- गौरांग दास, जिनका असली नाम एएसके आनंद है, आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र और इस्कॉन से जुड़े आध्यात्मिक गुरु हैं.
- उन्होंने भगवद गीता को मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण बताया है, जो शरीर और मन को नियंत्रित करता है.
- गौरांग दास का मानना है कि दिमाग हार्ड डिस्क की तरह है, जिस पर तनाव और अवसाद वायरस की तरह हमला कर सकते हैं.
इस्कॉन से जुड़े गौरांगदास जिनका असली नाम एएसके आनंद है, आज युवाओं के आदर्श हैं. बहुत कम लोगों को मालूम है कि गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई की ही तरह गौरांग दास भी आईआईटी के पूर्व छात्र रहे हैं. गौरांग इस्कॉन से जुड़कर अध्यात्म की दुनिया में लोगों के सबसे बड़े आदर्श बन गए हैं. गौरांग दास उसी समय आईआईटी बॉम्बे पढ़ने के लिए पहुंचे थे जिस समय सुंदर पिचाई ने आईआईटी खड़गपुर में एडमिशन लिया था. आज जहां सुंदर, गूगल के सीईओ के तौर पर दुनिया को टेक्नोलॉजी से रूबरू करवा रहे हैं तो गौरांग, इस्कॉन से जुड़कर आध्यात्म की दुनिया में रम गए हैं. NDTV से एक खास बातचीत में बताया कि कैसे आज के समय में आध्यात्म स्ट्रेस को कम करने में कारगर हो सकता है.
शरीर को कंट्रोल करती गीता
गौरांग दास के अनुसार सुंदर पिचाई टेक्नोलॉजी के जरिये दुनिया के लिए काफी अच्छा काम कर रहे हैं. लेकिन हमें यह सोचना होगा कि एक मशीन है तो उसके पीछे काम करने वाला इंसान भी होगा. ऐसे में यूनिवर्सिटी में दी जाने वाली हर तरह की शिक्षा, मैनेजमेंट, अकाउंटिंग, फाइनेंस, टेक्नोलॉजी, मार्केटिंग, मेडिसिन, लॉ, ये सभी सिर्फ एक ही बात बताती हैं कि कैसे सिस्टम को कैसे बेहतर किया जाए, मशीन की क्षमता और उसकी स्पीड कैसे बढ़ाई जाए. वहीं दूसरी ज्ञान का अथाह भंडार हमारे धर्म ग्रंथों में जैसे गीता में है, जो बताता है कि कैसे मशीन के पीछे इंसान की कैसे मदद की जाए. कैसे वह अपनी 'मशीन' यानी शरीर को कंट्रोल कर सकता है.
हार्ड डिस्क की तरह है दिमाग
उन्होंने बताया कि जिस समय वह आईआईटी बॉम्बे में आखिरी साल में थे तो उन्हें भगवद गीता के एक संदेश के बारे में पता चला. उस समय उन्हें यह अहसास हुआ कि दिमाग उस हार्ड डिस्क की तरह है जिस पर अगर किसी वायरस का अटैक हो जाए तो वह कितना ही अच्छा क्यों न हो, खत्म हो जाएगा. अगर दिमाग हार्ड डिस्क है तो एंग्जाइटी, स्ट्रेस और ड्रिपेशन वायरस की तरह है जो इसे खराब कर सकता है. उन्होंने बताया कि उनके एक दोस्त सिर्फ इसलिए आत्महत्या करने की कोशिश की क्योंकि उसके मार्क्स अच्छे नहीं आए थे. वह घटना उनके लिए एक वेकअप कॉल कर तरह थी. उन्हें यह अहसास हुआ कि सच्ची खुशी इस पर नहीं निर्भर करती है कि आपके कितना हासिल कर लिया है बल्कि यह इस पर निर्भर करती है कि आपको वास्तविकता और उम्मीदों के बीच जो अंतर है, उसके बारे में कितना मालूम है.
गीता पर रिसर्च करते गौरांग
आईआईटी से निकलने के पहले ही गौरांग दास विदेशों में यूनिवर्सिटी के लिए अप्लाई करने लगे थे. उन्होंने इसके लिए जरूरी जीआरई जैसी प्रक्रियाओं को भी शुरू कर दिया था. अप्लीकेशंस भी प्रॉसेस में थी. लेकिन उन्हें लगा कि एक मैसेज को सही तरह से लोगों तक पहुंचाना बहुत जरूरी होता है. फिर उन्होंने सोचा कि जिस तरह से लोग आईआईटी से पास आउट होने के बाद वापस प्रोफेसर बनकर लोगों को शिक्षित करने के लिए आते हैं ठीक उसी तरह से गीता के ज्ञान को हासिल करने वाले लोग भी वापसी कर सकते हैं. वो भी गीता के प्रोफेसर और रिसर्चर्स बन सकते हैं. गौरांगदास खुद को एक ऐसे इंसान के तौर पर बताते हैं जो गीता पर गहन रिसर्च कर रहा है और लोगों के साथ उसके नतीजों को शेयर करना चाहते हैं ताकि उन्हें फायदा हो सके.
मेंटल हेल्थ सबसे बड़ी चुनौती
गौरांग दास ने आज के दौर में मेंटल हेल्थ को एक बड़ी चुनौती बताया है और उन्होंने इसके पीछे सोशल मीडिया को कुछ हद तक जिम्मेदार माना है. उन्होंने बताया कि आज दुनिया भर में 230 मिलियन लोग सोशल मीडिया के आदी हो गए हैं जिसमें से 70 मिलियन अकेले भारत में हैं. उन्होंने कहा कि आज औसतन एक युवा सात घंटे सोशल मीडिया पर बिता रहा है. उनका कहना था कि वैदिक काल में उपवास का चलन था जिसमें लोग खाने और पानी से दूर रहते थे और उस समय प्रयोग वो अध्यात्म के लिए करते थे. आज के दौर में खाना और पानी की जगह लोगों को स्मार्ट फोन पर उपवास करना चाहिए.
गौरांग दास ने बताया कि आशीष कुमार चौहान जो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के मुखिया हैं, वह भी आईआईटी मुंबई में उनके साथ थे. उन्होंने बताया कि कैसे आशीष चौहान ने अपनी किताब 'स्थितप्रज्ञ' को जारी किया है. यह किताब चौहान की बायोग्राफी है जिसमें उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे उन्होंने भगवद गीता और वैदिक संस्कृति के सिद्धांतों को अपनी कॉरपोरेट लाइफ में अपनाया.