महंगाई की मार : परिवारों का बजट बिगाड़ रहे सब्जियों के दाम , क्या है इसका कारण?

कृषि अर्थशास्त्री राकेश सिंह ने कहा कि , सब्जियां महंगी होने के पीछे इनके उत्पादन में कमी एक कारण है, लेकिन बड़ा कारण अकुशल सप्लाई चेन है

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दिल्ली में इन दिनों सब्जियों के दाम बहुत बढ़ गए हैं.
नई दिल्ली:

बीते दो हफ्ते में सब्जियों के दाम आसमान छूने लगे हैं. सब्जियों की कीमतें (Vegetable prices) लगातार बढ़ रही हैं. सब्जी के बढ़ते दामों (Vegetable Inflation) ने आम आदमी का बजट बिगाड़ दिया है. हर साल बारिश के दिनों में सब्जियों की कीमतें बढ़ जाती हैं. इस बार भी बढ़ गई हैं. कीमतें बढ़ने के पीछे उत्पादन में  कमी है, परिवहन की समुचित व्यवस्था का अभाव है या फिर जमाखोरी इसका कारण है?    

गर्मी से भले ही लोगों को थोड़ी राहत मिली हो, लेकिन सब्जियों का बाजार अब तपने लगा है. कीमतों को लेकर टमाटर और लाल हैं... तो सब्जियों का राजा आलू भी आसमान छूते दामों के साथ आम लोगों को आंखें दिखा रहा है. भिंडी और लौकी के दामों में भी जबरदस्त उछाल है. लोगों पर दोहरी मार पड़ रही है. पहले से ही राशन का सामान महंगा है, अब सब्जी भी बारिश में पसीना छुड़ा रही है.

एक सब्जी खरीदार ने कहा कि, ''सब्जी का तो पूछो मत, पूरी मंडी में आग लग गई है. जो लहसुन मैं लेता था 100-150 रुपये, आज ढाई-तीन सौ रुपये ले रहा हूं. अदरक दो-ढाई सौ रुपये किलो है.'' 

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बाजार में सब्जियां खरीद रही एक महिला ने कहा कि, ''बहुत महंगी हो गई हैं सब्जी, 2000 रुपये लेकर आओ, पता ही नहीं चलते..टमाटर, आलू, प्याज.. हर चीज महंगी हुई है.''     

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सब्जियों पर दोहरी मार

लोग सब्जियों की कीमतों से परेशान हैं, तो सब्जियां भी बारिश के साथ दोहरी मार झेल रही हैं. एक तरफ सप्लाई का संकट है तो दूसरी ओर प्याज और टमाटर समेत कई सब्जियों के बारिश के मौसम में खराब होने का खतरा. इसका सीधा असर इनके दामों पर हो रहा है. 

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दो हफ्ते पहले के मुकाबले सब्जियां दोगुनी महंगी हो गई हैं. अब टमाटर 80 रुपये किलो तक, आलू 40 रुपये किलो, प्याज 50 रुपये किलो तक, लौकी 50 रुपये किलो तक, भिंडी 60 रुपये किलो तक बिक रही है. अब 60 रुपये तक पहुंचा करेला मुंह को और कड़वा कर रहा है.

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दो हफ्ते पहले के मुकाबले मौजूदा दाम 
             

                 पहले                               अब
टमाटर     30-35 रूपये प्रति किलो      70-80
आलू       15-20                               35-40
प्याज.      25-30                                40
लौकी       30                                    50
भिंडी       20-25                               60                               
करेला      35                                     60


एक आलू- प्याज विक्रेता ने कहा कि, ''आलू के दाम में आधे का फर्क है. पहले 10-15 रुपये था, आज 35-40 रुपये है.'' 

एक टमाटर विक्रेता ने कहा कि, ''टमाटर 70 रुपये किलो चल रहा है. टमाटर गर्मी पड़ने से सड़ गया. अब जो टमाटर आ रहा है, उसका भाड़ा, टैक्स लग रहा है. माल भी कम आ रहा है.  पहले 10 गाड़ियां आती थीं, अब दो गाड़ियां आ रही हैं. इससे फर्क तो पड़ेगा ही. यही कारण है कि महंगाई है. जब माल ज्यादा आएगा तो अपने आप सस्ता हो जाएगा.'' 

ऑपरेशन ग्रीन योजना प्रभावी नहीं

हर साल इस मौसम में सब्जियां महंगी हो जाती हैं, क्या इसके लिए पहले से कोई तैयारी नहीं की जा सकती? इस बारे में कृषि अर्थशास्त्री राकेश सिंह ने कहा कि, ''सब्जियों में खास तौर पर टमाटर, आलू और प्याज के लिए सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन योजना शुरू की. उसका मकसद यही था कि दाम में उतार-चढ़ाव कम हो, लेकिन अभी उसका पूरा असर दिख नहीं रहा है. निश्चित रूप से हमारा जो ट्रांसपोर्टेशन है और बाकी जो स्टोरेज इन्फ्रास्ट्रक्चर है उसको और सुदृढ़ करने की जरूरत है.  अब हम क्लाइमेट चेंज इन्फ्लुएंस इनफ्लेशन भी कहने लगे हैं. सब्जियों के उत्पादन और दाम पर जलवायु परिवर्तन का भी बहुत असर पड़ रहा है.'' 

उन्होंने कहा कि, ''अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक बारिश की वजह से प्रभाव पड़ता है. हालांकि जो पूरी सप्लाई चेन है उसमें कहीं न कहीं इनएफिसिएंशी ज्यादा है. जो दाम बढ़ रहे हैं, इसका पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. इसका मतलब है कि अभी भी जो बीच में लोग काम रह हैं, वे भी रोल प्ले कर रहे हैं. क्षमता की कमी को दूर करना चाहिए.'' 

सब्जियों की आपूर्ति व्यवस्था कमजोर

सिंह ने कहा कि, ''जैसे सरकार ने नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट शुरू किया था. उसका भी पूरा प्रभाव अभी सामने नहीं आया है. तो सब्जी के क्षेत्र में सप्लाई चेन इनएफिशिएंसी को कम करने की जरूरत है.'' 

उन्होंने कहा कि, ''सब्जियों के दाम बढ़ने के पीछे 30 प्रतिशत कारण उत्पादन में कमी है. इसके बाद 70 प्रतिशत कारण सप्लाई चेन में इनएफिशिएंशी है.'' 

राकेश सिंह ने कहा कि, ''ट्रांसपोर्ट की दिक्कतें तो हैं ही, इसके अलावा दामों में मुख्य रोल विक्रेता अदा कर रहे हैं. वह दामों को ज्यादा बढ़ा रहा है. डिमांड और सप्लाई से जितनी महंगाई नहीं बढ़ रही है, उससे ज्यादा वह महंगाई बढ़ा रहे हैं.''

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