लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शनिवार को मेघालय की राजधानी शिलांग में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (CPA) भारत क्षेत्र जोन - III के 20वें वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि, उत्तर पूर्वी क्षेत्र व्यापक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है. इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास के अलावा एक्ट ईस्ट नीति के अंतर्गत क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी का 'फोकल प्वाइंट' बनाने के लिए भी प्रयास हो रहा है जिससे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर क्षेत्रीय एकजुटता बढ़ेगी.
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि समग्र उत्तर पूर्व क्षेत्र अब एक व्यापक बदलाव की ओर बढ़ रहा है सभी हितधारकों को इस बात पर ध्यान देना होगा कि विकास की प्रक्रिया में हम मानवीय मूल्यों और नैतिकता के मार्ग से न भटकें और अपनी परंपरा, अपनी विरासत, अपनी संस्कृति की रक्षा करें.
उत्तर-पूर्व क्षेत्र को मुख्य भूमि भारत के बराबर लाने के लिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की बात करते हुए बिरला ने कहा कि उत्तर पूर्व में मुख्य भूमि के समकक्ष आने की आर्थिक क्षमता है. इसके लिए सबसे पहले आवश्यक है बुनियादी ढांचे का विकास. इस सन्दर्भ में उन्होंने पीएम गति शक्ति, उत्तर पूर्व में राष्ट्रीय राज मार्ग का विस्तार, उड़ान योजना के तहत ऑपेरशनल हवाई अड्डे की संख्या में वृद्धि, दूरसंचार क्षेत्र, अंतर्देशीय जलमार्ग, वन अभयारण्य, औद्योगिक पार्क आदि परियोजनाओं का जिक्र किया.
उत्तर-पूर्व में बीते दिनों हुई घटनाओं का जिक्र करते हुए ओम बिरला ने कहा कि ये घटनाएं मानवता और सामाजिक व्यवस्था के तौर पर हमारे लिए अत्यंत कष्टदायी हैं. किसी के भी साथ हमारा व्यवहार उसको किसी भी तरह की पीड़ा पहुंचाने वाला न हो, उसकी मान-मर्यादा को ठेस पहुंचाने वाला न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए और एक व्यक्ति के रूप में, एक समाज के रूप यह हमारा नैतिक कर्तव्य है. बिरला ने क्षेत्र में शांति की अपील की और कहा कि शांति ही विकास का मार्ग है .
इस मौके पर मेघालय के मुख्यमंत्री, कोनराड के संगमा, राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश, मेघालय विधानसभा के अध्यक्ष थॉमस ए संगमा, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष और सीपीए इंडिया रीजन -जोन - III के चेयरमैन, पसांग डी सोना के अलावा सांसद, मेघालय विधानसभा के सदस्य उपस्थित थे.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सम्मेलन का आयोजन करने के लिए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ, भारत क्षेत्र जोन III और विशेष रूप से मेघालय विधानसभा को बधाई दी. उन्होंने उत्तर पूर्व क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए एक उपयोगी मंच बनाने के लिए अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष तथा सीपीए इंडिया रीजन जोन-III के अध्यक्ष पसांग डी सोना का आभार व्यक्त किया. ओम बिरला ने लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष और मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री पीए संगमा को भी याद किया और मेघालय के विकास और भारत के संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने में उनके योगदान की सराहना की.
ओम बिरला ने हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि सीपीए इंडिया क्षेत्र का जोन-III सभी चार जोनों में सबसे अधिक सक्रिय है. अब तक आयोजित हुए 20 वार्षिक सम्मेलन संसदीय लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों के प्रति इस जोन की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं. उत्तर पूर्व क्षेत्र की विधानसभाओं के बारे में बिरला ने कहा कि इन सभाओं की बैठकों में बिना व्यवधान के सार्थक और गंभीर चर्चाएं होती हैं. इससे संवाद का सार्थक निष्कर्ष भी निकलता है जो इस क्षेत्र और देश के लिए लाभकारी सिद्ध होता है.
सम्मेलन की थीम पर ओम बिरला ने कहा कि 'प्राकृतिक आपदाएं और उत्तर पूर्व क्षेत्र के विशेष संदर्भ में प्रबंधन के लिए रणनीतियां', 'उत्तर पूर्व क्षेत्र को मुख्य भूमि भारत के बराबर लाने के लिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी' जैसे विषय प्रासांगिक और समसामयिक हैं. उत्तर पूर्व जैव विविधता का हॉटस्पॉट है और यहां होने वाले किसी भी पारिस्थितिक असंतुलन का पूरे भारत में पर्यावरणीय स्थिरता पर दूरगामी प्रभाव हो सकता है. इसलिए ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की बेहतर तैयारी करने की आवश्यकता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि आपदा से निपटने के लिए आवश्यक है कि ऐसी नीतियां तैयार हों जिसमें पर्यावरण सम्बंधी क्षति को रोका जा सके.
आपदा प्रबंधन के लिए नीति निर्माण के बारे में बिरला ने कहा कि हमें प्रधानमंत्री के 10-सूत्रीय एजेंडे पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिसमें स्थानीय क्षमताओं के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. बिरला ने कहा कि भारतीय विकास मॉडल सस्टेनेबिलिटी पर आधारित है और समय के साथ, प्रौद्योगिकी के उपयोग और मानव संसाधनों के इष्टतम उपयोग के साथ, हमने आपदा तैयारी और प्रबंधन को मजबूत किया है.
सम्मेलन में आए सभी प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने कहा कि सीपीए समय के साथ विकसित हुआ है और साझा प्रतिबद्धता के साथ अपने सदस्यों को एक साथ लाने के लिए एक प्रभावी मंच साबित हुआ है. संगमा ने कहा कि भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, चक्रवात, सूखा जैसी आपदाएं विकास की गति में बाधा डालती हैं. गारो हिल्स में हाल की बाढ़ का उदाहरण देते हुए संगमा ने बताया कि सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र के संगठनों, गैर-लाभकारी संगठनों और स्वयंसेवकों द्वारा समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से प्रभाव को कम करने के लिए समय पर और सुसंगत दृष्टिकोण अपनाया गया था. उन्होंने कहा कि इन एजेंसियों के संयुक्त प्रयासों से बाढ़ के विनाशकारी प्रभाव को काफी हद तक नियंत्रित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उपलब्ध संसाधनों को सबसे अधिक प्रभावित लोगों तक पहुंचाने का एक सुव्यवस्थित तंत्र तैयार हुआ.
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने क्षेत्रीय महत्व के विभिन्न विषयों पर लगातार जुड़े रहने की पहल करने के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र के पीठासीन अधिकारियों की सराहना की. बेहतर कनेक्टिविटी को रेखांकित करते हुए उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के लिए सतत विकास और योजना के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि पहाड़ी राज्यों के लिए, जलवायु परिवर्तन और भी बड़ी और तत्काल चिंता का विषय है जिसके लिए रणनीतियों पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है. इसलिए, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आपदा प्रबंधन के लिए योजना बनाना अब एक अलग नीति नहीं है, बल्कि उन्हें हर राज्य में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए व्यापक योजना में शामिल होना चाहिए.