में बेड अलॉट होने के बावजूद उसे एडमिशन नही मिला. नतीजा ये हुआ कि तीसरे अस्पातल में पहुंचने के बाद उसने दम तोड़ दिया. दो अस्पतालों ने युवक का दाखिला लेने से मना कर दिया जबकि सरकारी सिस्टम में उसके नाम पर वेंटिलेटर युक्त बेड कंफर्म था. बीबीएमपी कमिश्नर गौरव गुप्ता ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा कि हमारे बेड अलॉटमेंट सिस्टम (108) ने दो बार बेड बुक किया, बावजूद इसके, महावीर जैन अस्पताल ने दाखिला लेने से क्यों मना किया. यह चिंता की बात है. उन्होंने कहा कि हम इसकी जांच कर रहे हैं, ताकि आगे से ऐसे हालात पैदा न हो.
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सामाजिक कार्यकर्ता इस्माइल ने 31 साल के युवक की जान बचाने की तमाम कोशिशें की. उसका आरोप है कि पहली बार अलॉटमेंट के बाद भी बेड, प्राइवेट अस्पताल ने नही दिया. दूसरी बार, दूसरे अस्पताल ने यह कहते हुए बेड देने से मना कर दिया कि सरकारी कोटे के कोरोना मरीज़ों को वह अभी नही ले रहे हैं. तब तक मरीज़ का एस-पी-ओटू यानी खून में ऑक्सीजन की मात्रा 25 से 7 पहुंच गई. काफी हंगामे के बाद उसका बगैर एडमिशन इलाज किया गया और एस-पी-ओटू 7 से बढ़कर 57 हो गया. इसी दरम्यान तीसरे एस्पताल में बेड मिला जहां कुछ देर बाद उसकी मौत हो गई.
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इस्माइल ने बताया कि सुबह चार बजे के आस-पास परिवार वालों ने मुझे कॉल करके बताया कि युवक की मौत हो गई है. इस सिस्टम में कहीं ना कहीं गड़बड़ है. नहीं तो पोर्टल जब कह रहा है कि बेड अवेलेबल है और सरकार की तरफ से बुकिंग की जाती है और फिर भी बेड नहीं दिया जाता और बेतुके वजह बताई जाती हैं. फिलहाल सरकार ने जांच के आदेश देने की बात कह कर औपचारिक जिम्मेदारी पूरी कर ली है. लेकिन हकीकत यह है की कोरोना महामारी का इतना वक्त बीत चुका है बावजूद इसके, न तो हम अब तक खुद को बचाना सीख पाए हैं और न ही सरकार सिस्टम की खामियां दूर कर पाई है.