प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप एक्‍ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में हस्‍तक्षेप अर्जी दाखिल, माकपा ने की पक्षकार बनाए जाने की मांग

प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप एक्‍ट 1991 (Places of Worship Act 1991) को लेकर माकपा ने कहा कि देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बनाए रखने, सामाजिक सरसता को कायम रखने और मूल अधिकारों की रक्षा के लिए इस एक्ट का कायम रहना जरूरी है.

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नई दिल्‍ली:

प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप एक्‍ट 1991 मामले (Places of Worship Act 1991 Cases) में माकपा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंची है. माकपा ने सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट को लेकर लंबित याचिकाओं के साथ खुद को भी पक्षकार बनाए जाने की मांग की है. साथ ही पार्टी ने हस्‍तक्षेप अर्जी दाखिल की है और इस एक्‍ट का बचाव किया है.

माकपा का कहना है  कि इस एक्ट की भावना को दरकिनार कर अभी देश के विभिन्न 25 मस्जिदों/दरगाहों पर दावे को लेकर मुकदमें दायर हो रहे हैं. देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को बनाए रखने, सामाजिक सरसता को कायम रखने और मूल अधिकारों की रक्षा के लिए इस एक्ट का कायम रहना जरूरी है. इस एक्ट को खत्म करने या इसमें बदलाव करने का कोई भी प्रयास देश के सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक साबित होगा. 

माकपा ने 3 आधारों पर बताया महत्‍वपूर्ण 

साथ ही माकपा ने अपनी अर्जी में कहा कि यह एक्ट तीन आधारों पर बहुत महत्वपूर्ण है. 

  1. धर्मनिरपेक्षता की रक्षा: 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन पर रोक लगाकर भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को संरक्षित करने में इसकी भूमिका है. 
  2. सामाजिक वैमनस्य को रोकना:  यह अधिनियम सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और ऐतिहासिक विवादों से उत्पन्न होने वाले संघर्षों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है. 
  3. संवैधानिक वैधता:  यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को बरकरार रखता है, तथा सभी नागरिकों के लिए समानता, गैर-भेदभाव और धर्म की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है. 

साथ ही माकपा ने कहा कि वो धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय के संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करती है. यह मानती है कि अधिनियम को निरस्त करने या बदलने का कोई भी प्रयास इन सिद्धांतों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करेगा. 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को सुनवाई करेगा. 

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