Exclusive : जज ने सुनाई 2 वकीलों की रोचक कहानी, उनमें से एक राष्ट्रपति बने तो दूसरे CJI

सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बेंगलुरु में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी में एक सभा को संबोधित किया.

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जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने जस्टिस नागरत्ना के पिता पूर्व सीजेआई ईएस वेंकटरमैया की स्मृति में व्याख्यान को संबोधित किया.
नई दिल्ली:

जज आम तौर पर सार्वजनिक रूप से अपनी निजी भावनाओं का प्रदर्शन नहीं करते, लेकिन एक दुर्लभ दृश्य तब देखने को मिली जब सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) ने अपने माता-पिता को याद किया. उन्होंने अपने पिता भारत के पूर्व चीफ जस्टिस ईएस वेंकटरमैया के लिए अपनी मां के आजीवन समर्थन को याद किया. इस दौरान उन्होंने बामुश्किल अपने आंसू रोके.

जस्टिस नागरत्ना देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बन सकती हैं. उन्होंने बेंगलुरु में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी में एक सभा को संबोधित किया. प्रतिष्ठित लॉ स्कूल चीफ जस्टिस वेंकटरमैया की जन्म शताब्दी के अवसर पर व्याख्यान का आयोजन किया. जस्टिस वेंकटरमैया रिटायर होने के बाद इस संस्थान में पढ़ाते रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने भी लॉ स्कूल में व्याख्यान दिया.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि वे इसे अपना सौभाग्य मानती हैं कि उन्हें अपने पिता के बहुमुखी व्यक्तित्व से जीवन के महत्वपूर्ण सबक मिले. उन्होंने कहा, "मैं हमेशा उनके मार्गदर्शन में कानून की छात्रा रही हूं. मैंने उनके व्यक्तित्व में एक ताकत देखी है, जिसने मेरे व्यक्तिगत विश्वास को और मजबूत किया है कि अच्छे काम के लिए लड़ना सबसे अधिक फायदेमंद होता है."

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जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उनके पिता का साहित्य, भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम और ज्ञान की प्यास ने उन्हें विभिन्न विषयों से परिचित कराया.

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पिता के सपनों को साकार करने में मां का समर्थन

अपनी तीखी टिप्पणियों के लिए जानी जाने वालीं जस्टिस नागरत्ना ने अपने पिता को अपनी मां के समर्थन को याद किया. वे भावुक हो गईं और मुश्किल से आंसू रोक सकीं. उन्होंने कहा कि, "मेरी मां श्रीमती पद्मा ने तुरंत समझ लिया था कि मेरे पिता का वास्तव में ध्येय क्या था. उन्होंने उनके सपनों को साकार करने में उनका समर्थन करने और उन्हें सक्षम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह जानती थीं कि एक कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती जज बने रहने के लिए क्या करना चाहिए और हमेशा उनका समर्थन करती थीं. वे अपनी व्यावहारिकता और धैर्य के लिए जानी जाती थीं." मंच पर अपनी सीट पर वापस आने के बाद जस्टिस नागरत्ना अपनी आंखें पोंछते हुए दिखाई दीं.

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अपने संबोधन में जस्टिस नागरत्ना ने अपने पिता के वे शब्द भी याद किए जो उन्होंने जज के रूप में पदोन्नत होने पर कहे थे. उन्होंने कहा था कि, "एक जज का ट्रायल हमेशा चलता है और मुझे उम्मीद है कि मेरे कार्यकाल के अंत में मुझे सम्मानपूर्वक बरी कर दिया जाएगा."

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उन्होंने ट्रेन में दो वकीलों की मुलाकात के बारे में एक दिलचस्प किस्सा भी सुनाया जिसमें से एक राष्ट्रपति बना और दूसरा देश का चीफ जस्टिस.

ट्रेन में वकीलों की मुलाकात

उन्होंने कहा, "दिसंबर 1946 में देश भर के वकीलों का सम्मेलन नागपुर में आयोजित किया गया था. चूंकि बैंगलोर और नागपुर के बीच कोई सीधी ट्रेन नहीं थी, इसलिए ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस पकड़ने के लिए मद्रास, यानी चेन्नई जाना पड़ता था. रेलवे के डिब्बे में बैंगलोर के साथ-साथ मद्रास के भी कुछ वकील यात्रा कर रहे थे. साझा हितों के कारण सभी में मित्रता हो गई." 

जस्टिस नागरत्ना ने बताया, "43 साल बाद, जून 1989 में रेलवे के डिब्बे में आपस में मिले उनमें दो सज्जन राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में मिले. उनमें से एक भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले आर वेंकटरमन थे और दूसरे जस्टिस ईएस वेंकटरमैया थे, जो कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में मौजूद थे. जब मेरे पिता ने शपथ समारोह के बाद राष्ट्रपति आर वेंकटरमन को इस बारे में बताया, तो उन्हें भी नागपुर की ट्रेन यात्रा याद आ गई."

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