जर्नलिस्ट सौम्या विश्वनाथन की हत्या के मामले में साकेत कोर्ट आज सुनाएगी फैसला

सौम्या विश्वनाथन 30 सितंबर, 2008 की देर रात करीब 3:30 बजे अपनी कार से घर लौट रही थीं. उसी दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने दावा किया था कि उनकी हत्या का मकसद लूटपाट था.

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अदालत ने मामले में दलीलें पूरी करते हुए 13 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था
नई दिल्‍ली:

साल 2008 में टीवी जर्नलिस्ट सौम्या विश्वनाथन की हत्या के मामले में साकेत कोर्ट आज अपना फैसला सुनाएगी. सौम्या विश्वनाथन की हत्या को 15 साल हो गए हैं, उनका शव दक्षिणी दिल्ली के नेल्सन मंडेला मार्ग पर उन्हीं की कार से बरामद हुआ था. साकेत कोर्ट ने बचाव और अभिययोजन पक्ष की दलीलें पूरी होने के बाद 13 अक्टूबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले में सभी आरोपियों के खिलाफ मकोका के तहत आरोप तय किए गए थे.

पुलिस का दावा- हत्या का मकसद लूटपाट

अदालत ने मामले में दलीलें पूरी करते हुए 13 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सौम्या विश्वनाथन 30 सितंबर, 2008 की देर रात करीब 3:30 बजे अपनी कार से घर लौट रही थीं. उसी दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने दावा किया था कि उनकी हत्या का मकसद लूटपाट था. हत्या के आरोप में पांच लोगों रवि कपूर, अमित शुक्ला, बलजीत मलिक, अजय कुमार और अजय सेठी को गिरफ्तार किया गया, सभी आरोपी मार्च 2009 से हिरासत में हैं. पुलिस ने आरोपियों पर मकोका भी लगाया था. 

ऐसे जुड़े दो हत्‍याओं के तार

बलजीत मलिक और दो अन्य आरोपी रवि कपूर और अमित शुक्ला को 2009 में आईटी प्रोफेशनल जिगिशा घोष की हत्या मामले में दोषी करार दिया जा चुका है. पुलिस ने तब दावा किया था कि जिगिशा घोष की हत्या में इस्तेमाल हथियार की बरामदगी के बाद विश्वनाथन की हत्या के मामले का खुलासा हुआ. निचली अदालत ने 2017 में जिगिशा घोष हत्या मामले में कपूर और शुक्ला को मौत की सजा और मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हालांकि, अगले साल, हाई कोर्ट ने जिगिशा हत्या मामले में कपूर और शुक्ला की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. मलिक की उम्रकैद की सजा बरकरार रही.

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आरोपियों ने अपने बचाव में पेश नहीं किया कोई गवाह या सबूत

मकोका के तहत अभियोजन पक्ष को यह साबित करना था कि ये 5 आरोपी अपराध करने वाले एक संगठित गिरोह का हिस्सा हैं और अपराध के कई मामलों में शामिल हैं. आरोपियों को 2018 में जिगिशा घोष मर्डर केस और नदीम मर्डर केस में दोषी ठहराया गया था, लेकिन संगठित अपराध के सबूत पेश करने में देरी हुई. पुलिस ने कोर्ट को बताया कि  2002 और 2009 में आरोपियों के खिलाफ दर्ज 3 एफआईआर के तहत मामलों के रिकॉर्ड का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है. 2007 में हुए 2 केसों की चार्जशीट अदालत को दी गई. पुलिस ने कोर्ट को बताया कि इन लोगों के खिलाफ 8 एफआईआर में से केवल 3 के ही डिटेल्स मिल पाए हैं. हैरानी की बात ये है कि आरोपियों ने मामले में अपने बचाव में कोई गवाह या सबूत पेश नहीं किया है.

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