208  सांसदों ने किए साइन, राज्‍यसभा में धनखड़ को मिला नोटिस, जानें जस्टिस वर्मा के मुद्दे पर आगे क्‍या होगा

संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया गया.

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  • लोकसभा के 145 सांसदों और राज्यसभा के 63 सांसदों ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया है.
  • मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से जले हुए नोट मिलने के बाद उनका इलाहाबाद हाईकोर्ट में तबादला किया गया था.
  • लोकसभा और राज्यसभा सभापति जांच के लिए समिति गठित करेंगे जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और कानूनविद शामिल होंगे.
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नई दिल्‍ली:

संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया गया. लोकसभा के 145 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किए जिनमें पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसद शामिल हैं. जल्द ही इस मामले को लेकर जांच कमिटी का गठन किया जाएगा. राज्यसभा में भी 63 सांसदों ने जस्टिस वर्मा को पद से हटाने को लेकर महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया है. 

वर्मा के मुद्दे पर एकजुट सदन 

संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन की शुरुआत विपक्ष के जबरदस्त हंगामे से हुई. लोकसभा में तो कोई काम नहीं हो पाया. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा को पद से हटाने के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष एकजुट नजर आया. लोकसभा अध्यक्ष को सौंपे गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस पर 145 सासंदों ने हस्ताक्षर किए हैं जिसमें रविशंकर प्रसाद, अनुराग ठाकुर, राहुल गांधी, सुप्रिया सुले आदि सांसद शामिल हैं. महाभियोग प्रस्ताव के लिए लोकसभा में 100 या राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. राज्यसभा में भी 63 सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव को लेकर नोटिस दिया है. 

इसी साल 14–15 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास के एक हिस्से में लगी आग को बुझाने के दौरान बड़ी संख्या में 500 रुपए के जले हुए नोट मिले थे. इसके बाद उनका तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया गया और मामला मीडिया में लीक होने पर सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक जांच कमिटी गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट में कैश आगजनी कांड में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया. तब से ही जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की मांग उठ रही है. 

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लोकसभा में दिया गया नोटिस 

अब संविधान के आर्टिकल 124, 217, 218 के तहत लोकसभा में महाभियोग का नोटिस दिया गया है. नियमों के तहत लोकसभा/राज्यसभा के सभापति द्वारा इन आरोपों की जांच के लिए कमिटी गठित की जाएगी जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानूनविद शामिल होंगे. यह कमिटी आरोपी  जस्टिस को अपना पक्ष रखने के लिए बुला सकती है. 

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देश के इतिहास में आज तक किसी भी जस्टिस को महाभियोग प्रस्ताव के जरिए नहीं हटाया गया है. देखना होगा कि संसद की जांच कमिटी का गठन कब होता है. कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद उस सदन में इस पर बहस की शुरुआत होगी जिसके अंतर्गत जांच कमिटी का गठन किया जाएगा. पहले सदन से दो तिहाई के बहुमत से प्रस्ताव पारित होने के बाद दूसरे सदन में भी यही प्रक्रिया दोहराई जाएगी. प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा.

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जस्टिस वर्मा के मुद्दे पर अब आगे क्या होगा?

इस मसले पर मंगलवार को स्पीकर जांच समिति के गठन का ऐलान कर सकते हैं. इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश और एक प्रतिष्ठित ज्यूरिस्ट शामिल होंगे. अगले सत्र इस तक जांच समिति की रिपोर्ट आ सकती है. इसके बाद जांच और सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होगी. समिति आरोपों को साफतौर पर तय करेगी.  फिर जस्टिस वर्मा को ये आरोप पढ़ने के लिए दिए जाएंगे.  इसके बाद उन्हें लिखित रूप में जवाब देने का मौका दिया जाएगा. फिर गवाहों से पूछताछ/क्रॉस-एग्जामिनेशन का विकल्प हो भी हो सकता है. वहीं शारीरिक/मानसिक अक्षमता की स्थिति में मेडिकल बोर्ड भी लगाया जा सकता है.  

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जांच पूरी होने के बाद समिति अपना निष्कर्ष संसद में पेश करेगी. रिपोर्ट में अगर आरोप सही पाए गए हैं या नहीं और हटाने के प्रस्ताव के योग्य है या नहीं , इसके बारे में रिपोर्ट में होगा.  रिपोर्ट पर दोनों सदनों में चर्चा होगी और जस्टिस वर्मा को अपना पक्ष देने का मौका दिया जाएगा. इसके बाद मतदान की प्रक्रिया होती है. जस्टिस वर्मा को हटाने के प्रस्ताव को पास होने के लिए सदन की कुल सदस्य संख्या का सामान्य बहुमत और उपस्थित सदस्यों में दो-तिहाई बहुमत चाहिए. दोनों सदनों में पास होने के बाद प्रस्ताव पारित  माना जाता है. प्रस्ताव पास होने के तुरंत बाद, राष्ट्रपति आदेश जारी करके जज को हटाते हैं. 

राज्‍यसभा सभापति को मिला नोटिस 

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को बताया कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को पद से हटाने के लिए उन्हें एक नोटिस मिला है. उन्होंने जरूरी प्रक्रिया शुरू करने के लिए महासचिव को निर्देश दिए हैं. नोटिस संविधान के अनुच्छेद 217 (1)(बी), अनुच्छेद 218, और अनुच्छेद 124 (4) के साथ-साथ न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 की धारा 31(बी) के तहत प्राप्त हुआ है, जिसमें जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए जांच समिति गठित करने का अनुरोध किया गया है.

इस साल मार्च माह में जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से अधजले नोटों की गड्डियां मिली थीं, जिसके बाद उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया गया था. धनखड़ ने राज्य सभा में कहा कि पिछले साल दिसंबर में इलाहाबाद हाई कोर्ट  के एक न्यायाधीश को हटाने के लिए सांसदों ने नोटिस दिया था.

जांच में पता चला कि नोटिस पर एक सदस्य के दो हस्ताक्षर थे, लेकिन संबंधित सदस्य ने इस बात से इनकार कर दिया कि उन्होंने नोटिस पर दो बार हस्ताक्षर किए थे. धनखड़ ने कहा कि उन्होंने इसकी जांच की और पाया कि एक सदस्य ने दो जगहों पर हस्ताक्षर किए थे. प्रस्ताव में 55 हस्ताक्षर थे, लेकिन वास्तव में उस पर केवल 54 हस्ताक्षर ही थे.

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