आईएनएस विक्रांत का श्रेय लेने पर जयराम रमेश ने पीएम मोदी को निशाना बनाया

INS विक्रांत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल के कोचीन में देश के अब तक के सबसे बड़े और पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को नौसेना को सौंपा

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INS Vikrant: पीएम नरेंद्र मोदी ने कोचीन में आईएनएस विक्रांत का जलावतरण किया.
नई दिल्ली:

विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) को लेकर श्रेय लेने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को निशाना बनाया है. उन्होंने इसे सिर्फ मोदी सरकार की उपलब्धि नहीं बल्कि साल 1999 के बाद की सभी सरकारों की सामूहिक कोशिशों का प्रतिफल बताया है. जयराम रमेश ने ट्वीट करके पीएम मोदी से पूछा है कि क्या वे यह स्वीकार करेंगे कि यह सभी सरकारों के प्रयासों से हो सका है.     

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ट्वीट किया है कि, भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत आज सन 1999 से जारी सभी सरकारों के सामूहिक प्रयास की देन है. क्या प्रधानमंत्री इसे स्वीकार करेंगे?

उन्होंने कहा है कि, आइए मूल आईएनएस विक्रांत को भी याद करें जिसने 1971 के युद्ध में हमारी अच्छी सेवा की थी. कृष्णा मेनन ने इसे यूके से प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

पीएम मोदी ने आज कोचीन में चालक दल के लगभग 1,600 सदस्यों के लिए डिजाइन किया गया करीब 2,200 कमरों वाला देश का अब तक का सबसे बड़ा और पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत' राष्ट्र को समर्पित किया. आईएनएस विक्रांत भारत के समुद्री इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा जहाज है. प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने कोचीन शिपयार्ड में 20,000 करोड़ रुपये की लागत से बने इस स्वदेशी अत्याधुनिक स्वचालित यंत्रों से युक्त विमान वाहक पोत का जलावतरण किया. पोत के जवावतरण के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने नए नौसैनिक ध्वज (निशान) का भी अनावरण किया.

आईएनएस विक्रांत हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान देगा. आईएनएस विक्रांत पर विमान उतारने का परीक्षण नवंबर में शुरू होगा, जो 2023 के मध्य तक पूरा हो जाएगा. मिग-29 के जेट विमान पहले कुछ वर्षों के लिए युद्धपोत से संचालित होंगे.

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आईएनएस विक्रांत का सेवा में आना रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. विक्रांत के सेवा में आने से भारत अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस जैसे उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो गया है जिनके पास स्वदेशी रूप से डिजाइन करने और एक विमान वाहक बनाने की क्षमता है, जो भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया' पहल का एक वास्तविक प्रमाण है.

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