"परेशान करने का एक साधन", धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ SC पहुंचा जमीयत उलेमा-ए-हिंद

जमीयत ने याचिका में कहा कि ये कानून अंतरधर्म शादी करने वाले जोड़ों को "परेशान" करने का एक साधन हैं. याचिका में इन राज्यों के कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. 

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(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. जमीयत ने याचिका में कहा कि ये कानून अंतरधर्म शादी करने वाले जोड़ों को "परेशान" करने का एक साधन हैं. याचिका में इन राज्यों के कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. 

बता दें कि इससे पहले सोमवार को यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल और मध्य प्रदेश, में ‘ लव जिहाद' कानूनों के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने पक्षकारों से दो हफ्तों में लिखित नोट के जरिए जानकारी मांगी है कि संबंधित राज्यों में हाईकोर्ट में सुनवाई की स्थिति क्या है ? क्या हाईकोर्ट्स में इनसे संबंधित कितनी याचिकाएं लंबित हैं?

सीजेआई ने कहा था कि ये नोट्स मिलने के बाद कोर्ट आगे की स्थिति पर निर्णय करेगा कि क्या अलग अलग हाईकोर्ट को याचिकाएं सुनने दिया जाए या फिर किसी एक हाईकोर्ट में ही सभी याचिकाओं को ट्रांसफर कर दिया जाए. या फिर सुप्रीम कोर्ट स्वयं उसकी सुनवाई करे. अब दो हफ्ते बाद मामले की सुनवाई होगी. 

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बता दें कि तीस्ता शीतलवाड़ के संगठन CJP की ओर से सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कानूनों पर सवाल उठाए थे. सिंह ने कहा कि अपने जीवनसाथी या मित्र का चुनाव करना बुनियादी हक है. कोई किसी को इससे नहीं रोक सकता. विवाह के उद्देश्य को ही अपराध बना दिया गया है. लेकिन जीवनसाथी का चुनाव करना अपराध कैसे हो सकता है. ये तो अधिकार है.  

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सीजेआई ने पूछा कि आपने इन कानूनों के प्रावधानों को चुनौती दी है? सीयू सिंह ने कहा कि जी हम उन असंवैधानिक और मनमाने प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए अदालत में आए हैं. कोर्ट ने पूछा कि क्या किसी हाईकोर्ट में भी ये मामले लंबित हैं? वकीलों ने कहा कि कुछ जगह है. 

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सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि गुजरात, एमपी, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सहित राज्यों के कानून में बुनियादी खामी है. वहां विवाह का मकसद बताना होगा कि चुनौती धर्मांतरण के मुद्दे पर दी जाए कि आखिर मकसद सिर्फ विवाह करना है या धर्मांतरण कराना. 

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इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना चाहिए और सभी याचिकाओं पर सुनवाई करनी चाहिए. गुजरात सरकार द्वारा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है, जो सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. 

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड द्वारा धर्मांतरण के आधार पर विवाह करने के लिए बनाए गए कानूनों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. हालांकि, इसने उत्तर प्रदेश में लव जिहाद अध्यादेश और उत्तराखंड में धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2018 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था. 
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने वकील विशाल ठाकरे और तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस द्वारा दायर याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया था. 

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अंतर्धार्मिक विवाह में शामिल व्यक्तियों को परेशान करने के लिए कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है. सीतलवाड़ के एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने यूपी अध्यादेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा था कि आतंकवादी भीड़ शादी समारोहों से लोगों को उठा रही है. 

इस कानून के लिए विवाहों की पूर्व सूचना की आवश्यकता होती है और यह साबित करने का भार व्यक्ति पर है कि वह विवाह के लिए परिवर्तित नहीं हुआ है. ये प्रावधान विशेष रूप से अप्रिय हैं जब सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में कहा था कि राज्य किसी व्यक्ति के शादी करने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है जैसा कि शफीन जहां मामले में हुआ था.

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