शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी संसदीय बोर्ड से बाहर करना क्या मध्य प्रदेश के लिए है साफ संकेत?

कांग्रेस का कहना है कि शिवराज सिंह को भाजपा संसदीय बोर्ड से बाहर करने से साफ है कि पार्टी 2023 के चुनावों से पहले उन्हें प्रमुख पदों पर रखने के मूड में नहीं है, बीजेपी ने कहा- कोई चिंता नहीं

विज्ञापन
Read Time: 27 mins
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को बीजेपी के अहम पदों से हटाए जाने पर सवाल उठ रहे हैं (फाइल फोटो).
भोपाल:

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) को भाजपा की फैसले लेने वाली शीर्ष संस्था भाजपा संसदीय बोर्ड (BJP parliamentary board) से बाहर कर दिया गया है. इसके बाद मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के राजनीतिक गलियारों में उनके बाहर निकलने और अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के बीच एक सीधी रेखा खींची जा रही है. विधानसभा में विपक्ष के नेता कांग्रेस के गोविंद सिंह ने कहा, "हम सोचते थे कि वह 2023 के बाद केंद्र में चले जाएंगे, लेकिन अब पार्टी उन्हें प्रमुख पदों पर रखने के मूड में नहीं है."

राज्य के भाजपा नेताओं ने कहा है कि उनके लिए चिंता की कोई बात नहीं है. बीजेपी प्रवक्ता दिव्या गुप्ता ने कहा, "क्या बीजेपी संसदीय बोर्ड में कोई और मुख्यमंत्री है? नहीं है. अगर कोई अन्य सीएम शामिल होता तो उन्हें चिंता करने की कोई बात होती."

कांग्रेस का आरोप है कि राज्य सरकार भ्रष्ट है इसलिए अस्थिर है. कांग्रेस जोर देकर कहती है कि "ऊपर से शिवराज चौहान के लिए एक स्पष्ट संकेत" है. गोविंद सिंह ने कहा, "भाजपा में ऐसे कई नेता हैं जिन्हें लगता है कि वे अब उनकी जगह ले सकते हैं. इंतजार करें और देखें."

बुधवार को भाजपा ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से हटा दिया. चौहान का पार्टी के संसदीय बोर्ड से निकाला जाना अप्रत्याशित था. 

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बड़ा ओबीसी चेहरा हैं और अनुभवी हैं. चौहान ने इस साल मार्च में बतौर मुख्यमंत्री 15 साल पूरे किए हैं. बीजेपी शासित राज्यों में पार्टी में बतौर राज्य के मुखिया यह रिकॉर्ड है. शिवराज को अगस्त 2013 में नरेंद्र मोदी के साथ संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था. उस वक्त चौहान को अक्सर मोदी के बरक्स खड़ा किया जाता था.

Advertisement

सन 2012 में बीजेपी की एक बैठक के दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान के काम की प्रशंसा की थी. इसे मोदी के महत्व को कम करने के प्रयास के रूप में देखा गया. 

यह भी इत्तेफाक है कि सन 2005 में जब शिवराज को मध्य प्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने सत्यनारायण जटिया की जगह ली. इस बार संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में शिवराज की जगह जटिया सदस्य बने हैं. हालांकि पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना ​​है कि सत्यनारायण जटिया संसदीय बोर्ड में चौहान नहीं बल्कि थावरचंद गहलोत की जगह आए हैं. 

Advertisement

शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी के फैसले पर कहा कि, ''पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा नवगठित केंद्रीय संसदीय बोर्ड अनुभव से भरा है. मैं उन्हें बधाई देता हूं.''

सत्यनारायण जटिया ने कहा, ''यह नया नहीं है, यह पार्टी में रोटेशन है. उन्होंने अपनी सेवाएं देकर पार्टी को लाभान्वित किया है. मैं उनके काम और उनके योगदान की भी सराहना करता हूं. उन्हें कहीं और इस्तेमाल किया जाएगा. पार्टी का काम नहीं रुकता, कार्यकर्ता बिना काम के नहीं रहता.''

Advertisement

विपक्ष को लगता है कि शिवराज अपना कद खो चुके हैं. नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह ने कहा कि, ''हम तो आज प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हैं. कम से कम भ्रष्टाचार के समाचार दिल्ली पहुंच रहे हैं तो उनको संसदीय कार्य बोर्ड और चुनाव समिति से हटा दिया. अभी भी शिवराज जी को कहते हैं, सुधर जाओ, भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाले मुख्यमंत्री को हटाया है. मैं चाहूंगा तत्काल उनको आग्रह सचेत कर दें और कार्रवाई करने के लिए तैयार रहें.''

भाजपा की प्रवक्ता डॉ दिव्या गुप्ता ने कहा कि, ''संसदीय समिति में जो लोग लिए गए हैं वे वरिष्ठ हैं. बीजेपी किसी को निकालती नहीं है, लेती है. यह लेने की प्रक्रिया है. 2024 से पहले सारा तंत्र रिवाइज होना जरूरी है. कहीं कोई और मुख्यमंत्री हो, शिवराज जी नहीं हों, तो आप प्रश्न करें तो बेहतर. जब कोई नहीं है, तो बिल्कुल ये चिंता का विषय नहीं है.''

Advertisement

भाजपा सांसद गणेश सिंह का कहना है कि, ''यह कोई चिंता का विषय नहीं है. पार्टी अलग-अलग वक्त पर अलग दायित्व सबको देती है. मेरे ख्याल से उनका पूरा समय मध्यप्रदेश में लगे, इस विचार से फैसला लिया होगा.''

पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया संघ के करीबी हैं. वे सात दफे सांसद रहे हैं. उनके सहारे बीजेपी ने दलित कार्ड भी चला है. मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं. वे 84 सीटों पर हार जीत तय कर सकते हैं. राज्य में अनुसूचित जाति के लगभग 17 फीसदी वोट हैं. साल 2013 में बीजेपी ने अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित 82 सीटों में से सिर्फ 34 जीती थीं जबकि 2013 में यह आंकड़ा 59 था.

अपने इस वोट बैंक को हासिल करना बीजेपी की बड़ी प्राथमिकता है. वहीं शिवराज सिंह वर्तमान में एकमात्र बीजेपी सीएम हैं जो मोदी के पीएम बनने से पहले से सत्ता में हैं. बाकी मुख्यमंत्री मोदी और शाह के काल में कुर्सी पर बैठे हैं. एक तरह से राज्य में शिवराज का आधार मोदी और शाह से स्वतंत्र है. लेकिन 2019 में मामूली अंतर से चुनाव में मिली हार ने उनके कद को कुछ कम तो किया ही था.

नए निजाम में शिवराज समीकरण थोड़ा मुश्किल तो है. शिवराज ऐसे नेता हैं जिनकी छवि उदारवादी रही है लेकिन जानकार मानते हैं कि नई बीजेपी में वैधता हासिल करने के लिए वे अपने मौजूदा कार्यकाल में ज्यादा कट्टर हिंदुत्व की छवि का आवरण ओढ़ रहे हैं.

नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के संसदीय बोर्ड से बाहर

Featured Video Of The Day
Artificial Intelligence ने जब इंसान को ही बता दिया धरती पर बोझ, जानें पूरी खबर | AI News| AI Threats