जस्टिस गोगोई के NDTV को दिए बयान को लेकर उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव

तृणमूल कांग्रेस ने एक नोटिस दिया है, जिसमें पार्टी ने कहा है कि जस्टिस गोगोई का बयान राज्यसभा की अवमानना है और यह उच्च सदन की प्रतिष्ठा का महत्व कम करने वाला है.

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जस्टिस रंजन गोगोई ने एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू दिया था

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई (Justice Ranjan Gogoi) का एनडीटीवी से इंटरव्यू के दौरान दिया गया एक बयान संसद में उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन (privilege motion) के मामले का आधार बन गया है. जस्टिस गोगोई ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में उनकी बेहद कम उपस्थिति को लेकर पूछे गए सवाल का जवाब दिया था. जस्टिस गोगोई ने NDTV को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मैं जब पसंद करूंगा, तब मैं राज्यसभा जाऊंगा. यह साक्षात्कार उनके संस्मरणों पर आधारित किताब "जस्टिस फॉर जज"(Justice for the Judge) को लेकर एनडीटीवी को दिया गया था.

दरअसल, तृणमूल कांग्रेस ने एक नोटिस दिया है, जिसमें पार्टी ने कहा है कि जस्टिस गोगोई का बयान राज्यसभा की अवमानना है और यह उच्च सदन की प्रतिष्ठा का महत्व कम करने वाला है. यह विशेषाधिकारों के हनन का मामला बनता है. इस नोटिस में जस्टिस गोगोई के बयान का विवादित अंश भी शामिल किया गया है. 

" संसद के शीतकालीन सत्र के पहले तक, आप राज्यसभा आरटीपीसीआर टेस्ट के बाद ही जा सकते थे और मैं अपने आपको वहां जाने को लेकर सहज महसूस नहीं कर रहा था. सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों को लागू किया गया था, लेकिन उनका सही तरीके से ध्यान नहीं रखा जा रहा था. 

जस्टिस गोगोई ने इंटरव्यू में कहा था, बैठने की व्यवस्था को लेकर, मैं खुद को सहज नहीं पाया. मैं राज्यसभा जाता है, जब मैं पसंद करता हूं, जब मुझे लगता है कि ये महत्वपूर्ण विषय है, जिस पर मुझे अपनी बात रखनी चाहिए. मैं नामित सदस्य हूं, मैं किसी पार्टी व्हिप से बंधा हुआ नहीं हूं. लिहाजा जब भी पार्टी सदस्यों को सदन में उपस्थित होने के लिए निर्देश किया जाता है, तो वह मुझ पर बाध्य नहीं होता. मैं अपनी इच्छानुसार वहां जाता हूं और आता हूं. मैं सदन का निर्दलीय सांसद हूं. 

उन्होंने एनडीटीवी से कहा था, राज्यसभा का क्या जादू है? अगर मैं किसी ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बनता तो ज्यादा बेहतर वेतन और सुविधाएं होतीं. मैं राज्यसभा से एक पैसा भी लेकर नहीं जाता. संसदीय रिकॉर्ड के मुताबिक मार्च 2020 के बाद से उनकी उपस्थिति संसद में 10 फीसदी से भी कम रही है. जस्टिस गोगोई ने अपनी आत्मकथा में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का कार्यकाल पूरा होने के चार महीने बाद ही राज्यसभा जाने के फैसले का बचाव किया है. इस फैसले को लेकर उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी.  


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